क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे सनातन धर्म में मृत्यु के समय तुलसी पत्र और गंगाजल का उपयोग क्यों किया जाता है? यह केवल एक धार्मिक रीति-रिवाज नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक कारण छुपे हुए हैं। आज हम इस पवित्र परंपरा के रहस्यों को खोलेंगे और जानेंगे कि क्यों हमारे पूर्वजों ने इस महत्वपूर्ण प्रथा को स्थापित किया था।
मृत्यु के समय तुलसी पत्र और गंगाजल का महत्व
धार्मिक और शास्त्रीय आधार
हिंदू धर्म के अनुसार, मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं। गरुड़ पुराण में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि मरने वाले व्यक्ति के मुंह में तुलसी दल और गंगाजल डालने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक सिद्धांत हैं।
स्कंद पुराण में कहा गया है:
“तुलसी दल युक्तं जलं यो पिबेत् मरणे काले। स गच्छति परं धाम यत्र न म्रियते पुनः।।”
अर्थात् जो व्यक्ति मृत्यु के समय तुलसी युक्त जल पीता है, वह उस परम धाम को प्राप्त करता है जहां से पुनः मृत्यु नहीं होती।
तुलसी का आध्यात्मिक महत्व
भगवान विष्णु की प्रिया तुलसी
तुलसी को भगवान विष्णु की सबसे प्रिय माना जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, तुलसी देवी वृंदा का अवतार है। जब व्यक्ति के मुंह में तुलसी पत्र रखा जाता है, तो माना जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं उस आत्मा का स्वागत करने आते हैं।
पवित्रता का प्रतीक
पद्म पुराण में उल्लिखित है कि तुलसी के पत्ते में भगवान के सभी तीर्थों का वास होता है। यही कारण है कि तुलसी को “सर्वतीर्थमयी” कहा जाता है। मृत्यु के समय इसका उपयोग आत्मा को पवित्र करने के लिए किया जाता है।
गंगाजल का महत्व और प्रभाव
पापों का नाश
गंगा को माता गंगा के रूप में पूजा जाता है। गंगा स्तोत्र में कहा गया है:
“गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।।”
गंगाजल में सभी पवित्र नदियों का आह्वान किया जाता है। माना जाता है कि गंगाजल का स्पर्श मात्र से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं।
मोक्ष प्राप्ति का साधन
वराह पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति गंगाजल का सेवन करते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है, उसे सीधे वैकुंठ की प्राप्ति होती है। यह जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाने वाला है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तुलसी और गंगाजल
तुलसी के वैज्ञानिक गुण

आधुनिक विज्ञान ने भी तुलसी के अद्भुत गुणों को प्रमाणित किया है:
- एंटी-बैक्टीरियल गुण: तुलसी में प्राकृतिक एंटीबायोटिक गुण होते हैं
- एंटी-ऑक्सीडेंट: यह शरीर में मुक्त कणों को नष्ट करती है
- सुगंध चिकित्सा: तुलसी की सुगंध मन को शांति प्रदान करती है
- रोगाणु-रोधी: यह हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट करती है
गंगाजल के वैज्ञानिक तथ्य
वैज्ञानिकों ने गंगाजल में कई अद्भुत गुण खोजे हैं:
- बैक्टीरियोफेज: गंगाजल में विशेष प्रकार के वायरस होते हैं जो हानिकारक बैक्टीरिया को मारते हैं
- स्व-शुद्धीकरण: गंगा में स्वयं को साफ करने की अद्भुत क्षमता है
- खनिज तत्व: इसमें कई उपयोगी खनिज तत्व होते हैं
- ऑक्सीजन की मात्रा: गंगाजल में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है
अंतिम संस्कार की पूर्ण प्रक्रिया
मृत्यु से पूर्व की तैयारी
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु निकट दिखाई देती है, तो निम्नलिखित तैयारियां की जाती हैं:
- गंगाजल का प्रबंध: शुद्ध गंगाजल का इंतजाम किया जाता है
- तुलसी पत्र: ताजे तुलसी के पत्ते तोड़े जाते हैं
- मंत्र जाप: भगवान के नाम का जाप शुरू किया जाता है
- पवित्र वातावरण: घर में धूप-दीप जलाकर पवित्र वातावरण बनाया जाता है
मृत्यु के समय की विधि
गरुड़ पुराण के अनुसार निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है:
- व्यक्ति को उत्तर दिशा में सिर करके लिटाया जाता है
- मुंह में पहले गंगाजल की कुछ बूंदें डाली जाती हैं
- तुलसी के 5 पत्ते मुंह में रखे जाते हैं
- श्रीराम नाम सत्य है या हरे कृष्ण मंत्र का जाप किया जाता है
रोचक तथ्य और परंपराएं
तुलसी से जुड़े रोचक तथ्य
- 24 घंटे ऑक्सीजन: तुलसी एकमात्र ऐसा पौधा है जो 24 घंटे ऑक्सीजन देता है
- नासा का प्रमाण: नासा ने तुलसी को वायु शुद्धीकरण के लिए सर्वश्रेष्ठ पौधा माना है
- आयुर्वेदिक औषधि: तुलसी को “रसायन” की श्रेणी में रखा गया है
- धार्मिक मान्यता: हिंदू धर्म में तुलसी को देवी का दर्जा प्राप्त है
गंगा से जुड़े अद्भुत तथ्य
- स्वर्ग से पृथ्वी पर: पुराणों के अनुसार गंगा पहले स्वर्ग में बहती थी
- भगीरथ का तप: राजा भगीरथ के तप से गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई
- शिव की जटाओं में: भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को धारण किया
- सप्त स्रोत: गंगा के सात मुख्य स्रोत माने जाते हैं

