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कालयवन का वध: क्यों रणछोड़ कहलाये श्री कृष्ण | पूरी कथा 2025

क्या भगवान भी भाग सकते हैं? जानिए वह रहस्यमयी कहानी!

क्या आपने कभी सोचा है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण, जिन्होंने कंस जैसे अत्याचारी का वध किया, जिन्होंने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया, वे किसी युद्ध से भाग सकते हैं? जी हाँ! एक ऐसा योद्धा था जिसके सामने भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध भूमि छोड़ दी और भाग खड़े हुए। इसी घटना के बाद उन्हें “रणछोड़” का नाम मिला। लेकिन क्या वाकई में भगवान भाग गए थे? या यह उनकी कोई दैवीय लीला थी? आइए जानते हैं उस अद्भुत योद्धा कालयवन की कथा और भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत युक्ति के बारे में।

कालयवन कौन था? (Who was Kalyavan?)

कालयवन यवन देश का एक महाप्रतापी और अजेय योद्धा था। उसकी कहानी अत्यंत रोचक और रहस्यमयी है। कालयवन जन्म से ब्राह्मण था किंतु कर्म से म्लेच्छ। यह विरोधाभास ही उसके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता थी। उसे किसी भी अस्त्र-शस्त्र से पराजित करना असंभव था और न ही कोई सूर्यवंशी या चंद्रवंशी योद्धा उसे हरा सकता था।

कालयवन के पिता – ऋषि गर्ग (शेषिरायण)

कालयवन की उत्पत्ति की कहानी बड़ी विचित्र है। उसके पिता ऋषि गर्ग (जिन्हें शेषिरायण भी कहा जाता है) गर्ग गोत्र के एक महान तपस्वी थे। वे त्रिगत राज्य के कुलगुरु थे और सिद्धि प्राप्ति के लिए कठोर अनुष्ठान कर रहे थे। इस सिद्धि के लिए उन्हें 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना था।

एक दिन एक गोष्ठी में किसी ने ऋषि शेषिरायण को नपुंसक कहकर उनका अपमान कर दिया। यह कटाक्ष उन्हें गहरा चुभ गया। अपने अहंकार और क्रोध में आकर उन्होंने अपनी तपस्या भंग करने का निर्णय ले लिया। उन्होंने निश्चय किया कि वे भगवान शिव की आराधना करेंगे और एक ऐसे पुत्र का वरदान मांगेंगे जो संसार में अजेय हो।

भगवान शिव का वरदान

ऋषि शेषिरायण ने घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और बोले – “हे ऋषि! मैं तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हूं। तुम जो चाहो वरदान मांग सकते हो।”

ऋषि ने कहा – “हे महादेव! मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो संसार में अजेय हो। जिसे कोई भी योद्धा परास्त न कर सके। उसके सामने सभी शस्त्र निस्तेज हो जाएं।”

भगवान शिव ने मुस्कुराते हुए कहा – “तथास्तु! तुम्हारा पुत्र संसार में अजेय होगा। उसे किसी भी अस्त्र-शस्त्र से कोई हानि नहीं होगी। सूर्यवंशी या चंद्रवंशी कोई भी योद्धा उसे पराजित नहीं कर पाएगा।”

यह वरदान देकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए। वरदान प्राप्ति के पश्चात ऋषि का शरीर अत्यंत सुंदर और तेजस्वी हो गया।

अप्सरा रंभा से विवाह

एक दिन ऋषि शेषिरायण एक झरने के पास से गुजर रहे थे। वहां उन्होंने एक अत्यंत सुंदर स्त्री को जल क्रीड़ा करते देखा। वह स्त्री कोई और नहीं बल्कि स्वर्ग की प्रसिद्ध अप्सरा रंभा थी। दोनों एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए।

रंभा और ऋषि शेषिरायण का विवाह हुआ और उनसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उस पुत्र का नाम कालयवन रखा गया। निश्चित अवधि समाप्त होने पर अप्सरा रंभा स्वर्गलोक वापस चली गई और अपने पुत्र को ऋषि को सौंप दिया। रंभा के जाने के बाद ऋषि का मन पुनः भक्ति और तपस्या में लग गया।

कालयवन का राजा बनना

उन्हीं दिनों कालजंग नामक एक क्रूर राजा म्लेच्छ देश (यवन देश) पर राज करता था। उसे कोई संतान नहीं थी, जिसके कारण वह अत्यंत दुखी रहता था। एक दिन उसके मंत्री ने उसे आनंद गिरी पर्वत पर रहने वाले एक सिद्ध संत के पास ले गया।

