परिचय: पांडवों के अंतिम यात्रा का रहस्य
क्या आपने कभी सोचा है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों का अंत कैसे हुआ? क्या आप जानते हैं कि पांच पांडव भाइयों में से सबसे पहले किसकी मृत्यु हुई थी? महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों ने 36 वर्षों तक शासन किया और फिर हिमालय की ओर महाप्रस्थान करने का निर्णय लिया। आज हम आपको बताएंगे कि इस महाप्रस्थान के दौरान पांडवों की मृत्यु किस क्रम में हुई और क्यों हुई।
महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडवों ने हस्तिनापुर पर शासन किया। लेकिन 36 साल बाद, जब वे बूढ़े हो गए और उनके उत्तराधिकारी तैयार हो गए, तब उन्होंने संसार त्यागने का निर्णय लिया। युधिष्ठिर ने परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया और द्रौपदी के साथ पांचों भाई हिमालय की ओर चल दिए। उनके साथ एक कुत्ता भी था, जिसे युधिष्ठिर ने अपनी यात्रा में साथ रखा।
आइए जानते हैं कि महाप्रस्थान के दौरान पांडवों की मृत्यु का क्रम क्या था और क्यों एक-एक करके वे गिरते गए।
द्रौपदी की मृत्यु – महाप्रस्थान की पहली बलि
हिमालय की कठिन यात्रा में सबसे पहले द्रौपदी ने अपने प्राण त्यागे। जब सभी पांडव और द्रौपदी हिमालय की चढ़ाई कर रहे थे, तभी द्रौपदी अचानक गिर पड़ी और उनकी मृत्यु हो गई। भीम ने आगे बढ़ते हुए युधिष्ठिर से पूछा, “क्या तुम जानते हो कि द्रौपदी क्यों गिरी?”
युधिष्ठिर ने उत्तर दिया, “सुनो भीम, द्रौपदी सदा अर्जुन के प्रति अधिक आसक्त थीं। उन्होंने हम चारों भाइयों को समान प्रेम नहीं दिया, इसलिए उनका पतन हुआ।”
द्रौपदी महाभारत की एक महत्वपूर्ण नारी थीं, जिन्होंने पांचों पांडवों के साथ विवाह किया था। उनके जीवन में कई परीक्षाएं आईं, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने पतियों का साथ दिया। फिर भी, उनके मन में अर्जुन के प्रति विशेष स्नेह था, जो अन्य पांडवों के प्रति अनुचित था। यही कारण था कि महाप्रस्थान के दौरान वे सबसे पहले गिरीं।
सहदेव की मृत्यु – ज्ञान का अहंकार
द्रौपदी के बाद, पांडवों में सबसे छोटे भाई सहदेव का पतन हुआ। सहदेव बहुत बुद्धिमान थे और उन्हें भविष्य देखने की क्षमता थी। जब भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि सहदेव क्यों गिरे, तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया:
“सुनो भीम, सहदेव को अपने ज्ञान का अहंकार था। उन्हें लगता था कि कोई भी उनसे अधिक ज्ञानी नहीं है। वे हमेशा अपने ज्ञान के बारे में बड़ाई करते थे, और कभी-कभी दूसरों को हीन समझते थे। इसलिए उनका पतन हुआ।”
सहदेव माद्री और पांडु के पुत्र थे और नकुल के जुड़वा भाई थे। उन्हें विभिन्न शास्त्रों का विशेष ज्ञान था और वे ज्योतिष में भी पारंगत थे। लेकिन उनके अंदर छिपा हुआ अहंकार उनकी कमजोरी बन गया, जिसके कारण उन्हें महाप्रस्थान के दौरान अपने प्राण त्यागने पड़े।

नकुल की मृत्यु – सौंदर्य का अहंकार
सहदेव के बाद, उनके जुड़वा भाई नकुल का पतन हुआ। नकुल भी माद्री और पांडु के पुत्र थे, और वे अपने असाधारण सौंदर्य के लिए जाने जाते थे। जब भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि नकुल क्यों गिरे, तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया:
“सुनो भीम, नकुल को अपने सौंदर्य का अहंकार था। वे हमेशा अपने रूप की प्रशंसा करते थे और सोचते थे कि उनके जैसा सुंदर पुरुष कोई नहीं है। इस अहंकार के कारण उनका पतन हुआ।”
नकुल न केवल सुंदर थे, बल्कि वे एक कुशल योद्धा और अश्वारोही भी थे। लेकिन उनकी इस कमजोरी ने उन्हें महाप्रस्थान के दौरान गिरा दिया। इससे हमें सीख मिलती है कि बाहरी सौंदर्य से अधिक महत्वपूर्ण आंतरिक सौंदर्य और विनम्रता है।
