भगवान शिव को काल भैरव रूप क्यूँ लेना पड़ा | कौन हैं भैरव | महादेव ने क्यों किया काल भैरव को प्रकट
क्या आपने कभी सोचा है कि देवों के देव महादेव ने अपना अति भयानक रूप काल भैरव क्यों धारण किया? हिन्दू पौराणिक कथाओं में काल भैरव की उत्पत्ति का रहस्य क्या है? आज हम जानेंगे उस कथा को जिसमें शिव के क्रोध से प्रकट हुए थे काल भैरव और उनका संबंध काल (समय) से क्यों जुड़ा है।
कौन हैं काल भैरव
काल भैरव, हिन्दू धर्म के एक अत्यंत शक्तिशाली देवता हैं, जिन्हें भगवान शिव के रौद्र या क्रोधित रूप के रूप में जाना जाता है। ‘काल’ का अर्थ है समय और ‘भैरव’ का अर्थ है भयानक, अर्थात वह देवता जो काल (समय) के भी स्वामी हैं और अपने भयानक रूप से दुष्टों का संहार करते हैं।
हिन्दू पौराणिक ग्रंथों जैसे शिव पुराण, स्कंद पुराण और लिंग पुराण में काल भैरव की उत्पत्ति और महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है। काल भैरव को न्याय के देवता के रूप में भी पूजा जाता है, जो बुराई का नाश करते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
काल भैरव को शिव के अष्ट भैरवों में सबसे प्रमुख माना जाता है। वे काशी (वाराणसी) के कोतवाल के रूप में भी जाने जाते हैं, जो नगर की रक्षा करते हैं और यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को न्याय प्रदान करते हैं।
काल भैरव की उत्पत्ति की कथा
काल भैरव की उत्पत्ति की कथा अत्यंत रोचक और रहस्यमयी है। यह कथा त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के बीच हुए एक विवाद से शुरू होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार त्रिदेवों के मध्य यह विवाद उठा कि उनमें सबसे श्रेष्ठ और सर्वोच्च कौन है।
स्कंद पुराण के अनुसार, इस विवाद का निर्णय लेने के लिए भगवान विष्णु ने एक विशाल अग्नि स्तंभ बनाने का सुझाव दिया और कहा कि जो इस स्तंभ का अंत या आदि पा सके, वही सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा।
इस प्रस्ताव पर सहमत होकर, भगवान ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण कर स्तंभ के ऊपरी छोर को खोजने का प्रयास किया, जबकि भगवान विष्णु वराह (सूअर) का रूप धारण कर स्तंभ के निचले छोर की खोज में गए। भगवान शिव इस विवाद से अलग रहे और अग्नि स्तंभ के मध्य में स्थित रहे।
ब्रह्मा के पांचवें सिर का छेदन
जब लंबे समय तक भगवान ब्रह्मा और विष्णु स्तंभ के अंत को खोजते रहे और असफल रहे, तब भगवान विष्णु ने स्वीकार कर लिया कि यह स्तंभ अनंत है और इसका अंत पाना असंभव है। वे वापस लौट आए और स्वीकार किया कि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए शिव ही सर्वश्रेष्ठ हैं।
लेकिन भगवान ब्रह्मा अपने अहंकार के कारण सत्य स्वीकार नहीं कर पाए। उन्होंने एक कपोल कल्पित कहानी बनाई कि उन्होंने स्तंभ का ऊपरी छोर देख लिया है। उन्होंने अपने इस झूठ को प्रमाणित करने के लिए एक केतकी पुष्प को गवाह बनाया, जो स्तंभ के ऊपर से गिर रहा था।
जब शिव को इस झूठ का पता चला, तो उनका क्रोध सीमा से बाहर हो गया। उनके क्रोध से एक भयंकर रूप प्रकट हुआ, जिसे काल भैरव कहा गया। यह रूप इतना भयानक था कि सभी देवता भयभीत हो गए।
काल भैरव ने अपने तीक्ष्ण नखों से ब्रह्मा के पाँचवें सिर (जिसने झूठ बोला था) को काट दिया। इस घटना के बाद से ब्रह्मा को चतुर्मुखी (चार मुख वाले) के रूप में जाना जाता है।

ब्रह्महत्या का पाप और प्रायश्चित