उन संत ने राजा कालजंग को बताया कि यदि वह ऋषि शेषिरायण से उनका पुत्र मांग ले, तो ऋषि उसे दे देंगे। कालजंग ऋषि के पास गया और विनम्रता से पुत्र की मांग की। ऋषि ने संत के आदेश का पालन करते हुए अपना पुत्र कालयवन राजा कालजंग को दे दिया।

इस प्रकार कालयवन यवन देश का राजा बना। भगवान शिव के वरदान के कारण वह अजेय था। उसके समान कोई वीर योद्धा नहीं था। वह अत्यंत पराक्रमी, शक्तिशाली और युद्ध कला में निपुण था।

जरासंध से मित्रता और मथुरा पर आक्रमण

भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध को 17 बार पराजित किया था। इससे जरासंध अत्यंत क्रोधित और अपमानित महसूस कर रहा था। तब मद्र देश के राजा शल्य ने जरासंध को सलाह दी कि वह कालयवन से मित्रता करे और उसकी सहायता से श्रीकृष्ण को परास्त करे।

जरासंध ने शल्य को कालयवन के पास भेजा। शल्य ने कालयवन को पूरा वृत्तांत बताया। यह सुनकर कालयवन बहुत प्रसन्न हुआ और बोला – “एक बार मैंने देवर्षि नारद से पूछा था कि संसार में कौन ऐसा योद्धा है जो मेरे समान वीर हो और मुझसे युद्ध कर सके। नारद जी ने मुझे श्रीकृष्ण का नाम बताया था। आज आपने मुझे उनसे युद्ध करने का सुअवसर प्रदान किया है। मैं अवश्य ही आपकी सहायता करूंगा।”

कालयवन ने अपनी विशाल सेना के साथ मथुरा पर आक्रमण कर दिया। उसकी सेना ने मथुरा नगरी को चारों ओर से घेर लिया। कालयवन ने श्रीकृष्ण को युद्ध का संदेश भेजा और युद्ध के लिए एक दिन का समय दिया।

श्रीकृष्ण की युक्ति

श्रीकृष्ण ने कालयवन को संदेश भेजा कि युद्ध केवल उन दोनों के बीच होगा। सेनाओं का रक्त व्यर्थ में क्यों बहाया जाए? कालयवन ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया क्योंकि उसे अपनी शक्ति पर पूर्ण विश्वास था।

जब अक्रूर जी और बलराम जी ने श्रीकृष्ण को युद्ध के लिए मना करने का प्रयास किया, तो श्रीकृष्ण ने उन्हें कालयवन को मिले शिव जी के वरदान के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि कालयवन को कोई भी सूर्यवंशी या चंद्रवंशी योद्धा नहीं हरा सकता।

श्रीकृष्ण ने यह भी बताया कि कालयवन की मृत्यु राजा मुचुकुंद के हाथों होनी निश्चित है। यह सुनकर बलराम जी ने राजा मुचुकुंद के बारे में जानना चाहा।

राजा मुचुकुंद की कथा

श्रीकृष्ण ने समझाया – “दाऊ भैया! राजा मुचुकुंद इक्ष्वाकु वंश के महाप्रतापी राजा मांधाता के पुत्र थे। वे अत्यंत धर्मात्मा, पराक्रमी और न्यायप्रिय राजा थे। एक बार जब देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ, तो देवराज इंद्र ने राजा मुचुकुंद से सहायता मांगी।”

राजा मुचुकुंद ने देवताओं की रक्षा के लिए दानवों से भीषण युद्ध किया। उन्होंने अनेक दानवों का वध किया और देवताओं की विजय सुनिश्चित की। लेकिन इस लंबे युद्ध में वे अत्यंत थक गए थे। कई वर्षों तक बिना विश्राम के युद्ध करने से उनका शरीर और मन दोनों ही शिथिल हो गए थे।

युद्ध समाप्ति के बाद जब देवराज इंद्र ने उन्हें वरदान मांगने को कहा, तो राजा मुचुकुंद ने कहा – “हे देवराज! मैं अत्यंत थका हुआ हूं। मुझे अब केवल निर्बाध निद्रा चाहिए। कोई मुझे न जगाए।”

