क्या मृत्यु के बाद हमारे कर्मों का हिसाब होता है? क्या हर पाप का फल केवल इस जीवन में ही मिलता है, या इसके बाद भी इंतजार करता है एक ऐसा संसार, जो रूह तक को कंपा दे?
गरुड़ पुराण के अनुसार, ऐसे भयानक नरक हैं, जहां पापी आत्माएं अपने कर्मों का दंड भोगती हैं।
आज, मैं आपको लेकर चलूंगा उन सात सबसे भयानक नरकों की दुनिया में, जिनका वर्णन मात्र ही आपके रोंगटे खड़े कर देगा।
अंत तक जुड़ें रहें, क्योंकि यह ज्ञान आपकी आत्मा को झकझोर देगा।
पक्षीराज गरुड़ ने भगवान विष्णु से पूछा, ‘हे भगवन, मुझे उन नरकों के बारे में बताइए, जहां पापी आत्माएं अपने कर्मों का दंड भोगती हैं।
भगवान विष्णु बोले, ‘हे पक्षीराज, नरकों की संख्या तो असंख्य है, लेकिन मैं तुम्हें उन सात प्रधान नरकों के बारे में बताता हूं, जिनकी यातना सुनने मात्र से ही आत्मा कांप उठती है।
1. रौरव नरक
रौरव नरक सबसे भयानक नरकों में से एक है। यह उन लोगों के लिए है, जो झूठ बोलते हैं, झूठी गवाही देते हैं और दूसरों के साथ द्रोह करते हैं।
जो व्यक्ति अपने स्वार्थ में अपने कुटुंब के पालन पोषण के लिए दूसरे प्राणियों से द्वेष व द्रोह करता है|
यहां जांघ भर की गहराई का गड्ढा है| यहां की भूमि दहकते अंगारों से भरी हुई है। पापियों को इन अंगारों पर फेंका जाता है, जहां वे जलते हुए इधर-उधर भागते हैं।
उसके पैरों में छाले पड़ जाते हैं जो फुटकर बहने लगते हैं| इस प्रकार जब वह हजार योजन बड़े उस नरक को पार कर लेता है|
तब उसके सामने महा रौरव नरक नामक नरक आता है|
2. महा रौरव नरक – महा रौरव नरक
जो लोग केवल अपने स्वार्थ के लिए जीते हैं और दूसरों की पीड़ा की परवाह नहीं करते, उन्हें महा रौरव नरक में भेजा जाता है।
मैं और मेरे का ही विचार करने वाले स्वार्थी जो द्रोही मनुष्य है उन्हें इस नर्क में भेजा जाता है| तो ऐसे मनुष्यो को समझना चाहिए कि उन्हें महा रौरव नामक नरक की यात्रा भोगनी पड़ सकती है|
यह नरक 5000 योजन में फैला है| यदि इसे किलोमीटर में देखा जाए तो यह नरक 64000 किलोमीटर में फैला है|
यहां की भूमि तांबे जैसी चमकती है, और इसके नीचे जलती हुई आग, पापियों को अंदर तक जला देती है। देखने में यह नर्क पापी जनों को महा भयंकर प्रतीत होती है| यमदूत पापी व्यक्ति के हाथ पैर बांधकर उस नर्क में गिरा देते हैं|
मार्ग में कौवा, बगुला, भेड़िया, उल्लू, मच्छर और बिच्छू आदि जीव जंतु क्रोधित होकर उसे खाने के लिए तत्पर रहते हैं|
और यह यातना हजारों वर्षों तक चलती है। तब वह पापी मनुष्य अतिशीत नरक जाता है|

3. अतिशीत नरक
यह नरक स्वभाव से अत्यंत शीतल यानी ठंडा है| यह नर्क गहन अंधकार से व्याप्त रहता है| यहां इतनी ठंड होती है कि आत्माएं कांपने लगती हैं। उनके दांत कट-कटाने लगते हैं, और हड्डियां टूटने लगती हैं। ठंडी वायु इतनी क्रूर होती है कि जीवात्माएं भूख से सड़ी-गली हड्डियां खाने को मजबूर हो जाती हैं। यह नरक उन लोगों के लिए है, जो अपने जीवन में दूसरों के प्रति क्रूर होते हैं। इन आत्माओं द्वारा कष्टों को भोगने के उपरांत वह निकृन्तन नरक नामक नरक की ओर बढ़ता है|
