You are currently viewing नंदी कैसे बने भगवान शिव की सवारी? इसके पीछे छिपी है एक बेहद रहस्यमय पौराणिक कहानी
नंदी कैसे बने भगवान शिव की सवारी

नंदी कैसे बने भगवान शिव की सवारी? इसके पीछे छिपी है एक बेहद रहस्यमय पौराणिक कहानी

परिचय: नंदी और महादेव का अटूट बंधन

क्या आपने कभी सोचा है कि जब भी आप किसी शिव मंदिर में जाते हैं, तो सबसे पहले भगवान शिव के वाहन नंदी के दर्शन क्यों होते हैं? भगवान शिव के मंदिरों में नंदी की मूर्ति हमेशा बाहर क्यों स्थापित की जाती है? और सबसे बड़ा सवाल – एक साधारण बैल नंदी कैसे महादेव के इतने करीब पहुंचा कि उन्हें अपना वाहन बना लिया?

हिंदू पौराणिक कथाओं में नंदी और भगवान शिव का संबंध अत्यंत गहरा और रहस्यमय है। आज हम आपको नंदी की वह अद्भुत कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने उन्हें भोलेनाथ का सबसे विश्वसनीय साथी बना दिया। यह कहानी केवल एक बैल की नहीं, बल्कि भक्ति, समर्पण और अटूट विश्वास की है। आइए जानते हैं वह रहस्यमय कहानी जो आपको हैरान कर देगी…

नंदी कौन हैं? – परिचय और महत्व

नंदी भगवान शिव के सबसे निष्ठावान भक्त और उनके वाहन हैं। संस्कृत में ‘नंदी’ का अर्थ ‘आनंद देने वाला’ होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदी को शिव का द्वारपाल और गणों का नायक माना जाता है। शिव मंदिरों में, नंदी की मूर्ति हमेशा शिव लिंग की ओर मुख करके स्थापित की जाती है, मानो वे हमेशा अपने स्वामी की सेवा में तत्पर हों।

हिंदू शास्त्रों में नंदी को एक दिव्य बैल के रूप में चित्रित किया गया है, जिनका शरीर सफेद चांदी जैसा चमकदार है। वे न केवल भगवान शिव के वाहन हैं, बल्कि उनके सबसे करीबी साथी भी हैं। कहा जाता है कि जब भगवान शिव अपनी डमरू बजाते हैं, तो नंदी उनके संगीत पर थिरकते हैं।

नंदी के विभिन्न रूप और शक्तियां

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, नंदी केवल एक बैल नहीं हैं, बल्कि दिव्य शक्तियों से संपन्न एक देवता हैं। वे योग विद्या के महान ज्ञाता थे और शिव से प्राप्त ज्ञान को संरक्षित रखने वाले प्रथम शिष्य माने जाते हैं। लिंग पुराण और शिव पुराण में उल्लेख है कि नंदी को संगीत का भी गहरा ज्ञान था।

नंदी के कुछ प्रमुख रूप और विशेषताएं हैं:

  • नंदीश्वर: शिव के प्रमुख गणों में से एक
  • वृषभ: पवित्र बैल के रूप में
  • धर्म: धर्म के प्रतीक के रूप में
  • अधर्मनाशक: अधर्म का नाश करने वाले
नंदी-भगवान-शिव-की-दिव्य-सवारी-पौराणिक-कथा

नंदी का जन्म – एक अलौकिक कथा

नंदी का जन्म कोई साधारण घटना नहीं थी। शिव पुराण के अनुसार, एक बार ऋषि शिलाद ने कठोर तपस्या की। वर्षों की तपस्या के बाद भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने ऋषि शिलाद से वरदान मांगने को कहा।

ऋषि शिलाद ने एक ऐसे पुत्र का वरदान मांगा जो अमर हो और भगवान शिव के समान गुणों से युक्त हो। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि वे स्वयं ही उनके पुत्र के रूप में जन्म लेंगे।

कुछ समय बाद, ऋषि शिलाद की पत्नी ने एक दिव्य शिशु को जन्म दिया, जिसका नाम नंदी रखा गया। जन्म से ही नंदी में अलौकिक शक्तियां थीं और उनके शरीर से दिव्य प्रकाश निकलता था।

