“दुर्वासा ऋषि” – यह नाम सुनते ही मन में एक ही भाव आता है, क्रोध का। इस नाम का अर्थ ही है “जिसके साथ रहा न जा सके”। प्राचीन काल में ऋषि दुर्वासा का नाम सुनते ही लोगों के मन में श्राप का भय पैदा हो जाता था। उनका खौफ तो देवताओं में भी रहता था। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस महान ऋषि की अपनी पत्नी के साथ क्या कहानी थी?
आज हम आपको एक ऐसी चौंकाने वाली कहानी सुनाने जा रहे हैं जो दुर्वासा ऋषि के व्यक्तिगत जीवन की सबसे रहस्यपूर्ण घटना है। यह कहानी न केवल उनके क्रोध को दिखाती है बल्कि एक गहरा आध्यात्मिक संदेश भी देती है।
दुर्वासा ऋषि: शिव के क्रोध का अवतार
जन्म और नामकरण की कथा
ब्रह्मांड पुराण के अनुसार, दुर्वासा ऋषि का जन्म एक अनूठी परिस्थिति में हुआ था। एक बार भगवान शिव और माता पार्वती में तीखी बहस हो गई। गुस्से में आई माता पार्वती ने शिवजी से कह दिया कि आपका यह क्रोधी स्वभाव आपके साथ न रहने लायक बनाता है।
तब शिवजी ने अपने क्रोध को अत्रि ऋषि की पत्नी अनुसूया के गर्भ में स्थापित कर दिया। इसी के चलते अत्रि ऋषि और अनुसूया के पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम दुर्वासा रखा गया।
बचपन से ही अनोखा स्वभाव
दुर्वासा ऋषि की शिक्षा पिता के सानिध्य में ही हुई थी। लेकिन मात्र 5 वर्ष की आयु में ही वे ध्यान साधना में लीन रहने लगे। जल्द ही वह तपस्वी स्वभाव के चलते माता-पिता को छोड़कर वन में विचरने लगे।
विवाह की कथा: कंदली से मिलन
अंबरीश ऋषि का प्रस्ताव
जब दुर्वासा ऋषि युवा हुए, तब अंबरीश ऋषि अपनी पुत्री के साथ दुर्वासा के पास आए और उनसे अपनी बेटी का परिग्रहण करवाने की प्रार्थना की। ऋषि ने दुर्वासा से अपनी बेटी के सभी गुण बताए, परंतु साथ में यह भी कहा कि उसमें एक अवगुण है जो सब गुणों पर भारी था।
कंदली का स्वभाव
अंबरीश ऋषि की पुत्री का नाम था कंदली। उसमें एक ही बड़ा अवगुण था – वह कलह कारिणी थी। दुर्वासा के उग्र स्वभाव को जानते हुए अंबरीश ऋषि ने दुर्वासा से उसके सभी अपराध माफ करने का आग्रह किया।
सौ अपराधों की शर्त
इस पर दुर्वासा ऋषि ने कहा, “मैं अपनी पत्नी के 100 अपराध क्षमा करूंगा, लेकिन उसके बाद नहीं।” इस वचन के साथ दोनों का विवाह हो गया।
गृहस्थी में फंसे तपस्वी
ब्रह्मचारी से गृहस्थ तक
इस प्रकार ब्रह्मचारी दुर्वासा गृहस्थी के चक्रव्यूह में फंस गए। लेकिन अपने कलह स्वभाव के चलते, कंदली बात-बात पर पति ऋषि दुर्वासा से कलह करती रहती।
क्रोध का दमन
कंदली को दिए अपने वचन के चलते ऋषि दुर्वासा को उसका क्रोध सहना पड़ता था। जिन दुर्वासा के क्रोध से सृष्टि के सभी जीव कांपते थे, वही अब अपनी पत्नी कंदली के क्रोध से कांपते थे। अपनी पत्नी का क्रोध सहने के पीछे उन्हीं के द्वारा दिया गया वचन था।
सहनशीलता की परीक्षा
आलम यह था कि दुर्वासा ऋषि ने पत्नी की 100 से ज्यादा गलतियों को क्षमा कर दिया था। वे चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते थे क्योंकि उन्होंने वचन दिया था।
वह घातक रात्रि: क्रोध की पराकाष्ठा
देर से आगमन
एक दिन ऋषि दुर्वासा कहीं से प्रवास करके बहुत देरी से आश्रम में पधारे। ऋषि दुर्वासा ने भोजन करने के बाद विश्राम करने का निर्णय लिया।
