महाभारत युद्ध में ऐसे कई योद्धा थे जिन्होंने अपने अद्भुत कौशल से इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाया। परंतु कुछ योद्धाओं के बारे में हम कम ही जानते हैं, उनमें से एक थे कृतवर्मा। क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा कौन सा योद्धा था जिसे सारे पांडव मिलकर भी महाभारत के युद्ध में न मार पाए? हां, वह थे कृतवर्मा – यादव वंश के महान योद्धा, जिन्होंने कौरवों का साथ दिया था। आज हम इस रहस्यमयी योद्धा के जीवन, उनके पराक्रम और उनके अंतिम दिनों के बारे में विस्तार से जानेंगे। अश्वत्थामा और कृपाचार्य के अतिरिक्त एक वहीं योद्धा थे| जो कौरव पक्ष में जीवित बचे थे|
कौन थे कृतवर्मा?
कृतवर्मा यादव वंश के प्रमुख योद्धाओं में से एक थे। वे भोजराज हृदिक के पुत्र थे और इसीलिए उन्हें हार्दिक्य भी कहा जाता था। कृतवर्मा वृष्णि वंश के सात सेना नायकों में से थे|
वे श्रीकृष्ण और बलराम के रिश्तेदार थे और द्वारका में रहते थे। यादव वंश के एक प्रमुख सदस्य होने के बावजूद, कृतवर्मा ने महाभारत युद्ध में कौरवों का साथ दिया था।
कृतवर्मा का नाम ही उनके चरित्र को दर्शाता है – ‘कृत’ का अर्थ है ‘किया हुआ’ और ‘वर्मा’ का अर्थ है ‘कवच’। अर्थात् वे एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने कर्मों से अपना कवच स्वयं बनाया था। उनके पास अद्भुत युद्धकौशल और दिव्य अस्त्र-शस्त्र थे। वे अपने समय के महान धनुर्धरों में से एक थे।
कृतवर्मा का प्रारंभिक जीवन
यद्यपि महाभारत में कृतवर्मा के प्रारंभिक जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती, फिर भी यह जाना जाता है कि वे बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र चलाने में निपुण थे। यादव वंश में जन्म लेकर उन्होंने युद्ध कला में महारथ हासिल की थी।
कृतवर्मा के बारे में एक रोचक तथ्य यह है कि वे श्रीकृष्ण के साथ सांदीपनि आश्रम में शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। यहीं पर उन्होंने धनुर्विद्या में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनकी युद्ध कौशल की प्रतिभा को देखकर आचार्य सांदीपनि ने उन्हें कई दिव्य अस्त्रों का ज्ञान भी दिया था।
महाभारत के आदिपर्व के अनुसार वह एक अच्छे धनुर्धर थे| उन्होंने कुरुक्षेत्र युद्ध के संपूर्ण अठारह दिनों तक युद्ध लड़ा था| यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं थी| युद्ध आरंभ होने से पहले जब दुर्योधन और अर्जुन श्री कृष्ण के पास सहायता के लिए पहुंचे थे|
तो वहां दुर्योधन ने श्रीकृष्ण से नारायणी सेना मांग ली थी| यही कारण था कि यादव होते हुए भी वे कौरव पक्ष की ओर से लड़े थे| क्योंकि श्री कृष्ण ने दुर्योधन को नारायणी सेना देने का वचन दे चुके थे|
महाभारत युद्ध में कृतवर्मा का योगदान
महाभारत के युद्ध से पहले, जब दोनों पक्षों के बीच सेना विभाजन हो रहा था, तब यादव वंश के सदस्यों में भी मतभेद था। कृष्ण ने अपनी सेना दुर्योधन को दी और स्वयं अर्जुन के सारथी बने। कृतवर्मा ने एक नारायणी सेना (यादव सैनिकों) के साथ कौरवों का साथ दिया, जबकि सात्यकि पांडवों के पक्ष में थे।
युद्ध के दौरान कृतवर्मा के पराक्रम की कई घटनाएँ हैं:
- पहले दिन का युद्ध: कृतवर्मा ने युद्ध के पहले दिन ही अपनी वीरता दिखाते हुए कई पांडव सैनिकों को परास्त किया।
- अभिमन्यु वध में भूमिका: चक्रव्यूह में फँसे अभिमन्यु के वध में कृतवर्मा की भी महत्वपूर्ण भूमिका थी। वे उन सात महारथियों में से एक थे जिन्होंने मिलकर अभिमन्यु का वध किया था।
- द्रौपदी के पुत्रों का वध: युद्ध के अंतिम दिनों में अश्वत्थामा द्वारा पांडवों के शिविर पर रात में किए गए हमले में कृतवर्मा और कृपाचार्य ने भी साथ दिया था, जिसमें द्रौपदी के पाँचों पुत्र मारे गए थे।
- दुर्योधन की सुरक्षा: जब भीम ने दुर्योधन को गदा युद्ध में घायल कर दिया, तब कृतवर्मा ही थे जिन्होंने दुर्योधन की रक्षा की थी।

क्यों नहीं मार पाए पांडव कृतवर्मा को?