अर्जुन का पतन – वीरता का अहंकार
नकुल के बाद, तीसरे पांडव अर्जुन का पतन हुआ। अर्जुन कुंती और पांडु के पुत्र थे, और वे महाभारत के सबसे महान धनुर्धारियों में से एक थे। जब भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि अर्जुन क्यों गिरे, तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया:
“सुनो भीम, अर्जुन को अपनी वीरता और धनुर्विद्या का अहंकार था। वे हमेशा अपने पराक्रम की बात करते थे और सोचते थे कि वे अकेले ही कौरवों की सेना को परास्त कर सकते हैं। इसी अहंकार के कारण उनका पतन हुआ।”
अर्जुन श्रीकृष्ण के प्रिय मित्र थे और गीता का उपदेश उन्हीं को दिया गया था। वे न केवल एक महान योद्धा थे, बल्कि एक सम्मानित व्यक्ति भी थे। लेकिन उनके अंदर छिपा हुआ वीरता का अहंकार उनकी कमजोरी बन गया, जिसके कारण उन्हें महाप्रस्थान के दौरान अपने प्राण त्यागने पड़े।
भीम का पतन – शक्ति का अहंकार
अर्जुन के बाद, दूसरे पांडव भीम का पतन हुआ। भीम कुंती और वायु देव के पुत्र थे, और वे अपनी असाधारण शारीरिक शक्ति के लिए जाने जाते थे। जब भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि वे क्यों गिरे, तो युधिष्ठिर ने भीम की मृत्यु से पहले उत्तर दिया:
“सुनो भीमसेन, तुम्हे अपनी शारीरिक शक्ति का अहंकार था। तुम हमेशा सोचते थे कि मेरे जैसा बलवान कोई नहीं है, और मैं अकेले ही सभी शत्रुओं को परास्त कर सकता हूं। इसी अहंकार के कारण तुम्हारा पतन हो रहा है।”
भीम महाभारत युद्ध में पांडवों की ओर से सबसे शक्तिशाली योद्धा थे। उन्होंने कौरवों के कई महारथियों को परास्त किया था, जिनमें दुर्योधन और दुःशासन शामिल थे। लेकिन उनकी शक्ति का अहंकार उनकी कमजोरी बन गया, जिसके कारण उन्हें महाप्रस्थान के दौरान अपने प्राण त्यागने पड़े।

युधिष्ठिर और कुत्ते की कहानी – स्वर्ग तक का सफर
अब केवल युधिष्ठिर और उनके साथ का कुत्ता बचे थे। वे दोनों हिमालय की चोटियों पर चढ़ते रहे। तभी इंद्र देव अपने रथ पर प्रकट हुए और युधिष्ठिर को स्वर्ग ले जाने का प्रस्ताव रखा। लेकिन युधिष्ठिर ने कहा कि वे अपने साथी कुत्ते को छोड़कर नहीं जाएंगे।
इंद्र ने कहा, “युधिष्ठिर, स्वर्ग में कुत्तों का प्रवेश निषिद्ध है। तुम्हें अकेले ही आना होगा।”
लेकिन युधिष्ठिर दृढ़ रहे, “मैं अपने वफादार साथी को छोड़कर नहीं जाऊंगा। अगर स्वर्ग में मेरे कुत्ते का प्रवेश नहीं है, तो मैं भी वहां नहीं जाऊंगा।”
इस पर कुत्ता अचानक अपने असली रूप, धर्मराज (यमराज) में प्रकट हुआ। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा, “पुत्र, मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था। तुम्हारी निष्ठा और दया देखकर मैं बहुत प्रसन्न हूं। तुम सीधे अपने शरीर के साथ स्वर्ग जाने के योग्य हो।”
इस प्रकार, युधिष्ठिर एकमात्र ऐसे पांडव थे, जिन्होंने अपने शारीरिक रूप में स्वर्ग में प्रवेश किया। अन्य सभी पांडवों और द्रौपदी को पहले नरक में जाना पड़ा, फिर वे स्वर्ग पहुंचे।
युधिष्ठिर के स्वर्ग प्रवेश का रहस्य
युधिष्ठिर के स्वर्ग प्रवेश का रहस्य उनकी निष्ठा और धर्म के प्रति समर्पण में छिपा था। वे हमेशा सत्य और धर्म का पालन करते थे, भले ही उसके लिए उन्हें कितना भी त्याग करना पड़े। स्वर्ग में प्रवेश करने के बाद, युधिष्ठिर को एक बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने देखा कि दुर्योधन और अन्य कौरव स्वर्ग में आराम से रह रहे थे, जबकि उनके भाई और द्रौपदी कहीं नहीं दिखे।
युधिष्ठिर ने इंद्र से पूछा, “मेरे भाई और द्रौपदी कहां हैं?”