देवराज इंद्र ने तथास्तु कहा और साथ ही यह भी वरदान दिया – “जो कोई भी आपकी निद्रा भंग करेगा, आपकी दृष्टि पड़ते ही वह तुरंत भस्म हो जाएगा।”

यह वरदान पाकर राजा मुचुकुंद पृथ्वी पर एक पर्वत की गुफा में योग निद्रा में लीन हो गए। वे वहां युगों से सो रहे थे।

रणछोड़ – युद्ध भूमि से पलायन

अब वह समय आ गया जब श्रीकृष्ण और कालयवन का आमना-सामना होना था। जैसे ही युद्ध प्रारंभ होने वाला था, कालयवन अपनी पूरी शक्ति के साथ श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा।

लेकिन आश्चर्य! श्रीकृष्ण ने अपने हाथ में एक भगवा वस्त्र लिया और युद्ध भूमि से विपरीत दिशा में भागने लगे। यह देखकर कालयवन चौंक गया। उसने सोचा था कि श्रीकृष्ण उससे वीरता से लड़ेंगे, लेकिन यहां तो वे भाग रहे थे!

कालयवन उनके पीछे दौड़ने लगा और चिल्लाकर बोला – “कहां भाग रहे हो कृष्ण! मुझसे युद्ध करो! तुम तो रणछोड़ हो – युद्ध भूमि छोड़कर भागने वाले!”

इसी घटना के बाद भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम “रणछोड़” पड़ गया। आज भी गुजरात में भगवान श्रीकृष्ण को “रणछोड़ राय” के नाम से पूजा जाता है।

श्रीकृष्ण अपनी दिव्य लीला करते हुए दौड़ते रहे और कालयवन उनके पीछे-पीछे भागता रहा। वे दोनों बहुत दूर एक पर्वत तक पहुंच गए। वहां एक गुफा थी। श्रीकृष्ण उस गुफा में प्रवेश कर गए और कालयवन भी उनके पीछे-पीछे गुफा में घुस गया।

कालयवन का अंत

गुफा के अंदर अंधेरा था। वहां राजा मुचुकुंद योग निद्रा में सोए हुए थे। श्रीकृष्ण ने चुपचाप अपना भगवा वस्त्र राजा मुचुकुंद के ऊपर डाल दिया और स्वयं गुफा के एक कोने में छिप गए।

जब कालयवन गुफा में पहुंचा तो उसने वहां एक व्यक्ति को भगवा वस्त्र ओढ़े सोते हुए देखा। उसे लगा कि यह श्रीकृष्ण ही हैं जो उससे बचने के लिए सोने का बहाना कर रहे हैं।

क्रोध में आकर कालयवन चिल्लाया – “अरे रणछोड़! मुझे मूर्ख समझा है क्या? यहां सोकर मुझसे बचने का प्रयास कर रहे हो?”

यह कहकर उसने सोए हुए व्यक्ति को जोर से लात मारी। राजा मुचुकुंद की योग निद्रा टूट गई। उन्होंने धीरे-धीरे अपनी आंखें खोलीं और गरजकर पूछा – “किसने मेरी निद्रा भंग की?”

जैसे ही राजा मुचुकुंद की दृष्टि कालयवन पर पड़ी, देवराज इंद्र के वरदान के अनुसार कालयवन का शरीर तुरंत अग्नि में जलकर भस्म हो गया। उसकी राख वहीं गुफा में बिखर गई।

इस प्रकार श्रीकृष्ण की अद्भुत युक्ति से कालयवन का अंत हो गया। यह घटना हमें सिखाती है कि शक्ति से अधिक महत्वपूर्ण बुद्धि होती है। श्रीकृष्ण ने बिना अस्त्र-शस्त्र उठाए, केवल अपनी बुद्धि और युक्ति से एक अजेय योद्धा का अंत कर दिया।

रोचक तथ्य (Interesting Facts)

1. रणछोड़ नाम का वास्तविक अर्थ

बहुत से लोग सोचते हैं कि “रणछोड़” का अर्थ है “कायर” या “भगोड़ा”, लेकिन यह सत्य नहीं है। रणछोड़ का अर्थ है – “जो युद्ध को छोड़ देता है।” श्रीकृष्ण ने युद्ध इसलिए नहीं छोड़ा क्योंकि वे डर गए थे, बल्कि इसलिए कि उन्हें पता था कि कालयवन को युद्ध में हराना असंभव है। उन्होंने बुद्धिमानी से वह मार्ग चुना जो सर्वोत्तम था।

