क्या आपने कभी सोचा है कि वह भगवान शिव जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी हैं, जिनके एक इशारे पर सृष्टि का निर्माण और संहार होता है, उन्हें अपनी ही पत्नी से भिक्षा मांगने की नौबत क्यों आई? यह कहानी केवल एक पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि जीवन के सबसे गहरे सत्य को उजागर करती है। आइए जानते हैं उस दिव्य लीला के बारे में जब महादेव को समझना पड़ा कि अन्न केवल माया नहीं, बल्कि जीवन का आधार है।
कैलाश पर्वत पर हुई वह चर्चा जिसने बदल दिया सब कुछ
कैलाश पर्वत की शांत वादियों में एक दिन भगवान शिव ध्यान में लीन थे। तभी माता पार्वती उनके पास आईं और अत्यंत विनम्रता से बोलीं, “स्वामी, हमें कैलाश पर एक रसोई की आवश्यकता है।”
यह सुनकर भगवान शिव मुस्कुराए और माता से कहा, “देवी, भोजन तो एक प्रकार की आसक्ति और मोह है। प्राणी मात्र को सभी प्रकार के मोह का त्याग कर देना चाहिए। यही ब्रह्मा और विष्णु का भी मत है।”
माता पार्वती का तर्क और क्रोध
भगवान शिव के ये शब्द माता पार्वती को अपमानजनक लगे। वे क्रोधित हो गईं क्योंकि वे ही लक्ष्मी और सरस्वती के साथ मिलकर सम्पूर्ण सृष्टि के प्राणों का पालन करती थीं। माता ने कहा, “हे प्रभु! जब मेरी यहाँ कोई आवश्यकता ही नहीं है, तो मैं यहाँ क्यों रहूँ?”
यह कहते ही माता पार्वती वहाँ से अंतर्धान हो गईं। उनके जाते ही भगवान शिव को उनकी कमी का अहसास हुआ और वे पुनः समाधि में लीन हो गए।
त्रिलोक में मचा हाहाकार – जब गायब हो गया अन्न का एक दाना
माता पार्वती के अंतर्धान होते ही एक अद्भुत घटना घटी। पूरे संसार से अन्न का नाम-निशान मिट गया। तीनों लोकों में हाहाकार मच गया:
पृथ्वी लोक की स्थिति:
- खेतों में अनाज के दाने सूख गए
- पेड़ों पर फल गायब हो गए
- कंद-मूल तक नहीं मिल रहे थे
- गायों का दूध सूख गया
स्वर्ग लोक की दुर्दशा:
- हविष और स्वधा (देवताओं का भोजन) गायब हो गया
- अमृत भी दुर्लभ हो गया
- देवता भी भूख से व्याकुल हो गए
पाताल लोक की समस्या:
- वहाँ भी कोई भोज्य पदार्थ नहीं बचा
- नाग और असुर भी भूख से तड़पने लगे
देवताओं की याचना और भगवान शिव की असमर्थता
जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई, तो सभी देवता और गण भगवान गणेश को आगे करके भगवान शिव के पास पहुँचे। वे सभी याचना करने लगे:
“हे प्रभु! सृष्टि में कहीं भी अन्न का एक दाना नहीं है। हम सब भूख से तड़प रहे हैं। कृपा करके कोई उपाय बताइए।”
भगवान शिव स्वयं को असमर्थ पाते हुए भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी से सलाह लेने गए, परंतु वे भी उतने ही असहाय थे।
भगवान शिव की खोज यात्रा
अब भगवान शिव त्रिलोक में घूमने लगे। वे हर जगह अन्न की खोज कर रहे थे, परंतु कहीं भी कंद-मूल, फल या अन्न का एक दाना भी नहीं मिला। तब उन्हें समझ आया कि त्रिलोक में भोजन का क्या महत्व है।
अघोरी से मिली सलाह
जब भगवान शिव अन्न की खोज में भटक रहे थे, तभी उन्हें एक अघोरी मिला। उस अघोरी ने भगवान को भी अघोरी समझकर कहा:
“यदि आप भोज्य पदार्थ की खोज में हैं, तो काशी नगरी में जाइए। वहाँ एक दिव्य स्त्री ने अपनी रसोई बनाई है, जहाँ सभी भूखे प्राणियों की भूख शांत होती है।”
काशी में माता अन्नपूर्णा का दिव्य दर्शन
भगवान शिव जब काशी पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि वहाँ माता पार्वती ही अन्नपूर्णा के रूप में स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं। उनकी दिव्य आभा तीनों लोकों में जगमगा रही थी।

अन्नपूर्णा रूप की विशेषताएं:
