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गांधारी ने शकुनि को श्राप क्यों दिया था: महाभारत का एक अनसुना पहलू

क्या आपने कभी सोचा है कि महाभारत के विनाशकारी युद्ध के पीछे किन-किन कारणों का हाथ था? युद्ध के सूत्रधार शकुनि की कहानी जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उसकी बहन गांधारी ने अपने ही भाई को एक भयानक श्राप दिया था? यह श्राप इतना शक्तिशाली था कि आज हजारों साल बाद भी उसके परिणाम देखे जा सकते हैं।

महाभारत में गांधारी एक ऐसा चरित्र हैं जिन्होंने अपने पति धृतराष्ट्र के अंधेपन के साथ एकता प्रकट करने के लिए स्वेच्छा से अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। लेकिन इस शांत और त्यागमयी महिला ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में दो बड़े श्राप दिए – एक भगवान श्री कृष्ण को और दूसरा अपने ही भाई शकुनि को। आज हम इस रहस्यमय कहानी को विस्तार से जानेंगे कि आखिर क्यों गांधारी ने अपने भाई को श्राप दिया और उसके क्या परिणाम हुए।

गांधार देश और राजपरिवार: शकुनि और गांधारी का जन्म

महाभारत काल में वर्तमान अफगानिस्तान के क्षेत्र को गांधार देश के नाम से जाना जाता था। यह एक समृद्ध और शक्तिशाली राज्य था जिसका शासन राजा सुबल करते थे। महाभारत के अनुसार, राजा सुबल के शकुनि सहित 100 पुत्र थे और एक पुत्री थी – गांधारी।

महाभारत के आदिपर्व के अनुसार, शकुनि का जन्म एक विशेष परिस्थिति में हुआ था। कहा जाता है कि उसका जन्म देवताओं के क्रोध के कारण हुआ था और उसकी प्रवृत्ति धर्म का नाश करने वाली थी। उसके जन्म के समय कई अशुभ संकेत देखे गए थे, जिन्हें राजा सुबल के दरबारी ज्योतिषियों ने गंभीरता से लिया था।

गांधारी का विवाह और छलपूर्ण कहानी

जब गांधारी विवाह योग्य हुई, तो राजा सुबल ने कई ज्योतिषियों से परामर्श किया। एक ज्योतिषी ने बताया कि गांधारी की कुंडली में एक अशुभ योग है, जिसके कारण वह विवाह के बाद विधवा हो जाएगी। इस अशुभ योग को टालने के लिए ज्योतिषी ने सलाह दी कि पहले गांधारी का विवाह एक बकरे से करा दिया जाए।

राजा सुबल ने ज्योतिषी की सलाह मानकर गांधारी का विवाह पहले एक बकरे से करवाया और फिर उस बकरे की बलि दे दी गई। इस प्रकार गांधारी के विधवा होने का अभिशाप टल गया।

इसी दौरान हस्तिनापुर में, कुरु वंश के राजकुमार धृतराष्ट्र के लिए एक योग्य कन्या की तलाश थी। भीष्म पितामह को गांधारी के सौंदर्य और गुणों के बारे में पता चला, तो वे गांधार देश गए और राजा सुबल से गांधारी का हाथ धृतराष्ट्र के लिए मांगा।

शुरू में, राजा सुबल को यह जानकारी नहीं थी कि धृतराष्ट्र जन्म से ही नेत्रहीन हैं। जब उन्हें इस सत्य का पता चला, तो उन्होंने विवाह से इंकार कर दिया। लेकिन भीष्म ने युद्ध की धमकी दी, और छोटे राज्य का राजा होने के कारण, सुबल ने अंततः विवाह के लिए अपनी सहमति दे दी।

धृतराष्ट्र और गांधारी का विवाह: छल का खुलासा

गांधारी को यह नहीं पता था कि धृतराष्ट्र जन्मजात अंधे हैं। जब वह हस्तिनापुर पहुंची और धृतराष्ट्र से मिली, तब उसे इस छल का पता चला। इसके बावजूद, अपने कर्तव्य को निभाते हुए गांधारी ने अपने पति के अंधेपन को स्वीकार किया और उनके प्रति समर्पण दिखाते हुए स्वेच्छा से अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली।