महाभारत के 18 दिवसीय युद्ध में कृतवर्मा का अद्भुत योगदान रहा, परंतु सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि वे उन गिने-चुने योद्धाओं में से थे जो युद्ध के अंत तक जीवित रहे। इसके पीछे कई कारण थे:
- अद्भुत योद्धा: कृतवर्मा अपने समय के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक थे। उनके पास दिव्य अस्त्र-शस्त्र और अद्भुत युद्ध कौशल था।
- रणनीतिक कौशल: वे केवल शारीरिक शक्ति से ही नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता से भी लड़ते थे। उन्होंने हमेशा अपनी स्थिति को समझकर युद्ध किया।
- दिव्य कवच: कई पौराणिक स्रोतों के अनुसार, कृतवर्मा के पास एक दिव्य कवच था जो उन्हें अजेय बनाता था। यह कवच उन्हें अधिकांश हथियारों से सुरक्षित रखता था।
- श्रीकृष्ण का आशीर्वाद: कुछ कथाओं के अनुसार, कृतवर्मा को श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त था जिसके कारण वे युद्ध में अजेय रहे।
- विशेष वरदान: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कृतवर्मा को भगवान शिव से एक विशेष वरदान प्राप्त था कि उन्हें कोई भी पांडव युद्ध में नहीं मार सकता।
इन सभी कारणों से, पांडव युद्ध के दौरान कृतवर्मा को परास्त नहीं कर पाए, हालांकि उन्होंने कई बार प्रयास किया था।
युद्ध के बाद कृतवर्मा का जीवन
महाभारत युद्ध के बाद कृतवर्मा द्वारका लौट आए। वे अभी भी यादव वंश के प्रमुख योद्धाओं में से एक थे। हालांकि, अभिमन्यु वध और द्रौपदी के पुत्रों के वध में उनकी भूमिका के कारण, पांडवों के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण रहे।
द्वारका में वापस आने के बाद, कृतवर्मा ने श्रीकृष्ण के साथ रहकर यादव वंश की सेवा की। वे श्रीकृष्ण के प्रमुख सलाहकारों में से एक बन गए और द्वारका के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कृतवर्मा का अंत
कृतवर्मा का अंत भी बड़ा दुखद और रहस्यमयी था। महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद, एक विचित्र घटना घटी। प्रभास तीर्थ (वर्तमान सौराष्ट्र, गुजरात) पर यादव वंश का एक बड़ा उत्सव आयोजित किया गया था। इस उत्सव में मदिरापान के कारण यादववंशियों के बीच आपस में झगड़ा हो गया।
इस झगड़े में सात्यकि, जो युद्ध में पांडवों के पक्ष में थे, ने कृतवर्मा पर अभिमन्यु वध और द्रौपदी के पुत्रों के वध में शामिल होने का आरोप लगाया। गुस्से में आकर सात्यकि ने कृतवर्मा पर हमला कर दिया और उनका वध कर दिया। इस प्रकार, जिस योद्धा को महाभारत के विनाशकारी युद्ध में भी कोई मार नहीं पाया था, उसका अंत एक आंतरिक कलह में हुआ।
कृतवर्मा की मृत्यु के बाद, यादव वंश में भीषण गृह युद्ध छिड़ गया, जिसमें लगभग सभी यादव मारे गए। यह घटना यादव वंश के विनाश और द्वारका के पतन का कारण बनी।
कृतवर्मा के बारे में अनसुने तथ्य
- राजसूय यज्ञ में उपस्थिति: कृतवर्मा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में सम्मानित अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इससे पता चलता है कि युद्ध से पहले पांडवों के साथ उनके अच्छे संबंध थे।
- जरासंध वध में भूमिका: कुछ स्रोतों के अनुसार, कृतवर्मा ने जरासंध के विरुद्ध अभियान में श्रीकृष्ण और भीम की सहायता की थी।