2. गुजरात में रणछोड़ राय का मंदिर

गुजरात के डकोर गांव में रणछोड़ राय का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां भगवान कृष्ण की मूर्ति दौड़ती हुई मुद्रा में स्थापित है। यह मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध कृष्ण मंदिरों में से एक है।

3. ब्राह्मण पुत्र होकर भी म्लेच्छ

कालयवन की कहानी एक महत्वपूर्ण संदेश देती है – जन्म से नहीं बल्कि कर्म से व्यक्ति की पहचान बनती है। कालयवन ब्राह्मण पुत्र होकर भी अपने कर्मों से म्लेच्छ बन गया।

4. राजा मुचुकुंद का त्याग

कालयवन के भस्म होने के बाद जब राजा मुचुकुंद की श्रीकृष्ण से भेंट हुई, तो उन्होंने कोई भौतिक वरदान नहीं मांगा। उन्होंने केवल भगवान की भक्ति और मोक्ष की कामना की। यह उनके वैराग्य और आध्यात्मिकता का प्रमाण है।

5. शिव जी का वरदान और उसकी सीमा

शिव जी ने कालयवन को यह वरदान दिया था कि कोई भी सूर्यवंशी या चंद्रवंशी योद्धा उसे नहीं हरा सकता। यह वरदान सीमित था। राजा मुचुकुंद, हालांकि सूर्यवंशी थे, लेकिन वे एक योद्धा के रूप में नहीं बल्कि एक निद्रित व्यक्ति के रूप में थे। इसलिए तकनीकी रूप से वरदान की सीमा में यह घटना नहीं आती थी।

6. श्रीकृष्ण की योजना

यह पूरी घटना श्रीकृष्ण की पूर्व योजनाबद्ध थी। वे पहले से जानते थे कि कालयवन को केवल राजा मुचुकुंद ही मार सकते हैं। इसीलिए उन्होंने यह पूरी लीला रची।

7. मथुरा की रक्षा

इस घटना के बाद मथुरा जरासंध और कालयवन दोनों के खतरे से मुक्त हो गई। लेकिन श्रीकृष्ण ने सावधानी बरतते हुए यादवों को द्वारका ले जाने का निर्णय लिया।

8. भगवा वस्त्र का महत्व

कहानी में भगवा वस्त्र का विशेष महत्व है। भगवा रंग त्याग और वैराग्य का प्रतीक है। श्रीकृष्ण ने यह वस्त्र राजा मुचुकुंद पर इसलिए डाला ताकि कालयवन भ्रमित हो जाए।

कहानी से मिलने वाली सीख

इस पौराणिक कथा से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:

1. बुद्धि बल से बड़ी है: कालयवन शारीरिक रूप से अजेय था, लेकिन श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता के सामने वह हार गया।

2. अहंकार का परिणाम: ऋषि शेषिरायण ने अपने अहंकार में आकर तपस्या भंग की और एक ऐसे पुत्र की कामना की जो अंततः विनाश का कारण बना।

3. वरदान की सीमाएं: हर वरदान की अपनी सीमाएं होती हैं। कालयवन को मिला वरदान भी सीमित था।

4. धैर्य और समय: श्रीकृष्ण ने धैर्य से सही समय की प्रतीक्षा की और सही अवसर पर सही कदम उठाया।

5. कर्म का महत्व: जन्म से कोई श्रेष्ठ या निम्न नहीं होता, कर्म से होता है।

निष्कर्ष

कालयवन की कथा हमें बताती है कि श्रीकृष्ण केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि वे एक महान रणनीतिकार और कूटनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने यह सिद्ध किया कि हर समस्या का समाधान युद्ध नहीं होता। कभी-कभी बुद्धि और युक्ति से भी सबसे कठिन समस्याओं का हल निकाला जा सकता है।

“रणछोड़” नाम कोई अपमान नहीं बल्कि श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता का प्रमाण है। आज भी भक्त उन्हें इस नाम से प्रेम और श्रद्धा के साथ पुकारते हैं।

यह कथा हमें प्रेरित करती है कि जीवन में कठिन परिस्थितियों में हमें धैर्य, बुद्धि और सही समय का इंतजार करना चाहिए। हर युद्ध को लड़ने की आवश्यकता नहीं होती, कभी-कभी स्थिति को समझदारी से संभालना ही सबसे बड़ी वीरता है।


अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: कालयवन कौन था और उसके पिता कौन थे?