महत्वपूर्ण आदेश
विश्राम से पहले ऋषि दुर्वासा ने कंदली को आदेश दिया कि वे उन्हें ब्रह्म मुहूर्त पर अवश्य उठा दें क्योंकि उन्हें एक जरूरी अनुष्ठान करना था। साथ ही उन्होंने कहा, “मैं स्वयं भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का प्रयास करूंगा, लेकिन थकान के कारण शायद न उठ पाऊं।”

कंदली की लापरवाही
लेकिन आलस्य के कारण कंदली न तो खुद उठी और न ही ऋषि दुर्वासा को ब्रह्म मुहूर्त में उठाया। जब सूर्योदय के बाद ऋषि दुर्वासा की आंख खुली, तब तक सूरज चढ़ चुका था।
क्रोध की विस्फोटक अभिव्यक्ति
अपना अनुष्ठान न कर पाने के कारण ऋषि दुर्वासा अपनी पत्नी पर बेहद क्रोधित हुए और उन्हें भस्म होने का श्राप दे दिया। ऋषि दुर्वासा के श्राप का तुरंत असर हुआ और कंदली तुरंत राख में बदल गई।
पश्चाताप और रूपांतरण
गहरा दुख और पछतावा
ऋषि दुर्वासा को अपनी गलती पर बेहद दुख हुआ। उन्होंने महसूस किया कि उन्होंने अपने क्रोध के वशीभूत होकर एक भयानक कृत्य किया है।
ससुर का दुख
जब उनके ससुर ऋषि अंबरीश कंदली से मिलने आए और अपनी पुत्री को राख बना देखकर बेहद दुखी हुए। उनका शोक देखकर दुर्वासा ऋषि और भी पछताए।
दिव्य रूपांतरण
तब ऋषि दुर्वासा ने कंदली की राख को केले के पेड़ में बदल दिया। साथ ही उन्होंने वरदान दिया कि वह हर पूजा और अनुष्ठान का हिस्सा बनेगी। इस प्रकार केले के पेड़ का जन्म हुआ और कंदलीफल यानी केले का फूल हर पूजा का प्रसाद बन गया।
केले के पेड़ का धार्मिक महत्व
पूजा में स्थान
यही वजह है कि केले के पेड़ की गुरुवार को पूजा होती है। हिंदू धर्म में केले के पेड़ को अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसकी पूजा विशेष रूप से की जाती है।
कंदलीफल का महत्व
कंदलीफल (केले का फूल) हर पूजा का अभिन्न अंग बन गया। यह दुर्वासा ऋषि के वरदान का प्रतीक है जो उनकी पत्नी को मिला था।

इस कहानी का गहरा आध्यात्मिक संदेश
क्रोध का विनाशकारी प्रभाव
यह कहानी हमें दिखाती है कि क्रोध कितना विनाशकारी हो सकता है। दुर्वासा ऋषि जैसे महान तपस्वी भी क्रोध के वशीभूत होकर अपने सबसे प्रिय व्यक्ति को हानि पहुंचा सकते हैं।
वचन की शक्ति
कहानी में दुर्वासा ऋषि का 100 अपराध क्षमा करने का वचन दिखाता है कि वचन की कितनी शक्ति होती है। एक बार दिया गया वचन व्यक्ति को बांधता है।
पश्चाताप की महत्ता
दुर्वासा ऋषि का गहरा पश्चाताप और अपनी गलती को सुधारने का प्रयास दिखाता है कि गलती करने के बाद उसे सुधारना कितना महत्वपूर्ण है।
दुर्वासा ऋषि के अन्य प्रसिद्ध क्रोध प्रसंग
राजा अम्बरीष का प्रसंग
दुर्वासा ऋषि ने राजा अम्बरीष को भी शाप दिया था जब उन्होंने एकादशी व्रत के दौरान उनका अपमान किया था। यह घटना विष्णु पुराण में वर्णित है।
शकुंतला को दिया गया शाप
महाभारत में वर्णित है कि दुर्वासा ऋषि ने शकुंतला को शाप दिया था जब उसने उनकी उपेक्षा की थी।
इंद्र को मिला शाप
जब इंद्र ने दुर्वासा ऋषि की माला का अपमान किया था, तब उन्होंने इंद्र को शाप दिया था, जिसके परिणामस्वरूप समुद्र मंथन हुआ था।
आधुनिक जीवन में इस कहानी की प्रासंगिकता