नंदी की शिक्षा और साधना

नंदी के जन्म के कुछ वर्ष बाद, ऋषि शिलाद ने अपने पुत्र को भगवान शिव की उपासना का महत्व समझाया। छोटे नंदी ने भगवान शिव की आराधना में अपना जीवन समर्पित कर दिया और कठोर तपस्या आरंभ कर दी।

वे दिन-रात “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करते और भगवान शिव का ध्यान करते। उनकी अखंड भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान शिव स्वयं उनके सामने प्रकट हुए। शिव ने नंदी को अपना वाहन बनने का वरदान दिया और उन्हें अपने गणों का नायक बनाया।

नंदी कैसे बने शिव के वाहन – पौराणिक कथा

नंदी के शिव का वाहन बनने की कहानी अत्यंत रोचक है। वामन पुराण और शिव पुराण में इसका विस्तृत विवरण मिलता है।

भगवान-शिव-के-वाहन-नंदी-की-उत्पत्ति-प्राचीन-कथा

दक्ष प्रजापति का शाप

एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से होने पर बहुत क्रोध किया था। उन्होंने एक महायज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव और सती को नहीं बुलाया। जब सती अपने पिता के यज्ञ में बिना निमंत्रण के पहुंचीं, तो दक्ष ने उनका और भगवान शिव का अपमान किया।

अपमानित होकर सती ने अपने पिता के यज्ञ-कुंड में स्वयं को अर्पित कर दिया। यह समाचार सुनकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने वीरभद्र नामक एक शक्तिशाली गण को उत्पन्न किया, जिसने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया।

बाद में, देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव ने दक्ष को जीवित किया, लेकिन उनका मानव सिर बैल के सिर से प्रतिस्थापित किया। कहा जाता है कि यही बैल बाद में नंदी के रूप में पुनर्जन्मित हुआ और भगवान शिव का वाहन बना।

दूसरी पौराणिक कथा – सुरभि की तपस्या

एक अन्य कथा के अनुसार, कामधेनु गाय सुरभि की पुत्री ने भगवान शिव की कठोर आराधना की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान दिया कि उनका पुत्र उनका वाहन बनेगा और उनके गणों का नायक होगा। इस वरदान के बाद, सुरभि ने नंदी को जन्म दिया, जो बाद में भगवान शिव का वाहन बना।

नंदी और शिव का अटूट बंधन

भगवान शिव और नंदी का संबंध मालिक और वाहन से कहीं अधिक गहरा है। वे एक-दूसरे के सबसे विश्वसनीय साथी और सहचर हैं। कैलाश पर्वत पर, नंदी हमेशा भगवान शिव के द्वार पर बैठे रहते हैं और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं।

नंदी की भक्ति और समर्पण

नंदी की भगवान शिव के प्रति भक्ति अनन्य है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव ध्यान में लीन होते हैं, तब नंदी उनकी सुरक्षा करते हैं और किसी को भी उनके पास जाने नहीं देते। वे शिव के संदेशवाहक भी हैं और कई बार उनके आदेशों को पूरा करने के लिए विभिन्न लोकों में जाते हैं।

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी पार्वती के साथ होते हैं, तब नंदी द्वार पर पहरा देते हैं और किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं देते। यही कारण है कि शिव मंदिरों में नंदी की मूर्ति मुख्य मंदिर के बाहर स्थापित की जाती है।

नंदी-और-महादेव-का-अटूट-बंधन-हिंदू-पौराणिक-गाथा

नंदी से जुड़े रोचक तथ्य

नंदी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य, जो आपको हैरान कर सकते हैं:

  1. तंजावुर का विशाल नंदी: तमिलनाडु के बृहदेश्वर मंदिर में स्थित नंदी की मूर्ति एक ही पत्थर से बनी है और लगभग 16 फीट ऊंची और 20 फीट लंबी है।
  2. अनंत शक्तियां: पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदी को अनंत शक्तियां प्राप्त हैं और वे अमर हैं।
  3. संगीत के ज्ञाता: नंदी को संगीत का महान ज्ञाता माना जाता है। कहा जाता है कि उन्होंने ही भगवान शिव को डमरू बजाना सिखाया था।
  4. नंदी का कान: एक प्रचलित मान्यता है कि अगर आप शिव मंदिर में नंदी के कान में अपनी इच्छा बताएं, तो वह उसे सीधे भगवान शिव तक पहुंचा देते हैं।
  5. योगिराज: नंदी को योग विद्या का प्रथम शिष्य माना जाता है। उन्होंने शिव से योग सीखा और फिर इसे मानव जाति को सिखाया।
  6. चांद्र वंश के संस्थापक: कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदी के पुत्र अयन ने चांद्र वंश की स्थापना की थी।
  7. शिव-तांडव के साक्षी: जब भगवान शिव तांडव नृत्य करते हैं, तब नंदी उनके संगीत वाद्य यंत्र बजाते हैं।