4.भगवन विष्णु गरुड़ जी को निकृन्तन नरक के बारे में बताते है
हे पक्षीराज जो व्यक्ति लगातार असंख्य पाप करते हैं और परमात्मा में आस्था नहीं रखते, नास्तिक है, वह इस नरक में गिरते हैं|
हे पक्षीराज, निकृन्तन नरक में बड़े-बड़े चक्र चलते हैं। इन चक्रों के ऊपर पापियों को खड़ा किया जाता है, और उनके शरीर को बीच से चीर दिया जाता है। बार-बार उनके अंग पुनः जुड़ते हैं, और पुनः काटे जाते हैं। यह यातना कभी खत्म नहीं होती। इस प्रकार यमदूत पाप कर्मियों को वहां हजारों वर्ष तक चक्कर लगवाते रहते हैं|
5. अप्रतिष्ठ नरक
इस नरक में पापियों को एक चक्र पर बांधकर घुमाया जाता है। जब तक हजारों वर्ष पूरे नहीं होते तब तक वह रुकते नहीं है| उनकी आंखें बाहर निकल आती हैं, और वे असहनीय पीड़ा से चिल्लाते हैं। उनकी आंतें बाहर आ जाती हैं, और यह कष्ट हजारों वर्षों तक चलता है।
6. असिपत्रवन नरक
भगवान् विष्णु इस नर्क में बारे में बताते है “हे गरुड़ अब तुम असिपत्रवन नरक नामक नरक के विषय में सुनो|”

यह नरक 1000 योजन में फैला हुआ है| इसकी संपूर्ण भूमि अग्नि से व्याप्त होने के कारण सदा जलती रहती है|
इस भयंकर नरक में 7-7 सूर्य अपनी तेज तपिश से तपते रहते हैं| इसमें आने वाली आत्माएं आग और तपिश से जलती रहती हैं| जिनके कारण वहां के पापी हर क्षण पीड़ा से तड़पते रहते हैं|
इस नरक के मध्य एक चौथाई भाग में सीट लढ पत्र नामक भवन है|
हे पक्षी श्रेष्ठ, इस भवन में वृक्षों से टूटकर गिरे फल और पत्तों के ढेर लगे रहते हैं| मांसाहारी बलवान कुत्ते उनमें विचरण करते रहते हैं|
वे बड़े-बड़े मुख वाले बड़े नाखून वाले तथा सिंह की तरह महा बलवान है| अत्यंत शीत एवं छाया से व्याप्त उस नरक को देखकर भूख प्यास से पीड़ित प्राणी दुखी होकर जोर जोर से रोते हुए वहां जाते हैं|
ताप से तपती हुई धरती की अग्नि से पापियों के दोनों पैर जल जाते हैं| अत्यंत शीत वायु बहने लगती है जिसके कारण उन पापियों के ऊपर तलवार के समान तेज धार वाले पत्ते गिरते हैं| जलते हुए अग्नि के समूह युक्त भूमि पापी जनों को पूरा जला सड़ा देती है|
7. तप्तकुंभ नरक
यह नरक खौलते हुए तेल के कुंडों से भरा हुआ है। पापियों को इन कुंडों में डुबोया जाता है, जहां उनकी आत्मा तक जल जाती है। यहां की यातनाएं इतनी भयानक हैं कि शब्द भी उनका वर्णन करने में असमर्थ हैं।
हे मनुष्यों, ये सात नरक सिर्फ कहानियां नहीं हैं, ये चेतावनी हैं। हमारे कर्म तय करते हैं कि हम मृत्यु के बाद कहां जाएंगे। अगर आप इन नरकों से बचना चाहते हैं, तो अपने जीवन को सत्य, धर्म और परोपकार के मार्ग पर चलाएं। गरुड़ पुराण का यही संदेश है।
तो सोचिए… क्या हम ऐसे पाप कर रहे हैं, जिनका अंजाम इतना भयंकर हो सकता है? अगर हां, तो आज ही अपने जीवन को बदलें।