- स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान
- हाथ में चावल से भरा कटोरा
- दूसरे हाथ में सुनहरा चमचा
- मुख पर मंद मुस्कान
- तेजोमय स्वरूप
माता अन्नपूर्णा सभी भूखे प्राणियों को भोजन प्रदान कर रही थीं। वहाँ कोई भी प्राणी भूखा नहीं था।
भगवान शिव की विनम्रता और माता की कृपा
भगवान शिव को आया देखकर माता अन्नपूर्णा मंद-मंद मुस्कुराईं और मीठे स्वर में बोलीं:
“हे प्रभु! आप और ब्रह्मा जी भोग के बंधन में नहीं बंधे हैं, परंतु आपके भक्तजन भोग के बंधन में बंधे हुए हैं।”
यह कहते हुए भगवती अन्नपूर्णा ने जगत के कल्याण के लिए तीन मुट्ठी चावल भगवान शिव को तीनों लोकों के लिए प्रदान किए।
तीनों लोकों में अन्न का वितरण
भगवान शिव ने ये चावल लेकर जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु को दिए। भगवान विष्णु ने त्रिलोक की भूख शांत करने के लिए इन चावलों को तीन भागों में बराबर-बराबर बाँट दिया:
- पृथ्वी लोक – मनुष्यों और जीव-जंतुओं के लिए
- स्वर्ग लोक – देवताओं के लिए
- पाताल लोक – नागों और अन्य प्राणियों के लिए
इस कथा के गहरे आध्यात्मिक संदेश
1. अहंकार का नाश
यह कथा दिखाती है कि चाहे कोई कितना भी महान हो, अहंकार उसका नाश कर देता है। भगवान शिव को भी अपना अहंकार त्यागना पड़ा।
2. शिव-शक्ति की अभिन्नता
शिव बिना शक्ति के अधूरे हैं और शक्ति बिना शिव के। दोनों मिलकर ही सृष्टि का संचालन करते हैं।
3. अन्न का महत्व
अन्न केवल भौतिक आवश्यकता नहीं है, बल्कि जीवन का आधार है। इसका सम्मान करना आवश्यक है।
4. मातृशक्ति का सम्मान
माता की शक्ति अनंत है। उनका अपमान करने का परिणाम भयंकर होता है।
काशी में अन्नपूर्णा मंदिर का महत्व
आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पास स्थित माता अन्नपूर्णा का मंदिर इस दिव्य घटना का साक्षी है। यहाँ की विशेषताएं:
मंदिर की खासियतें:
- 18वीं शताब्दी में निर्मित
- माता अन्नपूर्णा की स्वर्णिम मूर्ति
- भगवान शिव भिक्षापात्र लेकर खड़े हैं
- प्रतिदिन हजारों भक्तों को प्रसाद वितरण
- अन्नकूट महोत्सव का भव्य आयोजन
मंदिर के नियम:
- यहाँ कोई भी भूखा नहीं जाता
- निःशुल्क भोजन की व्यवस्था
- जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं
- 24 घंटे दर्शन की सुविधा

रोचक और अज्ञात तथ्य
1. अन्नपूर्णा नाम का अर्थ
“अन्न” (भोजन) + “पूर्णा” (परिपूर्ण) = जो अन्न से परिपूर्ण हो
2. तंत्र शास्त्र में महत्व
तंत्र शास्त्र में माता अन्नपूर्णा को “षोडशी विद्या” की देवी माना गया है
3. ज्योतिष में स्थान
ज्योतिष के अनुसार माता अन्नपूर्णा चंद्र ग्रह की अधिष्ठात्री देवी हैं
4. आयुर्वेद में मान्यता
आयुर्वेद में अन्नपूर्णा को “ओजस्” (जीवन शक्ति) की देवी माना गया है
5. विभिन्न नाम
माता अन्नपूर्णा के 108 नाम हैं, जिनमें “भोगेश्वरी”, “अन्नदा”, “आदिशक्ति” प्रमुख हैं
6. पर्वों का संबंध
दीपावली में लक्ष्मी के साथ अन्नपूर्णा की भी पूजा करने की परंपरा है
आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता
1. अन्न की महत्ता
आज के युग में जब खाद्य संकट बढ़ रहा है, यह कथा अन्न के महत्व को समझाती है
2. पर्यावरण संरक्षण
अन्न उत्पादन के लिए प्रकृति का संरक्षण आवश्यक है
3. भूख मिटाने का संकल्प
“अन्न दान महादान” की भावना से भूखों को भोजन देना चाहिए
4. अहंकार से मुक्ति
सफलता मिलने पर अहंकार नहीं करना चाहिए
5. पारिवारिक एकता
पति-पत्नी के बीच सम्मान और समझ होनी चाहिए
माता अन्नपूर्णा की आराधना विधि
मंत्र:
ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥
पूजा सामग्री:
- सफेद वस्त्र