नंदी का पूजन – विधि और महत्व

हिंदू धर्म में नंदी का विशेष महत्व है और उनकी पूजा का अपना अलग विधान है:

पूजा विधि

  1. शिव मंदिर में जाते समय सबसे पहले नंदी के दर्शन करें और उन्हें प्रणाम करें।
  2. नंदी के सामने एक दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं।
  3. नंदी को जल अर्पित करें और उनके कान में अपनी मनोकामना बताएं।
  4. “ॐ नंदीश्वराय नमः” मंत्र का जाप करें।

नंदी पूजन का फल

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, नंदी की पूजा से निम्नलिखित फल प्राप्त होते हैं:

  • मनोकामनाओं की पूर्ति
  • शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति
  • भगवान शिव की कृपा प्राप्ति
  • सुख-समृद्धि और दीर्घायु की प्राप्ति
  • अहंकार का नाश और विनम्रता का विकास

नंदी से जुड़े प्रमुख मंदिर

भारत में कई ऐसे प्रसिद्ध मंदिर हैं जहां नंदी की विशाल और अद्भुत मूर्तियां स्थापित हैं:

  1. बृहदेश्वर मंदिर, तंजावुर: यहां स्थित नंदी की मूर्ति एक ही पत्थर से बनी विश्व की सबसे बड़ी नंदी मूर्तियों में से एक है।
  2. चामुंडेश्वरी मंदिर, मैसूर: यहां 4.5 मीटर ऊंची नंदी की मूर्ति है जो काले पत्थर से बनी है।
  3. बसवा मंदिर, बैंगलोर: यहां नंदी को बसवन्ना के नाम से पूजा जाता है, और उनकी विशाल मूर्ति पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है।
  4. लेपाक्षी मंदिर, आंध्र प्रदेश: यहां की नंदी मूर्ति एक विशेष पत्थर से बनी है और इसका अद्भुत नक्काशीदार काम प्रसिद्ध है।
  5. होयसलेश्वर मंदिर, कर्नाटक: यहां स्थित नंदी की मूर्ति अपनी सुंदरता और विशालता के लिए प्रसिद्ध है।
शिव-मंदिर-में-स्थित-नंदी-की-विशाल-प्रतिमा-धार्मिक-दर्शन

शिव भक्त के रूप में नंदी का आदर्श

नंदी भगवान शिव के सबसे निष्ठावान भक्त हैं और हमें भक्ति का सच्चा मार्ग दिखाते हैं। उनके जीवन से हम सभी को कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:

  1. समर्पण की भावना: नंदी ने अपना संपूर्ण जीवन भगवान शिव की सेवा में समर्पित कर दिया, जो हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति में स्वयं को पूरी तरह से अर्पित करने की भावना होती है।
  2. धैर्य और विश्वास: नंदी हमेशा धैर्यपूर्वक भगवान शिव के आदेशों का पालन करते हैं, जो हमें धैर्य और विश्वास का महत्व सिखाता है।
  3. निःस्वार्थ सेवा: नंदी की सेवा निःस्वार्थ है, वे कभी भी किसी प्रतिफल की आशा नहीं करते, जो सच्ची सेवा का आदर्श है।
  4. अनुशासन: नंदी अपने कर्तव्यों का पालन अत्यंत अनुशासन के साथ करते हैं, जो हमें जीवन में अनुशासन का महत्व सिखाता है।
  5. एकाग्रता: भगवान शिव के प्रति नंदी की एकाग्र भक्ति हमें जीवन के लक्ष्य पर केंद्रित रहने की प्रेरणा देती है।

निष्कर्ष

नंदी की कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति, समर्पण और निष्ठा से कोई भी अपने इष्ट के निकट पहुंच सकता है। एक साधारण बैल से लेकर भगवान शिव के सबसे विश्वसनीय सहचर बनने तक का नंदी का सफर हम सभी के लिए प्रेरणादायक है।