- शिशुपाल वध के समय उपस्थिति: जब श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ के दौरान शिशुपाल का वध किया, तब कृतवर्मा वहां मौजूद थे और उन्होंने श्रीकृष्ण का समर्थन किया था।
- युयुत्सु के साथ मित्रता: युद्ध के दौरान, धृतराष्ट्र के पुत्र युयुत्सु (जो पांडवों के पक्ष में थे) के साथ कृतवर्मा की अच्छी मित्रता थी, भले ही वे विपरीत पक्षों में थे।
- कर्ण के साथ विशेष संबंध: कृतवर्मा और कर्ण के बीच विशेष मित्रता थी। दोनों ने कई बार एक साथ युद्ध किया था।
कृतवर्मा का हिंदू मिथकों में महत्व
कृतवर्मा का चरित्र हिंदू मिथकों में कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों को दर्शाता है:
- कर्म का सिद्धांत: कृतवर्मा का अंत दर्शाता है कि हर कर्म का फल मिलता है। अभिमन्यु वध और द्रौपदी के पुत्रों के वध में भाग लेने के कारण, अंततः उन्हें अपना जीवन खोना पड़ा।
- निष्ठा का महत्व: कृतवर्मा ने एक बार दुर्योधन का साथ चुना तो अंत तक उसके साथ रहे, भले ही उन्हें पता था कि उनके रिश्तेदार श्रीकृष्ण विपरीत पक्ष में थे।
- युद्ध नैतिकता: कृतवर्मा का चरित्र युद्ध की नैतिकता पर भी प्रश्न उठाता है। विशेष रूप से अभिमन्यु वध और द्रौपदी के पुत्रों के वध में उनकी भूमिका युद्ध के अनैतिक पहलुओं को दर्शाती है।
- विनाश के चक्र: कृतवर्मा का अंत और उसके बाद यादव वंश का विनाश दर्शाता है कि हिंसा और प्रतिशोध के चक्र से कैसे पूरे समाज का विनाश हो सकता है।
कृतवर्मा: साहित्य और लोककथाओं में
कृतवर्मा का चरित्र केवल महाभारत तक ही सीमित नहीं है। भारत के विभिन्न हिस्सों में उनसे जुड़ी कई लोककथाएँ और परंपराएँ हैं:
- दक्षिण भारत में: तमिलनाडु और केरल के कुछ हिस्सों में कृतवर्मा को एक महान योद्धा के रूप में पूजा जाता है। यहां उनके नाम पर कई मंदिर भी हैं।
- गुजरात में: सौराष्ट्र क्षेत्र में कृतवर्मा से जुड़े कई स्थान हैं, जहां लोग उन्हें एक स्थानीय नायक के रूप में याद करते हैं।
- आधुनिक साहित्य: आधुनिक समय में भी कई लेखकों ने कृतवर्मा के चरित्र पर आधारित कहानियां और उपन्यास लिखे हैं, जिनमें उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।

निष्कर्ष
कृतवर्मा महाभारत के उन रहस्यमयी और जटिल चरित्रों में से एक हैं, जिन्हें सरल रूप में परिभाषित करना मुश्किल है। वे एक महान योद्धा थे जिन्हें सारे पांडव मिलकर भी युद्ध में नहीं मार पाए, परंतु अंततः उनका अंत एक आंतरिक कलह में हुआ।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि युद्ध में वीरता और कौशल महत्वपूर्ण हैं, परंतु नैतिकता और कर्म का फल भी उतना ही महत्वपूर्ण है। कृतवर्मा का चरित्र महाभारत के उन कई पहलुओं को उजागर करता है जो आज भी प्रासंगिक हैं – निष्ठा, कर्तव्य, नैतिकता और कर्म का फल।
आज के समय में, जब हम अपने जीवन में कई निर्णय लेते हैं, कृतवर्मा का चरित्र हमें याद दिलाता है कि हर निर्णय के परिणाम होते हैं, और कभी-कभी हमारे पिछले कर्म ही हमारे भविष्य का निर्धारण करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. कृतवर्मा किस वंश से संबंधित थे?