- चावल, दाल, सब्जी
- खीर या मिठाई
- सुनहरे फूल
- दीप और धूप
व्रत नियम:
- प्रातःकाल स्नान करें
- सफेद वस्त्र धारण करें
- अन्न का सम्मान करें
- भूखे को भोजन कराएं
उपसंहार
यह दिव्य कथा हमें सिखाती है कि जीवन में संतुलन अत्यंत आवश्यक है। भौतिक और आध्यात्मिक, दोनों का अपना महत्व है। माता अन्नपूर्णा की यह लीला यह दर्शाती है कि मातृशक्ति की उपेक्षा का परिणाम कितना घातक हो सकता है।
भगवान शिव जैसे महादेव को भी अपना अहंकार त्यागकर माता से भिक्षा मांगनी पड़ी। यह हमें विनम्रता का पाठ पढ़ाता है। आज भी काशी में माता अन्नपूर्णा अपने भक्तों की भूख मिटाती रहती हैं और यह संदेश देती रहती हैं कि इस संसार में कोई भी भूखा न रहे।
माता अन्नपूर्णा की कृपा से ही हमारे घरों में अन्न के भंडार भरे रहते हैं। उनका आशीर्वाद पाने के लिए हमें अन्न का सम्मान करना चाहिए और कभी भी इसकी बर्बादी नहीं करनी चाहिए।
जय माता अन्नपूर्णा! अन्नपूर्णा मैया की जय!
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: भगवान शिव को माता अन्नपूर्णा से भिक्षा क्यों मांगनी पड़ी?
उत्तर: भगवान शिव ने माता पार्वती को कहा था कि भोजन केवल मोह और आसक्ति है। इस पर क्रोधित होकर माता ने संसार से अन्न का नाम-निशान मिटा दिया। जब स्वयं शिवजी को भूख लगी तो उन्हें अहसास हुआ कि अन्न जीवन का आधार है, इसलिए उन्हें माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगनी पड़ी।
प्रश्न 2: माता अन्नपूर्णा ने भगवान शिव को कितने चावल दिए थे?
उत्तर: माता अन्नपूर्णा ने भगवान शिव को तीन मुट्ठी चावल प्रदान किए थे, जो तीनों लोकों (पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल) के लिए पर्याप्त थे।
प्रश्न 3: यह घटना कहाँ घटी थी?
उत्तर: यह दिव्य घटना काशी (वाराणसी) में घटी थी। आज भी वहाँ काशी विश्वनाथ मंदिर के पास माता अन्नपूर्णा का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।
प्रश्न 4: माता अन्नपूर्णा का मुख्य मंत्र क्या है?
उत्तर: माता अन्नपूर्णा का मुख्य मंत्र है: “ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकर प्राणवल्लभे। ज्ञानवैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥”
प्रश्न 5: माता अन्नपूर्णा की पूजा से क्या लाभ होता है?
उत्तर: माता अन्नपूर्णा की पूजा से घर में अन्न की कमी नहीं होती, सुख-समृद्धि आती है, भूख से मुक्ति मिलती है और परिवार में शांति बनी रहती है।
प्रश्न 6: अन्नपूर्णा जयंती कब मनाई जाती है?
उत्तर: माता अन्नपूर्णा की जयंती मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना और अन्नदान किया जाता है।
प्रश्न 7: माता अन्नपूर्णा के कितने नाम हैं?
उत्तर: माता अन्नपूर्णा के 108 नाम हैं, जिनमें भोगेश्वरी, अन्नदा, आदिशक्ति, पार्वती, गौरी आदि प्रमुख हैं।
प्रश्न 8: क्या अन्न बर्बाद करना पाप है?
उत्तर: हाँ, अन्न की बर्बादी करना महापाप माना गया है। माता अन्नपूर्णा की कथा यह सिखाती है कि अन्न का सम्मान करना चाहिए और कभी भी इसे व्यर्थ नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 9: इस कथा का आधुनिक जीवन में क्या महत्व है?
उत्तर: आधुनिक जीवन में यह कथा हमें सिखाती है कि अहंकार त्यागना चाहिए, अन्न का सम्मान करना चाहिए, भूखों को भोजन देना चाहिए और पारिवारिक रिश्तों में सम्मान बनाए रखना चाहिए।
प्रश्न 10: माता अन्नपूर्णा की आरती कब करनी चाहिए?
उत्तर: माता अन्नपूर्णा की आरती प्रातःकाल और संध्या के समय करनी चाहिए। भोजन करने से पहले माता को भोग लगाकर आरती करने से विशेष फल मिलता है।