इसके बाद, जब भीष्म और धृतराष्ट्र को पता चला कि गांधारी का पहले ही एक बकरे से विवाह हो चुका था, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने इसे अपमान माना और राजा सुबल को सबक सिखाने का निश्चय किया।

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शकुनि की प्रतिज्ञा: बदले की शुरुआत

भीष्म और धृतराष्ट्र ने राजा सुबल और उनके परिवार को एक भोज पर हस्तिनापुर आमंत्रित किया। जैसे ही वे आए, उन्हें कारागार में डाल दिया गया। कारागार में राजा सुबल और उनके 100 पुत्रों को केवल एक मुट्ठी अनाज दिया जाता था, जिसमें प्रत्येक पुत्र को मात्र एक दाना ही मिल पाता था।

इस कठिन परिस्थिति में, सभी भाइयों ने निर्णय लिया कि वे अपना अनाज शकुनि को देंगे ताकि वह जीवित रह सके और भविष्य में उनके परिवार का बदला ले सके। धीरे-धीरे, भूख और कष्ट से राजा सुबल और उनके सभी पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए, केवल शकुनि बचा।

मरते समय, राजा सुबल ने शकुनि से वचन लिया कि वह हस्तिनापुर के विनाश का कारण बनेगा। उन्होंने शकुनि को आदेश दिया कि वह अपने पिता की हड्डियों से चौसर के पासे बनाए, जो हमेशा उसकी इच्छा अनुसार चलेंगे। साथ ही, राजा सुबल ने शकुनि की एक टांग पर चाकू से गहरा घाव बना दिया, ताकि उसे अपनी प्रतिज्ञा हमेशा याद रहे।

अपने परिवार की दर्दनाक मौत के बाद, शकुनि ने धृतराष्ट्र से जीवनदान मांगा, जिसे धृतराष्ट्र ने स्वीकार कर लिया और उसे कारावास से मुक्त कर दिया। इसके बाद शकुनि हस्तिनापुर में ही रहने लगा, अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए योजना बनाते हुए।

शकुनि की चाल: दुर्योधन का मार्गदर्शक बनना

शकुनि चौसर के खेल में अत्यंत कुशल था। उसने अपने भांजे दुर्योधन में इस खेल के प्रति रुचि जगाई और घंटों उसके साथ खेलता रहता था। धीरे-धीरे, वह दुर्योधन का विश्वासपात्र और सलाहकार बन गया।

शकुनि ने चतुराई से दुर्योधन के मन में पांडवों के प्रति ईर्ष्या और घृणा का बीज बोया। वह हमेशा दुर्योधन को उकसाता रहता था कि पांडव उसके राज्य पर अधिकार जमाना चाहते हैं और उसे अपमानित करना चाहते हैं। यही कारण था कि दुर्योधन पांडवों को कभी भी उनका उचित हिस्सा नहीं देना चाहता था।

शकुनि की सबसे बड़ी चाल थी चौसर का वो प्रसिद्ध खेल, जिसमें युधिष्ठिर हार गए और पांडवों को 13 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भुगतना पड़ा। इस खेल में शकुनि ने अपने पिता की हड्डियों से बने पासों का उपयोग किया था, जो हमेशा उसकी इच्छानुसार चलते थे।

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महाभारत युद्ध और गांधारी का दुःख

शकुनि की चालों और कूटनीति के कारण अंततः महाभारत का भीषण युद्ध हुआ। 18 दिनों के इस युद्ध में लाखों योद्धा मारे गए, जिनमें दुर्योधन सहित सभी 100 कौरव भी शामिल थे।

कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर जब गांधारी ने अपने सभी 100 पुत्रों को खो दिया, तो वह अत्यंत दुःखी और क्रोधित हो गईं। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण पर आरोप लगाया कि वे चाहते तो युद्ध रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।

क्रोध में आकर गांधारी ने श्री कृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार उसके कुल का नाश हुआ है, उसी प्रकार 36 वर्षों के बाद कृष्ण के यदुवंश का भी नाश होगा। भगवान श्री कृष्ण ने गांधारी के श्राप को स्वीकार कर लिया, क्योंकि वे जानते थे कि उनका श्राप सत्य होगा।

गांधारी का शकुनि को श्राप: कारण और परिणाम

लेकिन क्या आप जानते हैं कि गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण से पहले अपने भाई शकुनि को भी श्राप दिया था?

जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर एक-एक करके कौरव मरते जा रहे थे, तब गांधारी को यह आभास हो चुका था कि अब उसका कोई भी पुत्र जीवित नहीं बचेगा। इस भयानक स्थिति में, गांधारी ने अपने भाई शकुनि से कहा था कि वह युद्ध रुकवा दे, ताकि और अधिक विनाश न हो।

लेकिन शकुनि ने अपनी बहन की बात नहीं मानी। उसकी आंखों में बदले की आग अभी भी जल रही थी, और वह चाहता था कि युद्ध जारी रहे जब तक कि या तो कौरव या पांडव पूरी तरह से समाप्त न हो जाएं।

गांधारी अपने भाई की इस हठधर्मिता से अत्यंत दुःखी और क्रोधित हो गईं। उन्होंने महसूस किया कि उनके सभी पुत्रों के विनाश का एक बड़ा कारण शकुनि ही था। शकुनि ने ही दुर्योधन के मन में पांडवों के प्रति घृणा भरी थी और चौसर के खेल के माध्यम से पांडवों को वनवास भेजकर युद्ध की स्थिति पैदा की थी।

इस क्रोध और दुःख में, गांधारी ने अपने भाई शकुनि को एक भयानक श्राप दिया। उन्होंने कहा:

“जिस प्रकार तुमने हस्तिनापुर में आकर द्वेष और क्लेश फैलाया है, उसी प्रकार तुम्हारे गृह राज्य गांधार में भी कभी शांति नहीं रहेगी। वहां हमेशा गृह युद्ध चलता रहेगा और तुम्हारी धरती पर कभी भी शांति और समृद्धि नहीं पनप सकेगी।”

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गांधारी के श्राप का वर्तमान प्रभाव

महाभारत के अनुसार, गांधारी के इस श्राप का प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। प्राचीन गांधार देश, जो वर्तमान में अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है, वहां कभी भी पूर्ण शांति स्थापित नहीं हो पाई है।

इतिहास गवाह है कि अफगानिस्तान हमेशा से युद्ध और संघर्ष का केंद्र रहा है। सिकंदर महान से लेकर मुगलों, ब्रिटिश, रूसियों और अमेरिकियों तक, कई शक्तिशाली साम्राज्यों ने इस क्षेत्र पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन किसी को भी स्थायी सफलता नहीं मिली।

आज भी अफगानिस्तान में अशांति, आतंकवाद और गृह युद्ध की स्थिति बनी हुई है। कई विद्वान मानते हैं कि यह गांधारी के श्राप का ही प्रभाव है, जो हजारों वर्षों के बाद भी उस भूमि पर छाया हुआ है।

शकुनि का अंत: पाप का फल

महाभारत के युद्ध में शकुनि का अंत भी अत्यंत दर्दनाक था। युद्ध के 18वें दिन, जब लगभग सभी कौरव मारे जा चुके थे, शकुनि पांडव सहदेव के हाथों मारा गया।

शकुनि की मृत्यु के समय, कहा जाता है कि उसकी आत्मा को अपने किए गए पापों का एहसास हुआ। वह समझ गया था कि अपने परिवार के बदले की आग में उसने न केवल अपने भांजों (कौरवों) का विनाश किया, बल्कि अपने ही गृह राज्य को भी एक अभिशाप दे दिया।

