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श्री गणेश जी का विवाह क्यों रिद्धि - सिद्धि से क्यों हुआ

श्री गणेश जी का विवाह रिद्धि-सिद्धि से क्यों हुआ: एक पौराणिक कथा

क्या आपने कभी सोचा है कि विघ्नहर्ता, बुद्धिमत्ता के स्वामी, हमारे प्रिय गणपति बप्पा का विवाह कैसे हुआ? हिंदू पौराणिक कथाओं में भगवान गणेश का विशेष स्थान है, लेकिन उनके वैवाहिक जीवन के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको एक रोचक कहानी सुनाने जा रहे हैं – कैसे ब्रह्मचर्य का व्रत लेने वाले गणेश जी को दो पत्नियां मिलीं, और वह भी किस अद्भुत तरीके से!

यह कहानी न केवल मनोरंजक है, बल्कि जीवन के गहरे सिद्धांतों को भी प्रकट करती है। चलिए, इस रोचक पौराणिक कथा में गहराई से उतरते हैं और जानते हैं गणेश जी का विवाह रिद्धि-सिद्धि से क्यों और कैसे हुआ!

गणेश जी का ब्रह्मचर्य व्रत

भगवान शिव और माता पार्वती के दो पुत्र – गणेश और कार्तिकेय दोनों ही अपने-अपने गुणों के लिए प्रसिद्ध हैं। कार्तिकेय का विवाह तो हो गया था, लेकिन गणेश जी ने युवावस्था में ही एक कठिन प्रण ले लिया था – वे जीवन भर ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे और कभी विवाह के बंधन में नहीं बंधेंगे।

शुरुआत में, शिव और पार्वती को अपने बड़े पुत्र के इस प्रण के बारे में जानकारी नहीं थी। एक दिन जब वे आपस में बातें कर रहे थे, तब माता पार्वती ने शिव जी से पूछा:

“स्वामी, हमारे पुत्र कार्तिकेय का विवाह तो हो गया, लेकिन गणेश भी तो विवाह योग्य हो चुका है। क्या आपको उसके विवाह की चिंता नहीं हो रही?”

भगवान शिव ने उत्तर दिया, “देवी, यह आप कैसी बातें कर रही हैं! भला मुझे अपने पुत्र के विवाह की चिंता कैसे नहीं होगी? ऐसा करते हैं, उसे बुलाते हैं और इस विषय में बात करते हैं।”

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गणेश जी की प्रतिज्ञा का खुलासा

जब गणेश जी को बुलाया गया, वे तुरंत वहां प्रकट हो गए और माता-पिता को प्रणाम किया। माता पार्वती ने सीधे विवाह का प्रसंग छेड़ दिया, “पुत्र, हम तुम्हारे विवाह के बारे में तुमसे बात करना चाहते हैं।”

गणेश जी ने अपने माता-पिता को चौंकाते हुए उत्तर दिया, “लेकिन माता, मैंने तो प्रतिज्ञा ली है कि मैं जीवन भर विवाह नहीं करूंगा।”

भगवान शिव और माता पार्वती दोनों ही अपने पुत्र के इस निर्णय से आश्चर्यचकित थे। शिव जी ने पूछा, “लेकिन पुत्र, इसकी क्या आवश्यकता है?” माता पार्वती ने भी गणेश जी को विवाह के लिए बहुत मनाया, परंतु वे अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहे। इसके कुछ दिनों बाद, गणेश जी जंगल में जाकर गहन तपस्या में लीन हो गए।

देवी तुलसी का प्रस्ताव और श्राप

गणेश जी जब तपस्या में लीन थे, तभी देवी तुलसी का उस रास्ते से गुज़रना हुआ। उन्होंने गणेश जी के अनोखे रूप को देखा और उनसे प्रभावित हो गईं। तुलसी ने विवाह का योग्य वर पाने के लिए भटकते-भटकते अब अपनी तलाश पूरी होती देखी।

वे गणेश जी की तपस्या भंग करने लगीं। जब गणेश जी का ध्यान टूटा, तो उन्हें क्रोध आ गया। उन्होंने पूछा, “हे देवी, आप कौन हैं? आपकी वजह से मेरा ध्यान भंग हुआ है। क्या आपको इस बात का भय नहीं कि मैं आपको श्राप दे सकता हूं?”

