महाभारत के अनेक पात्रों में से भीष्म पितामह एक ऐसे चरित्र हैं जिन्हें कई विद्वान महाभारत का खलनायक मानते हैं। अपने पिता शांतनु से की गई भीष्म प्रतिज्ञा के कारण आजीवन ब्रह्मचारी रहने वाले पितामह भीष्म के जीवन में ऐसे कई पाप हुए जिनके कारण उन्हें अंततः कुरुक्षेत्र के मैदान में अपना अंतिम समय बाणों की शैय्या पर बिताना पड़ा। आइए जानते हैं उन चार घोर पापों के बारे में जिनके कारण भीष्म को यह दुखद अंत मिला।
भीष्म का पूर्व जन्म और श्राप
भीष्म अपने पिछले जन्म में अष्टवसुओं में से एक ‘धौ’ नामक वसु थे। एक बार इन्होंने अपने अन्य साथी वसुओं के साथ महर्षि वशिष्ठ की कामधेनु गाय का हरण कर लिया था। इस कृत्य से क्रोधित होकर वशिष्ठ ऋषि ने धौ से कहा कि ऐसा पाप तो केवल मनुष्य करते हैं, इसलिए तुम आठों वसु मनुष्य योनि में जन्म लो।
इस श्राप से भयभीत होकर सभी वसुओं ने महर्षि वशिष्ठ से क्षमा याचना की। वशिष्ठ ने कहा कि अन्य वसु तो वर्ष के अंत में श्राप से मुक्त हो जाएंगे, लेकिन धौ को एक पूरा जन्म मनुष्य रूप में पीड़ा भोगनी होगी। यही धौ आगे चलकर गंगा की कोख से देवव्रत के रूप में जन्मे, जो बाद में भीष्म पितामह कहलाए।

भीष्म के जीवन का संक्षिप्त परिचय
भीष्म का जन्म राजा शांतनु और गंगा के पुत्र के रूप में हुआ था। उनका मूल नाम देवव्रत था। जब शांतनु ने सत्यवती से विवाह करना चाहा, तो सत्यवती ने शर्त रखी कि केवल उसके पुत्र ही हस्तिनापुर के सिंहासन के उत्तराधिकारी होंगे। इस शर्त को पूरा करने के लिए देवव्रत ने प्रतिज्ञा ली कि वे कभी राज्य का दावा नहीं करेंगे और आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे। इस कठोर प्रतिज्ञा के कारण उन्हें ‘भीष्म’ (भयंकर प्रतिज्ञा लेने वाला) नाम मिला।
हालांकि, हस्तिनापुर सिंहासन की रक्षा और कुरु वंश को बचाने के लिए भीष्म ने अपने जीवन में कई ऐसे कार्य किए जो धर्म की दृष्टि से उचित नहीं थे। इन्हीं कार्यों को उनके चार घोर पाप माना जाता है।
भीष्म द्वारा किए गए 4 घोर पाप
1. काशी की राजकुमारियों का अपहरण
भीष्म का पहला पाप सत्यवती के कहने पर काशी नरेश की तीन पुत्रियों – अंबा, अंबिका और अंबालिका का अपहरण करना था। भीष्म ने इन तीनों राजकुमारियों को सत्यवती के पुत्र विचित्रवीर्य के लिए बलपूर्वक हरण कर लिया और उन्हें हस्तिनापुर ले आए।
बाद में जब अंबा ने बताया कि वह पहले ही शाल्वराज को अपना हृदय दे चुकी है, तो भीष्म ने उसे शाल्वराज के पास भेज दिया। लेकिन शाल्वराज ने उसे स्वीकार नहीं किया। अपमानित अंबा ने बदला लेने की प्रतिज्ञा की और अंततः शिखंडी के रूप में पुनर्जन्म लिया, जिसने कुरुक्षेत्र युद्ध में भीष्म के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
विद्वानों का मानना है कि भीष्म द्वारा अंबा, अंबिका और अंबालिका की भावनाओं को कुचलकर किया गया यह कार्य अमानवीय था और किसी भी धर्म द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता।

2. धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से करवाना
भीष्म का दूसरा पाप गांधारी और उनके पिता सुबल की इच्छा के विरुद्ध धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से करवाना था।
धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन थे, जबकि गांधारी एक सुंदर और गुणवान राजकुमारी थी। गांधारी के पिता सुबल इस विवाह के पक्ष में नहीं थे, लेकिन भीष्म ने अपनी इच्छा थोपकर यह विवाह करवा दिया।
माना जाता है कि इसी कारण गांधारी ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी और आजीवन अंधकार में रहने का संकल्प लिया। अंततः, महाभारत युद्ध के बाद गांधारी को द्रव्य अग्नि में जलकर अपने प्राणों का अंत करना पड़ा।
3. द्रौपदी के चीरहरण के समय मौन रहना
भीष्म का तीसरा पाप भरी सभा में द्रौपदी के चीरहरण के समय मौन रहना था। जब दुर्योधन और दुःशासन द्वारा द्रौपदी का अपमान किया जा रहा था, तब भीष्म चुपचाप बैठे रहे। उन्होंने जानबूझकर दुर्योधन और शकुनि के अनैतिक और छलपूर्ण खेल को चलने दिया।
बाद में, बाणों की शैय्या पर जब भीष्म मृत्यु का सामना कर रहे थे, तब उन्होंने द्रौपदी से इस अधर्म कार्य के लिए क्षमा मांगी थी। इससे पता चलता है कि वे स्वयं भी जानते थे कि उनका मौन रहना अधर्म था।
4. कौरवों के साथ धोखा और पांडवों को अपनी मृत्यु का राज बताना

भीष्म का चौथा पाप कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों के साथ धोखा करना था। जब कौरवों की सेना युद्ध में आगे बढ़ रही थी, ऐसे में भीष्म ने अंत समय में पांडवों को अपनी मृत्यु का रहस्य बताकर कौरवों के साथ विश्वासघात किया।
भीष्म ने पांडवों को बताया कि शिखंडी (अंबा का पुनर्जन्म) को सामने रखकर अर्जुन उन पर प्रहार करें, क्योंकि वे शिखंडी पर हमला नहीं करेंगे। इस प्रकार भीष्म ने कौरवों के साथ धोखा किया और अपनी मृत्यु को स्वीकार कर लिया।
बाणों की शैय्या: करकैंटा के श्राप का फल
कुरुक्षेत्र के युद्ध के दसवें दिन, अर्जुन ने शिखंडी को सामने रखकर भीष्म पर बाणों की वर्षा की। भीष्म ने शिखंडी पर प्रहार नहीं किया क्योंकि वे उसे पहले एक स्त्री मानते थे। इस प्रकार, अर्जुन ने भीष्म को इतने बाणों से बींध दिया कि उनका शरीर पूरी तरह से बाणों से ढक गया और वे धरती पर नहीं गिरे, बल्कि बाणों के सहारे ही टिके रहे। यह बाणशैय्या (बाणों की शैय्या) कहलाई।
बाणों की शैय्या पर लेटे हुए भीष्म ने श्री कृष्ण से पूछा कि हे मधुसूदन, मेरे यह कौन से कर्मों का फल है जो मुझे बाणों की शैय्या मिली?
तब श्री कृष्ण ने बताया कि भीष्म अपने पिछले 101वें जन्म में एक राजकुमार थे। एक दिन शिकार पर निकले हुए थे जब एक करकैंटा नामक जीव एक वृक्ष से नीचे गिरकर उनके घोड़े के अग्रभाग पर बैठ गया था। भीष्म ने उसे बाण से उठाकर पीछे फेंक दिया था, जिससे वह बेरिया के पेड़ पर जाकर गिरा और बेरिया के कांटे उसकी पीठ में धंस गए।
करकैंटा जितना निकलने की कोशिश करता, उतना ही कांटे उसकी पीठ में और घुस जाते। इस प्रकार करकैंटा 18 दिन तक जीवित रहा और ईश्वर से यही प्रार्थना करता रहा कि “हे युवराज, जिस प्रकार मैं तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूं, ठीक इसी प्रकार तुम भी तड़प-तड़प कर मृत्यु को प्राप्त होओगे।”
भीष्म को भी 18 दिन तक बाणों की शैय्या पर तड़पना पड़ा, जो करकैंटा के श्राप का फल था।

