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कौन से है महाभारत युद्ध के 10 प्रसिद्ध श्राप ? क्या है इन श्राप के पीछे की कहानी ?

क्या आपने कभी सोचा है कि महाभारत का युद्ध सिर्फ कौरवों और पांडवों के बीच का संघर्ष नहीं था, बल्कि यह कई प्राचीन श्रापों का परिणाम भी था? आज हम जानेंगे महाभारत के उन 10 प्रसिद्ध श्रापों के बारे में, जिन्होंने न सिर्फ महाभारत युद्ध को जन्म दिया, बल्कि इस महाकाव्य के कई महत्वपूर्ण पात्रों के जीवन को भी बदल दिया। इन श्रापों की कहानियां आपको हैरान कर देंगी और आपको समझ आएगा कि कैसे एक छोटा सा श्राप भी इतिहास की दिशा बदल सकता है।

1. भीष्म को मिला श्राप – गंगा पुत्र का भीष्म प्रतिज्ञा 

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महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में से एक, भीष्म पितामह को भी एक श्राप झेलना पड़ा था। जब राजकुमार देवव्रत बने भीष्म, तो उन्होंने अपने पिता शांतनु के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य का प्रण लिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अपने पूर्व जन्म में वे अष्ट वसुओं में से एक थे, जिन्हें ऋषि वशिष्ठ ने श्राप दिया था?

वसुओं ने वशिष्ठ की कामधेनु गाय को चुराने का प्रयास किया था, जिससे क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दिया। सात वसुओं को अल्पकालिक मानव जीवन मिला, क्योकि माँ गंगा ने सातों वसुओं को पैदा होते ही नदी में बहा दिया था| जबकि द्यौ, जिन्होंने वास्तव में गाय को चुराया था, उन्हें भीष्म के रूप में लंबा जीवन जीना पड़ा और कुरुक्षेत्र के युद्ध में दर्दनाक मृत्यु झेलनी पड़ी।

2. कर्ण को मिला श्राप – गुरु परशुराम का कोप

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कर्ण महाभारत के सबसे त्रासदिक पात्रों में से एक हैं। सूत पुत्र समझे जाने के बावजूद, उन्होंने महान धनुर्धर बनने के लिए परशुराम से शिक्षा प्राप्त की। लेकिन एक दिन जब परशुराम उनकी गोद में सिर रखकर सो रहे थे, एक विषैले कीड़े ने कर्ण को काटा। कर्ण ने अपनी पीड़ा छिपाई, ताकि गुरु की नींद न टूटे।

जब परशुराम की आंखें खुलीं और उन्होंने कर्ण की जांघ से बहते खून को देखा, उन्होंने तुरंत समझ लिया कि कर्ण क्षत्रिय है, ब्राह्मण नहीं। क्रोधित होकर उन्होंने कर्ण को श्राप दिया कि जब उसे अपने शस्त्र-ज्ञान की सबसे अधिक आवश्यकता होगी, तब वह उसे भूल जाएगा। यही कारण था कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में कर्ण अर्जुन के सामने अपना ब्रह्मास्त्र भूल गए।

3. द्रोणाचार्य को मिला श्राप – अकृतज्ञता का परिणाम

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द्रोणाचार्य महान गुरु थे, जिन्होंने कौरवों और पांडवों दोनों को शिक्षा दी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका जन्म भी एक श्राप के कारण हुआ था? भारद्वाज ऋषि को घृताची अप्सरा देखकर वीर्यपात हो गया था। इस वीर्य को एक द्रोण (पात्र) में रखा गया, जिससे द्रोणाचार्य का जन्म हुआ।

द्रोणाचार्य ने अपने मित्र द्रुपद को अपमानित किया था, जिसने बदले में यज्ञ करके धृष्टद्युम्न और द्रौपदी को जन्म दिया। धृष्टद्युम्न का जन्म विशेष रूप से द्रोणाचार्य को मारने के लिए हुआ था। यह एक प्रकार का श्राप ही था जो युद्ध में सच हुआ, जब धृष्टद्युम्न ने निहत्थे द्रोणाचार्य का वध किया।

4. पांडवों का अज्ञातवास – युधिष्ठिर के जुए का श्राप

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पांडवों को 13 वर्ष का वनवास और अज्ञातवास भोगना पड़ा। यह सीधे तौर पर श्राप नहीं था, लेकिन युधिष्ठिर के द्यूत (जुआ) खेलने के दुर्व्यसन का परिणाम था। कई विद्वानों का मानना है कि युधिष्ठिर को यह दुर्व्यसन उनके पूर्व जन्म के किसी श्राप के कारण मिला था।

नल राजा की कहानी महाभारत में भी आती है, जिन्हें कलि ने जुआ खेलने का भूत सवार कर दिया था। युधिष्ठिर को वनवास के दौरान नल की कहानी सुनाई गई थी, जिससे उन्हें सांत्वना मिली। दोनों कहानियों में समानता यह थी कि दोनों राजाओं को अपने राज्य से वंचित होकर वन में जाना पड़ा था।

5. श्रीकृष्ण का श्राप – गांधारी का अभिशाप गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप

