क्या आपने कभी सोचा है कि कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु का समय खुद कैसे चुन सकता है?
महाभारत के युग में एक ऐसा महान योद्धा था जिसने न केवल अपनी मृत्यु का समय चुना, बल्कि धर्म, कर्तव्य और त्याग की ऐसी मिसाल कायम की जो आज भी हमें प्रेरणा देती है। वह थे भीष्म पितामह – हस्तिनापुर के सिंहासन के रक्षक, कुरुवंश के स्तंभ और महाभारत के सबसे प्रतिष्ठित पात्रों में से एक।
भीष्म पितामह कौन थे? (Who was Bhishma Pitamah?)
भीष्म पितामह महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण और सम्मानित पात्रों में से एक थे। वे हस्तिनापुर के राजा शांतनु और गंगा के पुत्र थे। उनका वास्तविक नाम देवव्रत था, लेकिन अपनी भीषण प्रतिज्ञा के कारण वे भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुए।
भीष्म का महत्व:
- कुरुवंश के संरक्षक: वे तीन पीढ़ियों तक हस्तिनापुर के सिंहासन के रक्षक रहे
- धर्म के प्रतीक: उन्होंने जीवनभर धर्म और कर्तव्य का पालन किया
- महान योद्धा: वे अपने समय के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धरों में से एक थे
- ज्ञान के भंडार: उनके पास राजनीति, धर्म और जीवन के गहरे ज्ञान का भंडार था
भीष्म पितामह के माता-पिता (Parents of Bhishma Pitamah)
पिता: राजा शांतनु
राजा शांतनु चंद्रवंशी राजा थे और हस्तिनापुर के प्रतापी शासक थे। वे भरत वंश के महान राजा थे और अपनी न्यायप्रियता और दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे।
शांतनु की विशेषताएं:
- अत्यंत सुंदर और तेजस्वी राजा
- धर्मपरायण और न्यायप्रिय शासक
- प्रजावत्सल और दयालु स्वभाव
- देवताओं द्वारा वरदान प्राप्त कि उनका स्पर्श वृद्धावस्था को दूर कर सकता है
माता: देवी गंगा
देवी गंगा स्वयं पवित्र गंगा नदी की अधिष्ठात्री देवी थीं। उन्होंने मानव रूप धारण करके राजा शांतनु से विवाह किया था।
गंगा की विशेषताएं:
- पवित्रता और शुद्धता की प्रतीक
- अष्ट वसुओं को मोक्ष दिलाने का दायित्व
- दिव्य शक्तियों से संपन्न
- त्याग और मातृत्व की मूर्ति
अष्ट वसुओं का श्राप
भीष्म के जन्म की कहानी अष्ट वसुओं (आठ देवताओं) के श्राप से जुड़ी है। ऋषि वशिष्ठ के श्राप के कारण आठों वसुओं को पृथ्वी पर मानव रूप में जन्म लेना पड़ा। गंगा ने इन वसुओं को मोक्ष दिलाने का वचन दिया था।
भीष्म पितामह की महान प्रतिज्ञा (Bhishma’s Great Vow)
प्रतिज्ञा की पृष्ठभूमि
राजा शांतनु को सत्यवती नामक एक सुंदर कन्या से प्रेम हो गया था। सत्यवती के पिता (निषादराज) ने विवाह की शर्त रखी कि सत्यवती का पुत्र ही हस्तिनापुर का राजा बनेगा।
देवव्रत की भीषण प्रतिज्ञा
अपने पिता के प्रेम और खुशी को देखते हुए, देवव्रत ने दो भीषण प्रतिज्ञाएं लीं:
1. सिंहासन त्याग की प्रतिज्ञा
“मैं हस्तिनापुर के सिंहासन का त्याग करता हूं और आजीवन सत्यवती के पुत्रों की सेवा करूंगा।”
2. आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा
“मैं आजीवन ब्रह्मचारी रहूंगा और कभी विवाह नहीं करूंगा, जिससे मेरी संतान सिंहासन का दावा न कर सके।”
प्रतिज्ञा का प्रभाव
इस भीषण प्रतिज्ञा को सुनकर:
- स्वर्ग से पुष्पवर्षा हुई
- देवताओं ने “भीष्म” की उपाधि दी
- पिता शांतनु ने इच्छामृत्यु का वरदान दिया
- सत्यवती का पिता विवाह के लिए सहमत हो गया

भीष्म के जीवन की रोचक घटनाएं
1. गुरु परशुराम से युद्ध
- भीष्म और परशुराम के बीच 23 दिनों तक भीषण युद्ध हुआ
- यह युद्ध अम्बा के विवाह प्रसंग से शुरू हुआ था
- दोनों महान योद्धा थे और युद्ध अनिर्णायक रहा
2. काशी की राजकुमारियों का हरण
- भीष्म ने विचित्रवीर्य के विवाह हेतु काशी की तीन राजकुमारियों का हरण किया
- अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका नामक तीन बहनें थीं
- अम्बा ने विवाह से इंकार कर दिया जो बाद में समस्या का कारण बना
3. महाभारत युद्ध में भूमिका
- कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों की ओर से सेनापतित्व किया
- पांडवों के विरुद्ध युद्ध करना पड़ा जबकि वे उन्हें पुत्र समान प्रेम करते थे