भीष्म की बाणशैय्या से सीख
भीष्म की त्रासदी से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:
- धर्म का महत्व: हमें हमेशा धर्म का पालन करना चाहिए, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।
- अन्याय का विरोध: अन्याय देखकर चुप रहना भी एक पाप है। भीष्म द्रौपदी के अपमान के समय मौन रहे, जिसका उन्हें भारी मूल्य चुकाना पड़ा।
- कर्म का सिद्धांत: हर कर्म का फल मिलता है। भीष्म के चार पापों के परिणामस्वरूप उन्हें बाणशैय्या पर पीड़ा सहनी पड़ी।
- स्त्री सम्मान: महिलाओं का अपमान या उनके प्रति अन्याय करने वालों को कड़ा दंड मिलता है। अंबा के अपमान ने अंततः भीष्म के पतन की नींव रखी।
क्या भीष्म को खलनायक माना जा सकता है?
अनेक विद्वानों का मानना है कि भीष्म को महाभारत का खलनायक माना जाना चाहिए। हालांकि, भीष्म द्वारा किए गए इन चारों पापों के बावजूद उन्हें पूर्णतः खलनायक नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि भीष्म ने जो भी किया, वह हस्तिनापुर के सिंहासन की रक्षा और कुरु वंश को बचाने के लिए किया था।
भीष्म का चरित्र एक जटिल चरित्र है, जिसमें त्याग और अधर्म दोनों के तत्व मिले हुए हैं। उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि शुद्ध भक्ति और अच्छे उद्देश्य के बावजूद, अगर हम अधर्म का साथ देते हैं तो हमें उसका फल अवश्य भुगतना पड़ता है।
भीष्म के जीवन से प्रेरणा
भीष्म के जीवन में उनके पापों के बावजूद, हमें उनके जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिलता है:
- प्रतिज्ञा का पालन: भीष्म ने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा का जीवन भर पालन किया, जो उनके दृढ़ चरित्र का प्रमाण है।
- त्याग की भावना: अपने पिता के सुख और राज्य के हित के लिए उन्होंने राज्य और विवाह का त्याग कर दिया।
- ज्ञान का महत्व: बाणशैय्या पर पड़े हुए उन्होंने अपने अंतिम समय में भी दूसरों को धर्म और नीति का ज्ञान दिया।
- प्रायश्चित की भावना: भीष्म ने अपने पापों के लिए बाणशैय्या पर पीड़ा सहकर प्रायश्चित किया और अपने कर्मों का फल स्वीकार किया।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भीष्म को बाणशैय्या पर कितने दिन तक पीड़ा सहनी पड़ी?
भीष्म को कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद 18 दिनों तक बाणशैय्या पर पीड़ा सहनी पड़ी। यह उनके पिछले जन्म में करकैंटा नामक जीव को 18 दिनों तक पीड़ित करने के पाप का फल था।
2. भीष्म अपने पिछले जन्म में कौन थे?
भीष्म अपने पिछले जन्म में अष्टवसुओं में से एक ‘धौ’ नामक वसु थे, जिन्हें महर्षि वशिष्ठ के श्राप के कारण मनुष्य रूप में जन्म लेना पड़ा था।
3. भीष्म ने अंबा का हरण क्यों किया?
भीष्म ने सत्यवती के कहने पर अपने सौतेले भाई विचित्रवीर्य के लिए काशी की तीन राजकुमारियों – अंबा, अंबिका और अंबालिका का हरण किया था।

4. शिखंडी कौन था और उसका भीष्म से क्या संबंध था?
शिखंडी अंबा का पुनर्जन्म था, जिसने भीष्म से बदला लेने के लिए पुनर्जन्म लिया था। कुरुक्षेत्र युद्ध में, अर्जुन ने शिखंडी को सामने रखकर भीष्म पर प्रहार किया, क्योंकि भीष्म ने प्रतिज्ञा की थी कि वे महिला पर प्रहार नहीं करेंगे।
5. भीष्म उपदेश क्या है?
भीष्म उपदेश महाभारत का वह हिस्सा है जिसमें भीष्म पितामह ने बाणशैय्या पर पड़े हुए युधिष्ठिर और अन्य पांडवों को राजनीति, धर्म, नैतिकता और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उपदेश दिए।
6. भीष्म की मृत्यु के बाद क्या हुआ?
भीष्म की मृत्यु के बाद, कहा जाता है कि उनकी आत्मा सीधे स्वर्ग चली गई, जहां उन्हें वसुओं में से एक के रूप में पहचाना गया, क्योंकि वे वास्तव में अष्टवसुओं में से एक धौ के अवतार थे।
7. करकैंटा कौन था और उसका श्राप क्या था?
करकैंटा एक जीव था जिसे भीष्म ने अपने पिछले 101वें जन्म में एक राजकुमार के रूप में पीड़ित किया था। करकैंटा ने भीष्म को श्राप दिया था कि जिस प्रकार वह 18 दिन तक तड़प-तड़प कर मर रहा है, उसी प्रकार भीष्म भी तड़प-तड़प कर मरेंगे।
निष्कर्ष
भीष्म पितामह महाभारत के सबसे जटिल और विरोधाभासी चरित्रों में से एक हैं। वे एक महान योद्धा, एक विद्वान और एक त्यागी थे, लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कुछ ऐसे पाप भी किए जिनके कारण उन्हें बाणशैय्या पर असहनीय पीड़ा सहनी पड़ी।
उनके जीवन से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा धर्म का पालन करना चाहिए, अन्याय का विरोध करना चाहिए, महिलाओं का सम्मान करना चाहिए और अपने कर्मों के फल के लिए तैयार रहना चाहिए। भले ही भीष्म ने सब कुछ हस्तिनापुर की रक्षा और कुरु वंश को बचाने के लिए किया हो, लेकिन उन्हें अपने अधर्म पूर्ण कार्यों का फल तो भुगतना ही पड़ा।
भीष्म की त्रासदी हमें याद दिलाती है कि महानता और शक्ति के बावजूद, हर किसी को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। यह हमें अपने जीवन में धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
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