भगवान शिव के मंदिरों में नंदी की मूर्ति हमें याद दिलाती है कि हमें अपने जीवन में नंदी जैसी निष्ठा, समर्पण और भक्ति को अपनाना चाहिए। आज भी, हजारों वर्षों बाद, नंदी का आदर्श हमारे जीवन में प्रासंगिक है और हमें सच्चे भक्त बनने की प्रेरणा देता है।

जब भी आप किसी शिव मंदिर में जाएं, नंदी के सामने खड़े होकर उनके कान में अपनी मनोकामना अवश्य बताएं। विश्वास रखिए, वे आपकी बात भगवान शिव तक अवश्य पहुंचाएंगे।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. नंदी भगवान शिव के वाहन कैसे बने?

नंदी अपनी अटूट भक्ति और कठोर तपस्या के कारण भगवान शिव के वाहन बने। पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऋषि शिलाद के पुत्र के रूप में जन्मे नंदी ने भगवान शिव की आराधना की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपना वाहन बनाया।

2. नंदी की पूजा का क्या महत्व है?

नंदी की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। नंदी को भगवान शिव का संदेशवाहक माना जाता है, इसलिए उनके कान में कही गई बातें सीधे भगवान शिव तक पहुंचती हैं।

ऋषि-शिलाद-के-पुत्र-नंदी-भोलेनाथ-के-वाहन-बने

3. नंदी का वास्तविक रूप क्या है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदी एक दिव्य बैल हैं जिनका शरीर सफेद चांदी जैसा चमकदार है। वे भगवान शिव के प्रमुख गणों में से एक हैं और उनके द्वारपाल भी हैं।

4. क्या नंदी सिर्फ एक बैल हैं?

नहीं, नंदी केवल एक बैल नहीं हैं। वे दिव्य शक्तियों से संपन्न एक देवता हैं, जो योग विद्या के महान ज्ञाता और संगीत के पारखी थे। उन्हें भगवान शिव के गणों का नायक भी माना जाता है।

5. शिव मंदिरों में नंदी की मूर्ति बाहर क्यों रखी जाती है?

शिव मंदिरों में नंदी की मूर्ति मुख्य मंदिर के बाहर इसलिए स्थापित की जाती है क्योंकि वे भगवान शिव के द्वारपाल हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदी हमेशा भगवान शिव के द्वार पर बैठे रहते हैं और उनकी सुरक्षा करते हैं।

6. क्या नंदी अमर हैं?

हां, पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने नंदी को अमरत्व का वरदान दिया था। वे कल्प के अंत तक भगवान शिव के साथ रहेंगे।

7. भारत में नंदी की सबसे बड़ी मूर्ति कहां स्थित है?

भारत में नंदी की सबसे बड़ी मूर्ति तमिलनाडु के तंजावुर स्थित बृहदेश्वर मंदिर में है। यह मूर्ति एक ही पत्थर से बनी है और लगभग 16 फीट ऊंची और 20 फीट लंबी है।

8. नंदी की पूजा करने का सही तरीका क्या है?

नंदी की पूजा के लिए, सबसे पहले उन्हें प्रणाम करें, फिर उनके सामने दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं। इसके बाद उन्हें जल अर्पित करें और “ॐ नंदीश्वराय नमः” मंत्र का जाप करें। अंत में, अपनी मनोकामना उनके कान में बताएं।

9. क्या नंदी के अलावा भगवान शिव के अन्य वाहन भी हैं?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव का मुख्य वाहन नंदी है। हालांकि, कुछ कथाओं में उन्हें सिंह, हाथी और अन्य जानवरों पर सवार दिखाया गया है, लेकिन ये विशेष अवसरों पर ही होता है।

10. क्या नंदी और बसवन्ना एक ही हैं?

दक्षिण भारत, विशेष रूप से कर्नाटक में, नंदी को बसवन्ना के नाम से जाना जाता है। हालांकि, कुछ विद्वानों का मानना है कि बसवन्ना 12वीं शताब्दी के एक संत थे जिन्होंने लिंगायत संप्रदाय की स्थापना की थी, और वे नंदी से अलग हैं।

This Post Has One Comment

Leave a Reply