तुलसी ने विनम्रता से उत्तर दिया, “मुझे क्षमा करें देव। मैं धर्म ध्वज की पुत्री तुलसी हूं। इधर से गुजर रही थी। लेकिन आपके इस अदभुत रूप को देखकर मैं काफी प्रभावित हो गई और आपके ध्यान को भंग किए बिना नहीं रह पाई। दरअसल, मैं अपने विवाह के लिए योग्य वर की तलाश कर रही हूं, और आपको देखने के बाद ऐसा लगता है कि मेरी तलाश पूरी हुई।”

गणेश जी ने आश्चर्य से पूछा, “अर्थात, आप कहना क्या चाहती हैं?”

तुलसी ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “मैं आपसे विवाह करना चाहती हूं।”

गणेश जी ने तुरंत इनकार कर दिया, “नहीं देवी, आप अपने मन से इस ख्याल को निकाल दीजिए। मैं आपसे विवाह नहीं कर सकता।”

जब तुलसी ने कारण पूछा, तो गणेश जी ने अपनी प्रतिज्ञा का हवाला दिया और उन्हें वहां से चले जाने को कहा।

गणेश जी द्वारा विवाह प्रस्ताव ठुकराए जाने से देवी तुलसी क्रोधित हो गईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया, “आपने मेरे विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा कर बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया। इसीलिए मैं आपको श्राप देती हूं कि आने वाले समय में आपकी एक नहीं बल्कि दो विवाह होंगे! आपको दो पत्नियों के साथ अपना जीवन यापन करना होगा।”

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गणेश जी की क्रिया-प्रतिक्रिया

समय बीतने के साथ, गणेश जी का भी मन विवाह करने का होने लगा। लेकिन उनके विचित्र रूप के कारण, कोई भी अपनी पुत्री का विवाह उनसे नहीं करना चाहता था। इससे गणेश जी काफी परेशान हो गए और धीरे-धीरे उनमें क्रोध उत्पन्न होने लगा।

क्रोध में आकर, गणेश जी ने अपने वाहन मूषक के साथ एक योजना बनाई। उन्होंने मूषक से कहा, “हे मूषक, मैं चाहता हूं कि आज के बाद देवलोक में किसी भी देवी-देवता का विवाह न हो पाए, जब तक कि मेरा विवाह न हो जाए।”

मूषक ने पूछा, “लेकिन इसके लिए मुझे क्या करना होगा प्रभु?”

गणेश जी ने निर्देश दिया, “आपको बस यह करना है कि जब भी किसी का विवाह होने लगे, उसमें विघ्न डालना है, ताकि वह विवाह हो न सके।”

मूषक द्वारा विघ्न डालना

मूषक ने अपना काम बखूबी शुरू कर दिया। जब भी किसी देवी या देवता का विवाह होने लगता, मूषक जाकर उसमें विघ्न डाल देता। कभी किसी के मंडप को तोड़ देता, तो कभी कुछ और विघ्न डाल देता।

इससे सभी देवता परेशान हो गए और एकजुट होकर भगवान शिव और माता पार्वती के पास गए। उन्होंने अपनी समस्या बताई कि गणेश जी किसी का विवाह नहीं होने दे रहे हैं।

भगवान शिव ने देवताओं को ब्रह्मा जी के पास जाने की सलाह दी, “इस समस्या के समाधान के लिए आप सबको ब्रह्मा जी के पास जाना चाहिए। वे ही आप सबको इस समस्या से निकाल सकते हैं।”

ब्रह्मा जी का समाधान: रिद्धि और सिद्धि का जन्म

शिवजी की आज्ञा मानकर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और अपनी परेशानी बताई। ब्रह्मा जी ने उन्हें आश्वस्त किया, “चिंतित न हो। हर समस्या का समाधान अवश्य होता है।”

इसके बाद ब्रह्मा जी ने अपने योग बल से दो कन्याओं को उत्पन्न किया और उनका नाम रिद्धि और सिद्धि रखा। ब्रह्मा जी ने रिद्धि और सिद्धि को उद्देश्य बताते हुए कहा, “मैंने जिस उद्देश्य से तुम दोनों को उत्पन्न किया है, सदैव उसका स्मरण रखना। इस बात का खास ध्यान रखना कि किसी के भी विवाह में गणेश जी विघ्न न उत्पन्न कर पाएं।”

दोनों कन्याओं ने वचन दिया, “जी, ब्रह्मदेव, हम दोनों सदैव इस बात का स्मरण रखेंगे।”