पारिवारिक संबंधों में धैर्य
यह कहानी आधुनिक जीवन में पारिवारिक संबंधों में धैर्य रखने की शिक्षा देती है। छोटी-छोटी बातों पर क्रोध करना रिश्तों को नुकसान पहुंचा सकता है।
संवाद का महत्व
दुर्वासा ऋषि और कंदली के बीच उचित संवाद की कमी इस घटना का कारण बनी। यह दिखाता है कि पति-पत्नी के बीच खुला संवाद कितना जरूरी है।
क्रोध प्रबंधन
आज के तनावपूर्ण युग में क्रोध प्रबंधन एक महत्वपूर्ण कौशल है। इस कहानी से हम सीख सकते हैं कि क्रोध को कैसे नियंत्रित करना चाहिए।
दुर्वासा ऋषि से मिलने वाली शिक्षाएं
आत्म-नियंत्रण की आवश्यकता
यह कहानी आत्म-नियंत्रण की आवश्यकता को दर्शाती है। कितना भी बड़ा व्यक्ति हो, यदि उसमें आत्म-नियंत्रण नहीं है तो वह गलत राह पर चल सकता है।
वचन की पवित्रता
दुर्वासा ऋषि का अपने वचन को निभाने का प्रयास दिखाता है कि वचन कितना पवित्र होता है। एक बार दिया गया वचन व्यक्ति को बांधता है।
पश्चाताप की शक्ति
गलती करने के बाद सच्चे मन से पश्चाताप करना और उसे सुधारने का प्रयास करना सच्चे व्यक्तित्व की निशानी है।
निष्कर्ष: एक कालजयी संदेश
दुर्वासा ऋषि और कंदली की यह कहानी केवल एक पुराणिक आख्यान नहीं है, बल्कि एक गहरी मानवीय शिक्षा है। यह हमें बताती है कि क्रोध कितना विनाशकारी हो सकता है और पश्चाताप कितना शक्तिशाली।
इस कहानी का संदेश यह है कि हमें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में अपने प्रिय व्यक्तियों के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए। यदि गलती हो भी जाए, तो सच्चे मन से पश्चाताप करके उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए।
आज भी जब हम केले के पेड़ की पूजा करते हैं या कंदलीफल को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं, तो हमें इस कहानी की याद आनी चाहिए। यह कहानी हमें सिखाती है कि क्रोध में लिया गया कोई भी निर्णय कितना घातक हो सकता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: दुर्वासा ऋषि की पत्नी का क्या नाम था?
उत्तर: दुर्वासा ऋषि की पत्नी का नाम कंदली था। वह अंबरीश ऋषि की पुत्री थी और उसका स्वभाव कलह कारिणी था।
प्रश्न 2: दुर्वासा ऋषि ने अपनी पत्नी को क्यों भस्म किया?
उत्तर: दुर्वासा ऋषि ने कंदली को इसलिए भस्म किया क्योंकि उसने आलस्य के कारण उन्हें ब्रह्म मुहूर्त में नहीं उठाया, जिससे वे अपना महत्वपूर्ण अनुष्ठान नहीं कर सके।
प्रश्न 3: यह कहानी किस पुराण में वर्णित है?
उत्तर: यह कहानी मुख्य रूप से ब्रह्मांड पुराण में वर्णित है। इसमें दुर्वासा ऋषि के जन्म से लेकर इस घटना तक का विस्तृत वर्णन मिलता है।
प्रश्न 4: केले के पेड़ का इस कहानी से क्या संबंध है?
उत्तर: दुर्वासा ऋषि ने पश्चाताप करके कंदली की राख को केले के पेड़ में बदल दिया और वरदान दिया कि वह हर पूजा का हिस्सा बनेगी। इसलिए केले के पेड़ की पूजा होती है।
प्रश्न 5: इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: इस कहानी से हमें क्रोध के विनाशकारी प्रभावों, वचन की पवित्रता, धैर्य के महत्व और पश्चाताप की शक्ति के बारे में शिक्षा मिलती है।
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