- अर्जुन के हाथों शिखंडी की आड़ में मृत्यु को प्राप्त हुए
भीष्म के गुण और विशेषताएं
1. अद्वितीय व्यक्तित्व
- धैर्य: जीवनभर कठिनाइयों का सामना धैर्य से किया
- त्याग: स्वयं के सुख का त्याग करके कुल की सेवा की
- निष्ठा: जीवनभर अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया
- न्याय: हमेशा धर्म के पक्ष में खड़े रहे
2. योद्धा के रूप में
- अद्वितीय धनुर्विद्या में पारंगत
- दिव्यास्त्रों का ज्ञाता
- रणनीति के महान ज्ञाता
- अजेय वीर योद्धा
3. ज्ञानी के रूप में
- राजधर्म के महान ज्ञाता
- वेदों और शास्त्रों के पंडित
- जीवन दर्शन के गहरे ज्ञाता
- भीष्म स्तुति के रचयिता
भीष्म की मृत्यु और उत्तराधिकार
शरशैया पर उपदेश
- भीष्म ने शरशैया पर पड़े हुए युधिष्ठिर को राजधर्म का उपदेश दिया
- यह उपदेश महाभारत के शांति पर्व में वर्णित है
- इसमें राजनीति, धर्म, अर्थशास्त्र और मोक्ष की शिक्षा है
इच्छामृत्यु
- भीष्म ने अपनी इच्छा से उत्तरायण में प्राण त्यागे
- शरशैया पर 58 दिन तक पड़े रहे
- अपनी मृत्यु का समय स्वयं चुना
आधुनिक जीवन में भीष्म की शिक्षाएं
1. प्रतिबद्धता का महत्व
भीष्म ने दिखाया कि एक बार दिए गए वचन का पालन कैसे करना चाहिए, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन हो जाएं।
2. त्याग की भावना
व्यक्तिगत खुशी का त्याग करके परिवार और समाज की भलाई के लिए कार्य करना।
3. धर्म के प्रति निष्ठा
कठिन परिस्थितियों में भी धर्म का साथ न छोड़ना और न्याय के पक्ष में खड़े रहना।
4. आदर्श चरित्र
जीवनभर उच्च आदर्शों पर चलना और दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनना।
निष्कर्ष
भीष्म पितामह का जीवन त्याग, तप और धर्म की एक अनुपम गाथा है। उन्होंने दिखाया कि व्यक्ति अपने सिद्धांतों पर कैसे अडिग रह सकता है और कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपने कर्तव्य का पालन कैसे कर सकता है। आज के युग में भी उनके आदर्श हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।
भीष्म का चरित्र हमें सिखाता है कि सच्ची महानता व्यक्तिगत सुख में नहीं, बल्कि समाज और धर्म की सेवा में है। उनका जीवन एक संदेश देता है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी प्रतिज्ञाओं के बल पर अमर हो सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भीष्म पितामह का वास्तविक नाम क्या था?
भीष्म पितामह का वास्तविक नाम देवव्रत था। भीषण प्रतिज्ञा लेने के कारण उन्हें भीष्म कहा जाने लगा।
2. भीष्म पितामह के माता-पिता कौन थे?
भीष्म के पिता राजा शांतनु और माता गंगा देवी थीं। गंगा ने मानव रूप धारण करके शांतनु से विवाह किया था।
3. भीष्म पितामह ने कौन सी प्रतिज्ञा ली थी?
भीष्म ने दो प्रतिज्ञाएं लीं: 1) हस्तिनापुर के सिंहासन का त्याग करना, 2) आजीवन ब्रह्मचारी रहना।
4. भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान किसने दिया था?
राजा शांतनु ने अपने पुत्र देवव्रत की भीषण प्रतिज्ञा से प्रभावित होकर उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान दिया था।
5. भीष्म पितामह की मृत्यु कैसे हुई?
कुरुक्षेत्र युद्ध में अर्जुन के हाथों शिखंडी की आड़ में भीष्म की मृत्यु हुई। वे शरशैया पर 58 दिन तक पड़े रहे और उत्तरायण में अपनी इच्छा से प्राण त्यागे।
6. भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को क्या उपदेश दिया?
शरशैया पर पड़े भीष्म ने युधिष्ठिर को राजधर्म, नीति, अर्थशास्त्र और मोक्ष की शिक्षा दी। यह उपदेश महाभारत के शांति पर्व में वर्णित है।
7. भीष्म पितामह को गंगापुत्र क्यों कहते हैं?
भीष्म की माता गंगा देवी थीं, इसलिए उन्हें गंगापुत्र कहा जाता है। गंगा ने उन्हें जन्म देने के बाद राजा शांतनु को सौंप दिया था।
8. भीष्म पितामह का महाभारत युद्ध में क्या योगदान था?
भीष्म ने कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों की ओर से सेनापतित्व किया। वे दस दिनों तक सेनापति रहे और महान वीरता दिखाई।