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रिद्धि-सिद्धि की चतुराई

ब्रह्मा जी रिद्धि और सिद्धि को लेकर गणेश जी के पास गए। उन्होंने गणेश जी से कहा, “हे प्रथम पूज्य, ये मेरी दो पुत्रियां हैं, रिद्धि और सिद्धि। मैं चाहता हूं कि आप इन दोनों को शिक्षा प्रदान करें।”

गणेश जी ने विनम्रता से स्वीकार किया, “अवश्य, मैं आपकी बात कैसे टाल सकता हूं? इसे मैं अपना कर्तव्य समझकर आपके आदेश का पालन करूंगा।”

इस प्रकार गणेश जी रिद्धि-सिद्धि को शिक्षा देने लग गए। जब भी मूषक किसी विवाह की सूचना लेकर आता, रिद्धि और सिद्धि चतुराई से गणेश जी का ध्यान भटका देतीं।

एक दिन जब मूषक दौड़ते हुए आया और बोला, “प्रभु, प्रभु! आज फिर स्वर्ग लोक में किसी के विवाह की तैयारी जोरों-शोरों से चल रही है। मुझे आज्ञा दें प्रभु कि मुझे क्या करना है।”

मूषक को देखते ही, रिद्धि-सिद्धि ने तुरंत गणेश जी से एक जटिल प्रश्न पूछा, “प्रभु! धर्म और कर्म के विषय में जो आपने बताया था, मैं चाहती हूं कि आप उसे विस्तार से मुझे समझाएं।”

गणेश जी ने उत्तर दिया, “अवश्य!” और वे रिद्धि-सिद्धि को शिक्षा देने में इतने व्यस्त हो गए कि मूषक की बात का ध्यान ही नहीं रहा।

मूषक सोचने लगा, “अरे, यह क्या! प्रभु तो मेरी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं। इनकी आज्ञा के बिना मैं कैसे कुछ करूं?” और वह भी अन्य कार्यों में व्यस्त हो गया।

सच्चाई का पता चलना

इस प्रकार समय बीतता गया और देवलोक में विवाह होते रहे। कुछ दिनों बाद, जब गणेश जी की नज़र मूषक पर पड़ी, तो वह आराम से लड्डू खा रहा था।

गणेश जी ने पूछा, “अरे मूषक जी, यह क्या? आप यहां आराम से लड्डू खा रहे हैं और जो मैंने आपको कार्य सौंपा था, उसका क्या हुआ?”

मूषक ने उत्तर दिया, “उसका क्या प्रभु, वही बताने के लिए तो मैं आपके पास आया था, लेकिन आप तो इतने व्यस्त रहते हैं कि मेरी बातें सुनते ही नहीं। मैं भला आपकी आज्ञा के बिना कैसे कुछ कर सकता हूं प्रभु!”

जब मूषक ने पूरी बात बताई कि कैसे रिद्धि-सिद्धि हर बार उनका ध्यान भटका देती हैं, तब गणेश जी को सारी चाल समझ में आ गई। वे अत्यंत क्रोधित हुए।

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ब्रह्मा जी का विवाह प्रस्ताव

जब रिद्धि और सिद्धि को गणेश जी के क्रोध का पता चला, तो वे घबराकर ब्रह्मा जी के पास गईं, “प्रभु, हमारी रक्षा कीजिए! गणेश जी को हमारे बारे में सारी जानकारी हो गई है। अतः वो काफी क्रोधित हैं।”

ब्रह्मा जी ने उन्हें आश्वस्त किया, “तुम दोनों चिंता मत करो। इस परेशानी का हल मेरे पास है।”

तत्पश्चात, ब्रह्मा जी रिद्धि-सिद्धि को साथ लेकर गणेश जी के पास गए और विनम्रता से कहा, “अपने क्रोध को शांत कीजिए गणेश जी। मैं आपके पास अपनी दोनों पुत्रियों, रिद्धि और सिद्धि के विवाह का प्रस्ताव लेकर आया हूं। कृपया करके इसे स्वीकार करें।”

श्राप की पूर्ति: गणेश जी का दोहरा विवाह

ब्रह्मा जी के प्रस्ताव पर गणेश जी ने विचार किया और अंततः उसे स्वीकार कर लिया। इस प्रकार रिद्धि और सिद्धि दोनों के साथ गणेश जी का विवाह संपन्न हुआ।