महाभारत से सीख: क्रोध और बदले का परिणाम

महाभारत हमें सिखाती है कि क्रोध और बदले की भावना अंततः विनाश की ओर ले जाती है। शकुनि अपने परिवार के बदले के लिए हस्तिनापुर के विनाश की योजना बनाता है, लेकिन अंत में न केवल हस्तिनापुर, बल्कि अपने गृह राज्य गांधार का भी विनाश होता है।

गांधारी का शकुनि को दिया गया श्राप यह दर्शाता है कि अधर्म और छल का फल हमेशा दुःखदायी होता है। शकुनि ने अपने स्वार्थ के लिए न केवल कौरवों और पांडवों के बीच वैमनस्य पैदा किया, बल्कि पूरे कुरु वंश के विनाश का कारण बना।

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निष्कर्ष

महाभारत के इस अनसुने पहलू में हमने जाना कि कैसे गांधारी ने अपने भाई शकुनि को श्राप दिया था, और उस श्राप के परिणाम आज भी दिखाई देते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि बदले की भावना और अधर्म का मार्ग अंततः विनाश की ओर ही ले जाता है।

महाभारत की इस कहानी से हम यह भी सीखते हैं कि हमारे कर्म ही हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं। शकुनि ने अपने कर्मों से न केवल अपना, बल्कि अपने गृह राज्य का भी भविष्य अंधकारमय बना दिया।

आज के समय में भी यह कहानी उतनी ही प्रासंगिक है। हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि क्रोध, द्वेष और बदले की भावना हमेशा विनाशकारी होती है, और सच्चे सुख और शांति का मार्ग केवल सत्य, धर्म और क्षमा से होकर ही जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. गांधारी ने शकुनि को क्या श्राप दिया था?

गांधारी ने शकुनि को श्राप दिया था कि जिस प्रकार उसने हस्तिनापुर में आकर द्वेष और क्लेश फैलाया है, उसी प्रकार उसके गृह राज्य गांधार (वर्तमान अफगानिस्तान) में भी कभी शांति नहीं रहेगी। वहां हमेशा गृह युद्ध चलता रहेगा और उसकी धरती पर कभी भी शांति और समृद्धि नहीं पनप सकेगी।

2. शकुनि ने अपने भांजे दुर्योधन को क्यों भड़काया?

शकुनि का मुख्य उद्देश्य हस्तिनापुर के राज्य का विनाश करना था, क्योंकि उसके पिता और भाइयों की मृत्यु का कारण हस्तिनापुर था। उसने दुर्योधन को पांडवों के विरुद्ध भड़काकर अपनी बदले की योजना को अंजाम देना चाहा।

3. क्या वर्तमान अफगानिस्तान की अशांति का कारण गांधारी का श्राप है?

महाभारत के अनुसार, गांधारी के श्राप के कारण ही प्राचीन गांधार देश (वर्तमान अफगानिस्तान) में कभी भी पूर्ण शांति स्थापित नहीं हो पाई है। वहां हमेशा से युद्ध और संघर्ष की स्थिति बनी रहती है।

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4. शकुनि के पासे किसकी हड्डियों से बने थे?

शकुनि के चौसर के पासे उसके पिता राजा सुबल की हड्डियों से बने थे। मरते समय, राजा सुबल ने शकुनि से कहा था कि वह उनकी हड्डियों से पासे बनाए, जो हमेशा उसकी इच्छानुसार चलेंगे।

5. गांधारी ने श्री कृष्ण को क्या श्राप दिया था?

गांधारी ने भगवान श्री कृष्ण को श्राप दिया था कि जिस प्रकार उसके कुल का नाश हुआ है, उसी प्रकार 36 वर्षों के बाद कृष्ण के यदुवंश का भी नाश होगा।

6. शकुनि का अंत कैसे हुआ?

महाभारत के युद्ध के 18वें दिन, शकुनि को पांडव सहदेव ने युद्ध में मार दिया था।

7. गांधारी की आंखों पर पट्टी क्यों बंधी थी?

गांधारी ने अपने पति धृतराष्ट्र के अंधेपन के साथ एकता प्रकट करने के लिए स्वेच्छा से अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी।

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