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महाभारत युद्ध के बाद, जब गांधारी अपने सौ पुत्रों की मृत्यु पर विलाप कर रही थीं, उन्होंने श्रीकृष्ण को श्राप दिया। गांधारी ने कहा कि जिस प्रकार उन्होंने अपने परिवार को नष्ट होते देखा, उसी प्रकार श्रीकृष्ण भी अपने पूरे यदुवंश को नष्ट होते देखेंगे।

36 वर्ष बाद, यह श्राप सच हुआ। यदुवंश के युवक तपस्वी ऋषियों और मुनियों का अपमान करने के कारण  श्राप पाते हैं। फलस्वरूप, यदुवंशी आपस में लड़कर नष्ट हो जाते है और श्रीकृष्ण एक शिकारी के तीर से अपना शरीर त्यागते हैं।


6. अश्वत्थामा को मिला श्राप – रक्तपिपासु प्रतिशोध का परिणाम

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अश्वत्थामा ने महाभारत युद्ध के अंत में, रात के समय पांडवों के शिविर पर हमला करके पांडव पुत्रों की हत्या कर दी थी। क्रोधित द्रौपदी ने भीम और अर्जुन को अश्वत्थामा का वध करने के लिए भेजा।

जब अश्वत्थामा पकड़ा गया, तो उसने अर्जुन पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। श्रीकृष्ण ने उसका अंत करने के बजाय, उसे अमर होने का श्राप दिया – उसके सिर का मणि छीन लिया और उसे श्राप दिया कि वह 3000 वर्षों तक पीड़ा और अकेलेपन में भटकता रहेगा। कहते हैं कि आज भी अश्वत्थामा पृथ्वी पर भटक रहा है।

7. पांडु को मिला श्राप – मृग दंपति की करुण कहानी

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पांडवों के पिता पांडु एक महान शिकारी थे। एक दिन उन्होंने संयोगवश ऋषि किंदम और उनकी पत्नी को, जो मृग रूप में प्रेम कर रहे थे, तीर मारकर घायल कर दिया। मरते हुए ऋषि ने पांडु को श्राप दिया कि जब भी वे अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाएंगे, वे मर जाएंगे।

इस श्राप के कारण पांडु ने राज्य त्याग दिया और वन में चले गए। बाद में, माद्री के साथ शारीरिक संबंध बनाने पर उनकी मृत्यु हो गई। इस श्राप के कारण ही कुंती और माद्री को देवताओं से वरदान लेना पड़ा, जिससे पांडवों का जन्म हुआ।

8. जरासंध को मिला श्राप – विभाजित जन्म का अभिशाप

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मगध नरेश जरासंध, कृष्ण के प्रमुख शत्रुओं में से एक था। उसका जन्म दो टुकड़ों में हुआ था, जिसे एक राक्षसी जरा ने जोड़ा था। यह जन्म एक प्रकार का श्राप ही था, जिसके कारण वह दो टुकड़ों में विभाजित होकर ही मर सकता था।

महाभारत में, श्रीकृष्ण के निर्देश पर भीम ने जरासंध को मल्लयुद्ध में पराजित करके, उसके शरीर को दो भागों में चीरकर उसका वध किया। इस प्रकार उसके जन्म का श्राप ही उसकी मृत्यु का कारण बना।

9. शिखंडी का श्राप – अंबा का प्रतिशोध

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अंबा, काशीराज की पुत्री थी, जिसे भीष्म ने अपने भाई विचित्रवीर्य के लिए अपहरण किया था। लेकिन अंबा पहले से ही शाल्वराज को समर्पित थी। जब वह शाल्व के पास गई, तो उसने उसे अस्वीकार कर दिया। भीष्म ने भी उसे स्वीकार नहीं किया।

अपमानित अंबा ने भीष्म को मारने का संकल्प लिया। कठोर तपस्या के बाद, उसे वरदान मिला कि वह अगले जन्म में भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। अंबा शिखंडी के रूप में पुनर्जन्म लेती है, जिसके सामने भीष्म युद्ध में शस्त्र नहीं उठाते और अर्जुन के बाणों से घायल होकर गिर जाते हैं।

10. कौरवों को मिला श्राप – विदुर की चेतावनी और गांधारी का संताप

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कौरवों का जन्म भी एक प्रकार के श्राप से जुड़ा है। गांधारी को 100 पुत्रों का वरदान मिला था, लेकिन उन्होंने दो वर्षों तक गर्भ धारण किया और अंत में एक मांस के पिंड को जन्म दिया। व्यास ने इस पिंड के 101 टुकड़े करके घड़ों में रखवा दिया, जिनसे 100 कौरव और एक दुश्शला का जन्म हुआ।

विदुर ने धृतराष्ट्र को चेतावनी दी थी कि दुर्योधन अपने वंश का विनाश करेगा। यह चेतावनी एक प्रकार का श्राप बन गई, जो अंततः महाभारत युद्ध में पूरी हुई, जब सभी कौरव मारे गए।

तो दोस्तों, ये थे महाभारत के 10 प्रसिद्ध श्राप, जिन्होंने इस महाकाव्य के पात्रों के जीवन को प्रभावित किया और अंततः महाभारत युद्ध का कारण बने। इन कहानियों से हमें यह सीख मिलती है कि कर्म का फल अवश्य मिलता है, चाहे वह इस जन्म में हो या अगले जन्म में। प्राचीन ग्रंथों में श्राप को एक शक्तिशाली तत्व माना गया है, जिससे भाग्य की दिशा ही बदल जाती है।

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