क्या है वह रहस्यमय पेय जिसने देवताओं को अमर बनाया?
कल्पना करिए एक ऐसे दिव्य पेय की, जिसे पीकर देवता अमरत्व प्राप्त करते थे, जो उन्हें असुरों के विरुद्ध युद्ध में विजय दिलाता था, और जिसकी महिमा हजारों वर्षों से वैदिक मंत्रों में गूंजती आ रही है। यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं, बल्कि हमारे प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित सोमरस की सच्चाई है – वह दिव्य अमृत जो आज भी रहस्य में डूबा हुआ है।
सोमरस क्या है? – वैदिक साहित्य की अनमोल विरासत
सोमरस, जिसे संस्कृत में ‘सोम’ कहा जाता है, हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन और पवित्र पेयों में से एक है। ऋग्वेद में सोम की महिमा का गुणगान करने वाले 114 सूक्त हैं, जो इसकी महत्ता को दर्शाते हैं। यह केवल एक पेय नहीं था, बल्कि एक देवता भी माना जाता था।
वैदिक ग्रंथों में सोमरस का महत्व
ऋग्वेद के नवें मंडल में सोम को “पवमान सोम” कहा गया है, जिसका अर्थ है “शुद्ध करने वाला सोम”। इसे “अमृत” और “रसराज” की उपाधि भी दी गई है। अथर्ववेद में इसे “ओषधिराज” (औषधियों का राजा) कहा गया है।
मुख्य विशेषताएं:
- दिव्य गुण: सोमरस पीने से देवताओं में अतुलनीय शक्ति आती थी
- अमरत्व प्रदान करना: यह अमरता और दीर्घायु देता था
- आध्यात्मिक उन्नति: इसे पीने से चेतना का विस्तार होता था
- शारीरिक बल: युद्ध में अपराजेय बनाने की शक्ति
पुराणों में सोमरस के चमत्कारिक गुण
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार
भागवत पुराण में वर्णित है कि जब देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन कर रहे थे, तो चौदह रत्न निकले थे। इनमें से अमृत भी एक था, जिसे सोमरस का ही रूप माना जाता है। धन्वंतरि भगवान के हाथों में अमृत कलश के रूप में यह प्रकट हुआ था।
वायु पुराण में सोम की उत्पत्ति
वायु पुराण के अनुसार, सोम की उत्पत्ति चंद्रमा से हुई है। चंद्रमा को ‘सोम’ भी कहा जाता है, और माना जाता है कि सोमरस में चंद्रमा की शीतल शक्ति निहित होती है।
रामायण में सोमरस का उल्लेख
वाल्मीकि रामायण में जब हनुमान जी लंका से संजीवनी बूटी लेकर आते हैं, तो वहां सोमरस का भी उल्लेख मिलता है। यह बताया गया है कि सोमरस घायल योद्धाओं को तुरंत स्वस्थ कर देता था।
रामायण में सोमरस के गुण:
- तुरंत घाव भरना
- मृत्यु के मुंह से वापस लौटाना
- शक्ति और स्फूर्ति प्रदान करना
- मानसिक स्पष्टता बढ़ाना
महाभारत में सोमरस के रहस्य
महाभारत के वन पर्व में युधिष्ठिर और यक्ष के संवाद में सोमरस का उल्लेख आता है। यक्ष ने पूछा था – “अमृत क्या है?” युधिष्ठिर ने उत्तर दिया था कि वेदमंत्र ही अमृत है, जो सोमरस के रूप में प्रकट होता है।
कुरुक्षेत्र युद्ध में सोमरस
महाभारत युद्ध में कई बार सोमरस का प्रयोग हुआ। जब भीष्म पितामह शर-शैया पर पड़े थे, तो उनके पास सोमरस लाया गया था। अर्जुन ने भी इंद्र से सोमरस प्राप्त किया था।
सोमरस बनाने की प्राचीन विधि
वैदिक विधि के अनुसार
ऋग्वेद में सोमरस बनाने की जटिल प्रक्रिया का वर्णन है:
सामग्री:
- सोम पौधे की पत्तियां
- शुद्ध जल
- गाय का दूध
- घी
- मधु
विधि:
- प्रातःकाल सोम पौधे की ताजी पत्तियां तोड़ना
- पवित्र स्थान पर इन्हें कूटना
- स्वर्णपात्र में रस निकालना
- मंत्रोच्चारण के साथ शुद्ध करना
- दूध और मधु मिलाकर तैयार करना
आधुनिक शोधकर्ताओं के मतानुसार
आधुनिक वैज्ञानिकों का मानना है कि सोमरस में निम्नलिखित तत्व हो सकते हैं:
- एफेड्रा प्लांट (Ephedra)
- अमानिटा मस्कारिया (मशरूम)
- कैनाबिस के अर्क
- विभिन्न जड़ी-बूटियों का मिश्रण
दिलचस्प तथ्य और रहस्य
तथ्य 1: चंद्रमा से कनेक्शन
सोम का शाब्दिक अर्थ चंद्रमा है। हिंदू पंचांग में चंद्रमा को सोम कहा जाता है, और सोमवार का नाम भी यहीं से आया है।