ब्रह्मा के सिर का छेदन करने के बाद, काल भैरव को ब्रह्महत्या (ब्राह्मण की हत्या) का पाप लग गया। हालांकि यह कार्य न्याय के लिए किया गया था, फिर भी कर्म के नियम के अनुसार उन्हें इसका प्रायश्चित करना पड़ा।
ब्रह्महत्या का पाप एक कपाल (खोपड़ी) के रूप में काल भैरव के हाथ से चिपक गया। काल भैरव को इस पाप से मुक्ति पाने के लिए तीर्थयात्रा करनी पड़ी। वे कई तीर्थस्थलों में गए और अंत में काशी (वाराणसी) पहुंचे, जहां वे गंगा स्नान करके इस पाप से मुक्त हुए।
यही कारण है कि काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है, और माना जाता है कि वे काशी की रक्षा करते हैं। यह भी कहा जाता है कि कोई भी व्यक्ति काशी में अपना शरीर त्यागने पर मोक्ष प्राप्त करता है, क्योंकि काल भैरव उसके कानों में तारक मंत्र का जाप करते हैं।
काल भैरव के विभिन्न रूप और शक्तियां
पौराणिक ग्रंथों में काल भैरव के आठ प्रमुख रूप (अष्ट भैरव) का वर्णन मिलता है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशेष शक्तियां और गुण हैं:
- काल भैरव – समय के नियंत्रक और न्याय के देवता
- असितांग भैरव – शरीर का अंधकारमय रूप
- रुरु भैरव – जंगली और प्राकृतिक शक्तियों के स्वामी
- चंड भैरव – प्रचंड क्रोध और शक्ति के प्रतीक
- क्रोध भैरव – क्रोध और आवेश के देवता
- उन्मत्त भैरव – उन्माद और दिव्य पागलपन के प्रतीक
- कपाल भैरव – मृत्यु के बाद के जीवन के नियंत्रक
- भीषण भैरव – भय और आतंक के देवता
काल भैरव अपने भक्तों को नौ प्रकार के भयों से मुक्ति प्रदान करते हैं:
- राजभय (शासकों का भय)
- चोरभय (चोरों का भय)
- अग्निभय (आग का भय)
- जलभय (पानी का भय)
- शत्रुभय (दुश्मनों का भय)
- सर्पभय (सांपों का भय)
- व्याघ्रभय (हिंसक जानवरों का भय)
- रोगभय (बीमारियों का भय)
- अकालमृत्युभय (असमय मृत्यु का भय)

काल भैरव की पूजा का महत्व
हिन्दू धर्म में काल भैरव की पूजा विशेष महत्व रखती है। उनकी पूजा मुख्य रूप से रविवार (भैरववार) को की जाती है, खासकर कालाष्टमी (कृष्ण पक्ष की अष्टमी) के दिन, जिसे भैरवाष्टमी भी कहा जाता है।
काल भैरव की पूजा के लिए कुछ विशेष नियम और विधि-विधान हैं:
- काल भैरव को काले तिल, काला चना, खीर और शराब का भोग लगाया जाता है।
- उनकी पूजा में काले रंग के पुष्प, विशेषकर धतूरा, अर्पित किया जाता है।
- सरसों का तेल और सिंदूर भी अर्पित किया जाता है।
- विशेष दिनों पर काल भैरव को कुत्ते की प्रतिमा या चित्र के साथ पूजा जाता है, क्योंकि कुत्ता उनका वाहन माना जाता है।
काल भैरव की पूजा से निम्नलिखित फल प्राप्त होते हैं:
- नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से सुरक्षा
- रोग और कष्टों से मुक्ति
- मानसिक शांति और आत्मबल में वृद्धि
- आर्थिक समृद्धि और व्यापार में सफलता
- शत्रुओं पर विजय
- तांत्रिक बाधाओं से मुक्ति
काल भैरव के प्रमुख मंदिर
भारत में काल भैरव के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
- काल भैरव मंदिर, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) – यह सबसे प्रसिद्ध काल भैरव मंदिर है, जहां उन्हें काशी के कोतवाल के रूप में पूजा जाता है। यहां शराब का भोग लगाने की परंपरा है।
- भैरवनाथ मंदिर, उज्जैन (मध्य प्रदेश) – महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के पास स्थित यह मंदिर भैरव की आठ प्रमुख पीठों में से एक है।
- काला भैरव मंदिर, अहमदाबाद (गुजरात) – यहां भैरव को आठ माताओं (अष्टमातृका) के साथ पूजा जाता है।