इंद्र ने उत्तर दिया, “वे नरक में हैं।”
युधिष्ठिर आश्चर्यचकित हो गए, “क्या? मेरे धर्मात्मा भाई और पतिव्रता द्रौपदी नरक में, और पापी दुर्योधन स्वर्ग में? यह कैसा न्याय है?”
इंद्र ने समझाया, “युधिष्ठिर, प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। दुर्योधन ने युद्ध में वीरता से लड़ते हुए प्राण त्यागे, इसलिए वह स्वर्ग का अधिकारी है। लेकिन तुम्हारे भाइयों और द्रौपदी को उनके कुछ पापों के लिए थोड़े समय तक नरक में रहना होगा, उसके बाद वे भी स्वर्ग आ जाएंगे।”

युधिष्ठिर ने कहा, “तब मुझे भी मेरे भाइयों और द्रौपदी के साथ नरक में ले चलिए। मैं उनके बिना स्वर्ग में नहीं रह सकता।”
इस पर इंद्रदेव ने युधिष्ठिर को नरक में ले जाया। वहां पहुंचकर युधिष्ठिर ने दुर्गंध, अंधेरा और दर्द देखा। लेकिन जैसे ही वे वहां पहुंचे, सब कुछ बदल गया। वहां का अंधेरा चला गया, दुर्गंध मिट गई और सुखद वातावरण बन गया।
तभी इंद्र और यमराज प्रकट हुए और बोले, “युधिष्ठिर, यह सब तुम्हारी एक और परीक्षा थी। तुम्हारे भाई और द्रौपदी पहले से ही स्वर्ग में हैं। हमने यह देखना चाहा था कि क्या तुम अपने भाइयों और पत्नी के लिए स्वर्ग का सुख त्याग सकते हो।”
इस प्रकार, युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रौपदी से स्वर्ग में मिले और सभी ने आनंदपूर्वक स्वर्ग में निवास किया।
पांडवों के जीवन से सीख
पांडवों के जीवन और मृत्यु से हमें कई महत्वपूर्ण सीख मिलती हैं:
- अहंकार का त्याग: पांडवों की मृत्यु का मुख्य कारण उनका अहंकार था। हमें अपने गुणों पर गर्व होना चाहिए, लेकिन अहंकार से बचना चाहिए।
- धर्म का पालन: युधिष्ठिर हमेशा धर्म का पालन करते थे, जिससे वे सीधे स्वर्ग पहुंचे। हमें भी अपने जीवन में धार्मिक मूल्यों का पालन करना चाहिए।
- परिवार के प्रति निष्ठा: युधिष्ठिर ने अपने परिवार के लिए स्वर्ग का सुख त्यागने की इच्छा जताई। हमें भी अपने परिवार के प्रति वफादार रहना चाहिए।
- कर्मों का फल: हर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। अच्छे कर्म अच्छे फल देते हैं, और बुरे कर्म बुरे फल।
- विनम्रता का महत्व: पांडवों के पतन से हमें सीख मिलती है कि विनम्रता एक महत्वपूर्ण गुण है। अहंकार हमारी सबसे बड़ी कमजोरी बन सकता है।
पांडवों के अंतिम यात्रा की तिथियां और समयकाल
महाभारत के अनुसार, कलियुग की शुरुआत 3102 ईसा पूर्व में हुई थी, जो युधिष्ठिर के स्वर्गारोहण का समय माना जाता है। पांडवों ने कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद लगभग 36 वर्षों तक हस्तिनापुर पर शासन किया। इसका मतलब है कि कुरुक्षेत्र युद्ध लगभग 3138 ईसा पूर्व में हुआ था।
पांडवों के महाप्रस्थान और उनकी मृत्यु का विवरण महाभारत के महाप्रस्थानिक पर्व में मिलता है। इसके अनुसार, पांडवों का महाप्रस्थान निम्न क्रम में हुआ:
- सबसे पहले द्रौपदी गिरीं
- फिर सहदेव
- उसके बाद नकुल
- फिर अर्जुन
- और अंत में भीम
केवल युधिष्ठिर और उनका साथी कुत्ता (जो वास्तव में धर्मराज थे) हिमालय की चोटी तक पहुंचे, और युधिष्ठिर अपने शारीरिक रूप में स्वर्ग गए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. पांडवों में सबसे पहले किसकी मृत्यु हुई?