इस तरह देवी तुलसी का दिया हुआ श्राप सच साबित हुआ – गणेश जी को दो पत्नियां मिलीं। विवाह के बाद दोनों पत्नियों से गणेश जी के दो पुत्र – शुभ और लाभ हुए। कुछ कथाओं के अनुसार, एक पुत्री देवी संतोषी का भी जन्म हुआ।

कथा से सीख

इस पौराणिक कथा से हमें कई सीख मिलती हैं:

  1. नियति से बचा नहीं जा सकता – गणेश जी ब्रह्मचर्य का व्रत लेने के बावजूद, देवी तुलसी के श्राप के कारण उन्हें विवाह करना ही पड़ा।
  2. क्रोध से बचें – गणेश जी के क्रोध ने देवताओं के विवाह में बाधा डाली, जिससे सभी परेशान हुए।
  3. बुद्धिमत्ता का महत्व – रिद्धि और सिद्धि ने अपनी बुद्धिमत्ता से गणेश जी के विघ्न डालने के प्रयासों को विफल कर दिया।
  4. परिस्थितियों का स्वीकार – अंत में, गणेश जी ने परिस्थितियों को स्वीकार कर लिया और रिद्धि-सिद्धि से विवाह कर लिया।

निष्कर्ष

श्री गणेश जी का रिद्धि और सिद्धि से विवाह एक अत्यंत रोचक पौराणिक कथा है, जो हमें सिखाती है कि कभी-कभी हमारे जीवन में ऐसी घटनाएं घटती हैं, जिन्हें हम टाल नहीं सकते। गणेश जी के विवाह की यह कथा हमें याद दिलाती है कि समृद्धि (रिद्धि) और सफलता (सिद्धि) प्राप्त करने के लिए विघ्नहर्ता गणेश की कृपा आवश्यक है।

आज भी गणेश जी की पूजा हर शुभ कार्य के प्रारंभ में की जाती है, जिससे कार्य में आने वाली सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और समृद्धि तथा सफलता प्राप्त होती है।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. गणेश जी ने ब्रह्मचर्य का व्रत क्यों लिया था?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, गणेश जी ने अपनी इच्छा से ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। इसका सटीक कारण पुराणों में स्पष्ट नहीं है, पर यह माना जाता है कि वे आध्यात्मिक साधना पर अधिक ध्यान देना चाहते थे।

2. देवी तुलसी ने गणेश जी को क्या श्राप दिया था?

देवी तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया था कि उनकी एक नहीं, बल्कि दो विवाह होंगे और उन्हें दो पत्नियों के साथ जीवन यापन करना होगा।

3. रिद्धि और सिद्धि कौन थीं?

रिद्धि और सिद्धि ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न की गई दो कन्याएं थीं। रिद्धि समृद्धि की देवी हैं, जबकि सिद्धि सफलता की देवी हैं।

4. गणेश जी के कितने संतान थे?

गणेश जी के रिद्धि से एक पुत्र शुभ (या शुभंकर) और सिद्धि से एक पुत्र लाभ हुआ। कुछ कथाओं के अनुसार, उनकी एक पुत्री देवी संतोषी भी थी।

5. क्या हर पुराण में गणेश जी के विवाह की एक ही कथा है?

नहीं, विभिन्न पुराणों और लोककथाओं में गणेश जी के विवाह की अलग-अलग कहानियां मिलती हैं। कुछ में उनका विवाह बुद्धि से भी बताया गया है, कुछ में संतोषी माता से।

6. गणेश जी के वाहन मूषक की क्या भूमिका थी?

गणेश जी ने अपने वाहन मूषक को देवताओं के विवाह में विघ्न डालने का आदेश दिया था, ताकि जब तक उनका विवाह न हो, कोई अन्य विवाह न हो सके।

7. भगवान गणेश और उनकी पत्नियों के नामों का क्या अर्थ है?

  • गणेश: गणों के ईश (स्वामी)
  • रिद्धि: समृद्धि, वैभव
  • सिद्धि: सफलता, सिद्धि
  • शुभ: शुभता, मंगल
  • लाभ: फायदा, कल्याण

8. गणेश चतुर्थी पर इस कथा का क्या महत्व है?

गणेश चतुर्थी पर गणेश जी के जन्म के साथ-साथ उनके विवाह की भी स्मृति की जाती है। कई स्थानों पर इस दिन गणेश जी की विवाह की झांकियां सजाई जाती हैं।

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