- काल भैरव मंदिर, परली वैजनाथ (महाराष्ट्र) – यहां भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के साथ काल भैरव की पूजा की जाती है।
- भैरवनाथ मंदिर, भैरवघाट (मध्य प्रदेश) – नर्मदा नदी के तट पर स्थित यह प्राचीन मंदिर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।
- काल भैरव मंदिर, हरिद्वार (उत्तराखंड) – गंगा के तट पर स्थित इस मंदिर में काल भैरव की भव्य प्रतिमा है।
- भूत भैरव मंदिर, गिरनार पर्वत (गुजरात) – इस पहाड़ी मंदिर में भूत, प्रेत और पिशाचों से सुरक्षा के लिए भैरव की पूजा की जाती है।
- काल भैरव मंदिर, रामेश्वरम (तमिलनाडु) – दक्षिण भारत का यह प्रसिद्ध मंदिर तांत्रिक साधना का केंद्र है।

जीवन में काल भैरव की उपासना का महत्व
हिन्दू धर्म में काल भैरव की उपासना का विशेष महत्व है, खासकर जीवन के कठिन परिस्थितियों में। काल भैरव की आराधना से मनुष्य अपने अंदर निम्नलिखित गुणों का विकास कर सकता है:
- निर्भयता: काल भैरव भक्तों को सभी प्रकार के भय से मुक्त करते हैं और उन्हें निर्भय बनाते हैं।
- न्यायप्रियता: काल भैरव न्याय के देवता हैं, उनकी आराधना से मनुष्य में न्याय और सत्य के प्रति प्रेम बढ़ता है।
- अनुशासन: काल (समय) के नियंत्रक होने के कारण, उनकी उपासना से जीवन में अनुशासन आता है।
- आत्मनियंत्रण: भैरव रूप क्रोध का प्रतीक है, लेकिन नियंत्रित क्रोध का। उनकी आराधना से मनुष्य अपने क्रोध पर नियंत्रण सीखता है।
- आध्यात्मिक शक्ति: तांत्रिक साधना में काल भैरव की उपासना से आध्यात्मिक शक्तियों का विकास होता है।
काल भैरव मंत्र “ॐ काल भैरवाय नमः” का नियमित जाप करने से मनुष्य सभी प्रकार के भय, बाधाओं और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त होता है।
रोचक तथ्य: काल भैरव से जुड़े अनजाने पहलू
- कुत्ता वाहन: काल भैरव का वाहन कुत्ता है, जो वफादारी और सतर्कता का प्रतीक है। इसलिए कई काल भैरव मंदिरों में कुत्तों को विशेष सम्मान दिया जाता है।
- अष्ट भैरव के रंग: आठों भैरवों का अपना विशिष्ट रंग होता है – काल भैरव (काला), असितांग (नीला), रुरु (पीला), चंड (लाल), क्रोध (धूम्र/धुएं का रंग), उन्मत्त (सफेद), कपाल (मटमैला) और भीषण (हरा)।
- भैरवी शक्ति: प्रत्येक भैरव की अपनी भैरवी (शक्ति) होती है, जो शक्ति का स्त्री रूप है। काल भैरव की भैरवी महाकाली हैं।
- तिब्बती संस्कृति में भैरव: तिब्बती बौद्ध धर्म में भी भैरव को ‘महाकाल’ के नाम से पूजा जाता है और उन्हें धर्म के संरक्षक माना जाता है।
- शराब का भोग: काल भैरव को अर्पित की जाने वाली शराब का विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि भैरव शराब को स्वीकार करते हैं लेकिन उसका नशा उन पर प्रभाव नहीं डालता, जो आत्मनियंत्रण का प्रतीक है।
- भैरवाष्टमी: हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरवाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, लेकिन मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को काल भैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है।
- सिद्धि प्राप्ति: तांत्रिक साधना में काल भैरव की उपासना से अष्ट सिद्धियां (अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व) प्राप्त होती हैं।
- अर्धनारीश्वर भैरव: कुछ विशेष तांत्रिक साधनाओं में काल भैरव को अर्धनारीश्वर (आधा पुरुष, आधा स्त्री) रूप में भी पूजा जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
काल भैरव की उत्पत्ति कैसे हुई?
काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई थी, जब ब्रह्मा ने झूठ बोला और अपने को सर्वश्रेष्ठ बताया था। शिव के क्रोध से उत्पन्न इस रूप ने ब्रह्मा के पांचवें सिर का छेदन कर दिया था।
काल भैरव को काशी का कोतवाल क्यों कहा जाता है?
ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए काल भैरव काशी (वाराणसी) आए थे और यहीं उन्हें मुक्ति मिली थी। इसलिए वे काशी के संरक्षक बन गए और उन्हें ‘काशी के कोतवाल’ के रूप में जाना जाता है। माना जाता है कि वे काशी की रक्षा करते हैं और यहां मरने वाले हर व्यक्ति को मोक्ष प्रदान करते हैं।

काल भैरव का वाहन क्या है और क्यों?
काल भैरव का वाहन कुत्ता है। कुत्ता वफादारी, सतर्कता और सुरक्षा का प्रतीक है, जो काल भैरव के संरक्षक स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए अधिकांश काल भैरव मंदिरों में उनकी मूर्ति के साथ एक कुत्ते की मूर्ति भी स्थापित की जाती है।
काल भैरव की पूजा का सबसे उत्तम दिन कौन सा है?
काल भैरव की पूजा के लिए रविवार (भैरववार) और कृष्ण पक्ष की अष्टमी (कालाष्टमी या भैरवाष्टमी) को विशेष माना जाता है। मार्गशीर्ष माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को काल भैरव जयंती मनाई जाती है, जो उनकी पूजा का सबसे शुभ दिन माना जाता है।
काल भैरव को शराब क्यों चढ़ाई जाती है?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, काल भैरव को शराब प्रिय है। इसका तांत्रिक महत्व भी है, जहां शराब पंचमकारों में से एक है। शराब अहंकार के त्याग का प्रतीक भी है, क्योंकि भैरव शराब को स्वीकार करते हैं लेकिन उससे प्रभावित नहीं होते, जो आत्मनियंत्रण का प्रतीक है।
काल भैरव मंत्र के जाप से क्या लाभ होते हैं?
काल भैरव मंत्र “ॐ काल भैरवाय नमः” के नियमित जाप से निम्नलिखित लाभ होते हैं:
- सभी प्रकार के भय से मुक्ति
- शत्रुओं से सुरक्षा
- नकारात्मक ऊर्जा और तांत्रिक बाधाओं से मुक्ति
- रोगों से छुटकारा
- आत्मबल और आत्मविश्वास में वृद्धि
- आर्थिक समृद्धि
- मानसिक शांति और एकाग्रता
काल भैरव के आठ रूप कौन से हैं?
काल भैरव के आठ प्रमुख रूप (अष्ट भैरव) हैं: काल भैरव, असितांग भैरव, रुरु भैरव, चंड भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाल भैरव और भीषण भैरव। प्रत्येक भैरव की अपनी विशिष्ट शक्तियां और गुण हैं।
काल भैरव और महाकाल में क्या अंतर है?
महाकाल शिव का वह रूप है जो समय के नियंत्रक के रूप में जाने जाते हैं, जबकि काल भैरव शिव का क्रोधित रूप है जो न्याय और दंड के देवता हैं। महाकाल सृष्टि के आदि, मध्य और अंत के प्रतीक हैं, जबकि काल भैरव विशेष रूप से न्याय और रक्षा से जुड़े हैं।
क्या काल भैरव की पूजा में कोई विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए?
हां, काल भैरव की पूजा में कुछ विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए:
- पूजा शुद्ध मन से और विधि-विधान के अनुसार करनी चाहिए
- तांत्रिक विधियों का प्रयोग केवल गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए
- काले तिल, काला चना, धतूरा आदि शुद्ध रूप से अर्पित करने चाहिए
- भैरव की पूजा में किसी प्रकार का अहंकार नही