कृतवर्मा यादव वंश से संबंधित थे। वे हृदिक के पुत्र थे और इसीलिए उन्हें हार्दिक्य भी कहा जाता था। वे श्रीकृष्ण और बलराम के रिश्तेदार थे।
2. महाभारत युद्ध में कृतवर्मा किस पक्ष में थे?
महाभारत युद्ध में कृतवर्मा कौरवों के पक्ष में थे। उन्होंने एक नारायणी सेना (यादव सैनिकों) के साथ दुर्योधन का साथ दिया था।
3. कृतवर्मा को पांडव क्यों नहीं मार पाए?
कृतवर्मा एक अद्भुत योद्धा थे, जिनके पास दिव्य अस्त्र-शस्त्र और विशेष कवच था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, उन्हें श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि उन्हें कोई भी पांडव युद्ध में नहीं मार सकता।
4. कृतवर्मा की मृत्यु कैसे हुई?
महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद, प्रभास तीर्थ पर एक उत्सव के दौरान, सात्यकि ने कृतवर्मा पर अभिमन्यु वध और द्रौपदी के पुत्रों के वध में शामिल होने का आरोप लगाया और गुस्से में आकर उनका वध कर दिया।
5. क्या कृतवर्मा अभिमन्यु वध में शामिल थे?
हां, कृतवर्मा उन सात महारथियों में से एक थे जिन्होंने मिलकर चक्रव्यूह में फँसे अभिमन्यु का वध किया था।
6. कृतवर्मा और श्रीकृष्ण के बीच क्या संबंध था?
कृतवर्मा और श्रीकृष्ण यादव वंश के सदस्य होने के कारण रिश्तेदार थे। दोनों ने एक साथ आचार्य सांदीपनि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की थी। हालांकि महाभारत युद्ध में वे विपरीत पक्षों में थे, परंतु युद्ध के बाद कृतवर्मा श्रीकृष्ण के साथ द्वारका में रहे और उनके प्रमुख सलाहकारों में से एक बने।
7. क्या कृतवर्मा द्रौपदी के पुत्रों के वध में शामिल थे?
हां, युद्ध के अंतिम दिनों में अश्वत्थामा द्वारा पांडवों के शिविर पर रात में किए गए हमले में कृतवर्मा और कृपाचार्य ने भी साथ दिया था, जिसमें द्रौपदी के पाँचों पुत्र मारे गए थे।
8. कृतवर्मा को किन-किन दिव्य अस्त्रों का ज्ञान था?
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, कृतवर्मा को कई दिव्य अस्त्रों का ज्ञान था, जिनमें ब्रह्मास्त्र, वायव्यास्त्र और अग्निअस्त्र प्रमुख थे। वे इन अस्त्रों का प्रयोग युद्ध में बड़ी कुशलता से करते थे।
9. क्या कृतवर्मा यादव वंश के विनाश में शामिल थे?
कृतवर्मा की मृत्यु यादव वंश के विनाश का एक प्रमुख कारण बनी। उनकी हत्या के बाद, यादवों के बीच भीषण गृह युद्ध छिड़ गया, जिसमें अधिकांश यादव मारे गए।
10. कृतवर्मा का हिंदू धर्म में क्या महत्व है?
कृतवर्मा का चरित्र हिंदू धर्म में कर्म के सिद्धांत, निष्ठा के महत्व और युद्ध नैतिकता के संदेशों को दर्शाता है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि हर कर्म का फल मिलता है और कभी-कभी हमारे पिछले कर्म ही हमारे भविष्य का निर्धारण करते हैं।