उत्तर: कालयवन यवन देश का राजा था। उसके पिता ऋषि गर्ग (शेषिरायण) थे जो गर्ग गोत्र के ब्राह्मण ऋषि थे, और माता अप्सरा रंभा थीं। वह जन्म से ब्राह्मण लेकिन कर्म से म्लेच्छ था।

प्रश्न 2: श्रीकृष्ण को रणछोड़ क्यों कहा जाता है?

उत्तर: जब कालयवन से युद्ध करने के लिए श्रीकृष्ण युद्ध भूमि छोड़कर भाग गए थे, तब कालयवन ने उन्हें “रणछोड़” (युद्ध छोड़ने वाला) कहकर पुकारा। तभी से उनका यह नाम प्रसिद्ध हो गया। लेकिन यह कोई कायरता नहीं बल्कि उनकी दिव्य युक्ति थी।

प्रश्न 3: कालयवन को किसने मारा?

उत्तर: कालयवन को राजा मुचुकुंद की दृष्टि से मृत्यु प्राप्त हुई। जब कालयवन ने सोए हुए राजा मुचुकुंद को लात मारी, तो उनकी निद्रा टूटी और उनकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन भस्म हो गया। यह इंद्र द्वारा दिए गए वरदान का परिणाम था।

प्रश्न 4: राजा मुचुकुंद कौन थे?

उत्तर: राजा मुचुकुंद इक्ष्वाकु वंश के महाराज मांधाता के पुत्र थे। उन्होंने देवताओं की सहायता के लिए दानवों से युद्ध किया था। युद्ध के बाद इंद्र से निर्बाध निद्रा का वरदान प्राप्त किया था और यह भी वरदान मिला था कि जो उनकी निद्रा भंग करेगा, वह भस्म हो जाएगा।

प्रश्न 5: भगवान शिव ने कालयवन को क्या वरदान दिया था?

उत्तर: भगवान शिव ने कालयवन के पिता ऋषि शेषिरायण को वरदान दिया था कि उनका पुत्र अजेय होगा। किसी भी अस्त्र-शस्त्र से उसे हानि नहीं होगी और कोई भी सूर्यवंशी या चंद्रवंशी योद्धा उसे पराजित नहीं कर पाएगा।

प्रश्न 6: कालयवन श्रीकृष्ण से युद्ध क्यों करना चाहता था?

उत्तर: कालयवन ने एक बार देवर्षि नारद से पूछा था कि उसके समान कौन योद्धा है। नारद जी ने श्रीकृष्ण का नाम बताया था। इसके अलावा, जरासंध ने भी कालयवन को श्रीकृष्ण के विरुद्ध भड़काया था क्योंकि कृष्ण ने उसे 17 बार पराजित किया था।

प्रश्न 7: श्रीकृष्ण ने कालयवन से युद्ध क्यों नहीं किया?

उत्तर: श्रीकृष्ण जानते थे कि शिव जी के वरदान के कारण कालयवन को युद्ध में हराना असंभव है। इसलिए उन्होंने बुद्धिमत्ता से यह युक्ति रची कि कालयवन को राजा मुचुकुंद के पास ले जाया जाए, जहां वरदान के अनुसार उसकी मृत्यु निश्चित थी।

प्रश्न 8: रणछोड़ राय का मंदिर कहां है?

उत्तर: रणछोड़ राय का सबसे प्रसिद्ध मंदिर गुजरात के डकोर गांव में स्थित है। यह मंदिर 13वीं शताब्दी में बनाया गया था और यहां श्रीकृष्ण की मूर्ति दौड़ती हुई मुद्रा में स्थापित है।

प्रश्न 9: इस कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर: इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बुद्धि बल से बड़ी होती है। हर समस्या का समाधान युद्ध या हिंसा नहीं है। धैर्य, बुद्धिमत्ता और सही समय पर सही निर्णय लेना ही सच्ची वीरता है। साथ ही यह भी सिखाता है कि अहंकार का परिणाम विनाशकारी होता है।

प्रश्न 10: क्या कालयवन वास्तव में बुरा था?

उत्तर: कालयवन स्वभाव से योद्धा था और वह अपनी शक्ति के घमंड में था। वह न तो पूर्णतः बुरा था और न ही अच्छा। वह एक महान योद्धा था जो अपने बल पर गर्व करता था। उसका अंत उसके अहंकार और भाग्य का परिणाम था।


अस्वीकरण: यह कथा विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है। विभिन्न स्रोतों में इसके विवरण में थोड़ा अंतर हो सकता है।

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