पांडवों के महाप्रस्थान के दौरान सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हुई। द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी थीं, और उनकी मृत्यु का कारण था कि वे अर्जुन के प्रति अधिक आसक्त थीं और अन्य चार पतियों को समान प्रेम नहीं दे पाई थीं।
2. पांडवों की मृत्यु का क्रम क्या था?
पांडवों की मृत्यु का क्रम इस प्रकार था: सबसे पहले द्रौपदी, फिर सहदेव, उसके बाद नकुल, फिर अर्जुन, और अंत में भीम। युधिष्ठिर एकमात्र ऐसे पांडव थे, जिन्होंने अपने शारीरिक रूप में स्वर्ग में प्रवेश किया।
3. पांडवों की मृत्यु का मुख्य कारण क्या था?
पांडवों की मृत्यु का मुख्य कारण उनका अहंकार था। सहदेव को अपने ज्ञान का, नकुल को अपने सौंदर्य का, अर्जुन को अपनी वीरता का, और भीम को अपनी शक्ति का अहंकार था। इन अहंकारों के कारण ही उन्हें महाप्रस्थान के दौरान गिरना पड़ा।
4. युधिष्ठिर सीधे स्वर्ग कैसे पहुंचे?
युधिष्ठिर ने हमेशा धर्म का पालन किया और सत्य का साथ दिया। उन्होंने अपने साथी कुत्ते (जो वास्तव में धर्मराज थे) को छोड़ने से इनकार कर दिया, भले ही इसका मतलब स्वर्ग न जाना हो। उनकी निष्ठा और दया देखकर धर्मराज बहुत प्रसन्न हुए, और इसलिए युधिष्ठिर सीधे अपने शारीरिक रूप में स्वर्ग पहुंचे।
5. कौरव स्वर्ग में कैसे पहुंचे?
महाभारत के अनुसार, दुर्योधन और अन्य कौरवों ने युद्ध के मैदान में वीरता से लड़ते हुए प्राण त्यागे थे। क्षत्रिय धर्म के अनुसार, युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने वाले योद्धा स्वर्ग के अधिकारी होते हैं। इसलिए, दुर्योधन और अन्य कौरव स्वर्ग पहुंचे।
6. महाप्रस्थान क्या है?
महाप्रस्थान का अर्थ है “महान प्रस्थान” या “अंतिम यात्रा”। यह हिंदू धर्म में एक प्रथा है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम चरण में सांसारिक जिम्मेदारियों को छोड़कर हिमालय की ओर जाता है और वहां ध्यान और तपस्या करते हुए अपने प्राण त्यागता है। पांडवों ने भी अपने जीवन के अंतिम चरण में इसी प्रथा का पालन किया।

7. पांडवों के महाप्रस्थान की कहानी किस ग्रंथ में मिलती है?
पांडवों के महाप्रस्थान की कहानी महाभारत के 17वें पर्व, महाप्रस्थानिक पर्व में मिलती है। इसमें विस्तार से बताया गया है कि कैसे पांडवों ने हस्तिनापुर का राज्य छोड़ा और हिमालय की ओर प्रस्थान किया, और फिर कैसे एक-एक करके उनकी मृत्यु हुई।
निष्कर्ष: पांडवों के जीवन से प्रेरणा
पांडवों का जीवन और उनकी मृत्यु हमें कई महत्वपूर्ण सीख देती है। उनका महाप्रस्थान हमें सिखाता है कि अहंकार हमारी सबसे बड़ी कमजोरी हो सकता है। चाहे वह ज्ञान का अहंकार हो, सौंदर्य का, वीरता का या शक्ति का – हर प्रकार का अहंकार हमारे पतन का कारण बन सकता है।
युधिष्ठिर हमें सिखाते हैं कि धर्म और सत्य का पालन करने वाले को अंत में सफलता मिलती है। उनकी निष्ठा और दया हमें प्रेरित करती है कि हम भी अपने जीवन में इन मूल्यों को अपनाएं।
पांडवों की कहानी हमें यह भी सिखाती है कि परिवार का साथ कितना महत्वपूर्ण है। युधिष्ठिर ने अपने भाइयों और द्रौपदी के लिए स्वर्ग का सुख त्यागने की इच्छा जताई, जो उनके परिवार के प्रति प्रेम और समर्पण को दर्शाता है।
अंत में, पांडवों की कहानी हमें याद दिलाती है कि हर व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। अच्छे कर्म अच्छे फल देते हैं, और बुरे कर्म बुरे फल। यह सीख हमें अपने जीवन में अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करती है।
आज हमने जाना कि पांडवों में सबसे पहले किसकी मृत्यु हुई और उनके शरीर छोड़ने की कहानी क्या थी। यह कहानी न केवल हिंदू धर्म और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, ब