विभिन्न संप्रदायों में यह परंपरा
वैष्णव परंपरा
वैष्णव संप्रदाय में तुलसी को विशेष महत्व दिया जाता है। यहां तुलसी माला का भी प्रयोग किया जाता है।
शैव परंपरा
शैव परंपरा में भी गंगाजल का विशेष महत्व है क्योंकि गंगा भगवान शिव की जटाओं में निवास करती है।
शाक्त परंपरा
शाक्त परंपरा में तुलसी को देवी का स्वरूप माना जाता है और इसकी पूजा की जाती है।
आधुनिक समय में इस परंपरा का महत्व
मानसिक शांति
यह परंपरा परिवारजनों को मानसिक शांति प्रदान करती है कि उन्होंने अपने प्रियजन के लिए सभी धार्मिक कर्तव्य पूरे किए हैं।
सामाजिक एकता
यह प्रथा समाज में एकता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देती है।

संस्कारों का संरक्षण
इससे हमारी प्राचीन संस्कृति और मूल्यों का संरक्षण होता है।
गलत धारणाओं का निवारण
अंधविश्वास नहीं, वैज्ञानिक आधार
कुछ लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं, लेकिन इसके पीछे गहरे वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण हैं।
केवल रीति-रिवाज नहीं
यह केवल रीति-रिवाज नहीं है बल्कि आत्मा की शांति के लिए किया जाने वाला कर्म है।
निष्कर्ष
मरने वाले के मुंह में तुलसी पत्र और गंगाजल डालने की परंपरा हमारे सनातन धर्म की अमूल्य धरोहर है। यह न केवल धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है बल्कि इसके पीछे गहरे वैज्ञानिक कारण भी छुपे हुए हैं। यह परंपरा आत्मा की शांति, पापों के नाश और मोक्ष प्राप्ति के लिए की जाती है।
हमारे पूर्वजों ने जो परंपराएं स्थापित की थीं, वे सभी हमारे कल्याण के लिए ही थीं। आज के वैज्ञानिक युग में भी इन परंपराओं की प्रासंगिकता बनी हुई है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इन पवित्र परंपराओं को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएं और उनके वास्तविक अर्थ को समझाएं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. क्या तुलसी पत्र और गंगाजल हमेशा उपलब्ध नहीं है तो क्या करें?
यदि तुलसी पत्र और गंगाजल उपलब्ध नहीं है, तो शुद्ध जल का उपयोग करके भगवान का नाम लेना चाहिए। मुख्य बात भावना और श्रद्धा की है। गीता में कहा गया है कि भगवान भाव के भूखे हैं, द्रव्य के नहीं।
2. क्या केवल हिंदुओं के लिए यह परंपरा है?
यह मुख्यतः हिंदू धर्म की परंपरा है, लेकिन तुलसी और गंगाजल के वैज्ञानिक गुण सभी के लिए लाभकारी हैं। धर्म से परे, यह एक मानवीय परंपरा भी है।
3. मृत्यु के कितने समय बाद तक यह प्रक्रिया करनी चाहिए?
आदर्श रूप से यह प्रक्रिया मृत्यु से ठीक पहले या तुरंत बाद करनी चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार मृत्यु के 3 घंटे तक आत्मा शरीर के आसपास रहती है।

4. क्या बच्चों के लिए भी यही नियम है?
हां, उम्र की परवाह किए बिना यह परंपरा सभी के लिए समान है। बच्चों के लिए केवल तुलसी पत्र की मात्रा कम की जा सकती है।
5. यदि व्यक्ति दूसरे धर्म को मानता है तो क्या करें?
धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करते हुए, व्यक्ति की इच्छा और परिवार की सहमति के अनुसार ही यह प्रक्रिया करनी चाहिए।
6. क्या तुलसी के सूखे पत्ते भी उपयोग किए जा सकते हैं?
ताजे तुलसी पत्र सबसे उत्तम माने जाते हैं, लेकिन यदि उपलब्ध नहीं हैं तो स्वच्छ सूखे पत्ते भी काम आ सकते हैं।
7. गंगाजल के विकल्प क्या हैं?
यदि गंगाजल उपलब्ध नहीं है तो अन्य पवित्र नदियों का जल या शुद्ध जल में तुलसी पत्र डालकर उसका उपयोग किया जा सकता है।
8. इस प्रक्रिया के दौरान कौन से मंत्र पढ़ने चाहिए?
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”, “श्रीराम जय राम जय जय राम”, या “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे” मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है।
9. क्या महिलाएं भी यह प्रक्रिया कर सकती हैं?
हां, बिल्कुल। यह प्रक्रिया करने में कोई लिंग भेद नहीं है। परिवार का कोई भी सदस्य श्रद्धा से यह कार्य कर सकता है।
10. इस परंपरा का वैज्ञानिक आधार क्या है?
तुलसी में एंटी-बैक्टीरियल गुण हैं और गंगाजल में बैक्टीरियोफेज होते हैं जो हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट करते हैं। यह वातावरण को शुद्ध रखने में मदद करता है।