तथ्य 2: इंद्र का प्रिय पेय
ऋग्वेद में इंद्र को “सोमपा” कहा गया है, यानी सोम पीने वाला। इंद्र की शक्ति का मुख्य स्रोत सोमरस ही था।
तथ्य 3: दुर्लभ पौधा
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, सोम पौधा केवल गंधमादन पर्वत पर मिलता था। यह अत्यंत दुर्लभ और कीमती था।
तथ्य 4: समय सीमा
सोमरस का प्रभाव केवल तीन दिन तक रहता था। इसके बाद इसकी शक्ति क्षीण हो जाती थी।
तथ्य 5: केवल देवताओं के लिए
प्रारंभ में सोमरस केवल देवताओं के लिए था। बाद में ऋषि-मुनियों को भी इसका अधिकार मिला।

सोमरस के स्वास्थ्य लाभ
शारीरिक लाभ
- रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना
- मानसिक तनाव कम करना
- स्मृति शक्ति बढ़ाना
- आंखों की रोशनी तेज करना
- जीवनशक्ति में वृद्धि
आध्यात्मिक लाभ
- चेतना का विस्तार
- ध्यान में गहराई
- दिव्य अनुभव
- आत्मा की शुद्धता
आधुनिक खोज और शोध
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आधुनिक वैज्ञानिकों ने सोमरस की पहचान के लिए कई शोध किए हैं। रूसी वैज्ञानिक आर. गॉर्डन वासन ने अपनी पुस्तक “सोमा: डिवाइन मशरूम ऑफ इम्मॉर्टैलिटी” में दावा किया है कि सोम दरअसल एक प्रकार का मशरूम था।
भारतीय शोधकर्ताओं के निष्कर्ष
भारतीय आयुर्वेद विशेषज्ञों का मानना है कि सोमरस विभिन्न हिमालयी जड़ी-बूटियों का एक विशेष मिश्रण था, जिसमें मुख्यतः गिलोय, अश्वगंधा, और ब्राह्मी शामिल थे।
सोमरस का आधुनिक विकल्प
आयुर्वेदिक सूत्रधार
आज के समय में आयुर्वेदिक डॉक्टर सोमरस के समान गुणों वाले निम्नलिखित मिश्रण सुझाते हैं:
सामग्री:
- अश्वगंधा – 2 ग्राम
- ब्राह्मी – 1 ग्राम
- गिलोय – 3 ग्राम
- शतावर – 2 ग्राम
- शुद्ध शहद – 1 चम्मच
- गाय का दूध – 200 मिली
सेवन विधि: प्रातःकाल खाली पेट या रात्रि में सोने से पूर्व लें।
आध्यात्मिक महत्व
योग और तंत्र में सोमरस
तंत्र शास्त्र में सोमरस को अमृत कहा गया है, जो कुंडलिनी जागरण के साथ शरीर में उत्पन्न होता है। योगी इसे सहस्रार चक्र से निकलने वाला दिव्य अमृत मानते हैं।
आधुनिक साधना में प्रयोग
आज भी कई योगी और साधक सोमरस की अवधारणा का प्रयोग करते हैं। वे इसे शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव मानते हैं।
निष्कर्ष: सोमरस का शाश्वत रहस्य
सोमरस का रहस्य आज भी पूर्णतः सुलझा नहीं है। यह केवल एक पेय था या कोई आध्यात्मिक अनुभव, यह बहस का विषय है। लेकिन एक बात निश्चित है कि हमारे पूर्वजों ने जिस सोमरस की महिमा गाई है, वह निश्चित रूप से कोई असाधारण चीज रही होगी।
हमारे वैदिक ऋषियों की गहन अनुभूति और ज्ञान इस बात का प्रमाण है कि सोमरस केवल कोई सामान्य पेय नहीं था। यह शरीर, मन और आत्मा को उन्नत करने वाला दिव्य अमृत था।
आज के वैज्ञानिक युग में भी सोमरस का रहस्य हमें अपनी जड़ों से जुड़ने और प्राचीन ज्ञान की महत्ता समझने पर मजबूर करता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: सोमरस वास्तव में क्या था? उत्तर: सोमरस एक दिव्य पेय था जिसका उल्लेख वेदों में मिलता है। यह सोम नामक पौधे से बनाया जाता था और इसमें अमरत्व प्रदान करने की शक्ति मानी जाती थी।
प्रश्न 2: क्या आज भी सोमरस मिल सकता है? उत्तर: मूल सोमरस आज उपलब्ध नहीं है क्योंकि मूल सोम पौधे की पहचान अभी भी रहस्य में है। हालांकि, आयुर्वेदिक डॉक्टर समान गुणों वाले मिश्रण सुझाते हैं।
प्रश्न 3: सोमरस पीने से क्या फायदे होते थे? उत्तर: प्राचीन ग्रंथों के अनुसार सोमरस से अमरत्व, शक्ति, बुद्धि में वृद्धि, रोगों का नाश और आध्यात्मिक उन्नति होती थी।
प्रश्न 4: सोमरस और अमृत में क्या अंतर है? उत्तर: सोमरस और अमृत दोनों को एक ही माना जाता है। समुद्र मंथन से निकला अमृत ही सोमरस का रूप था।
प्रश्न 5: क्या सोमरस का कोई वैज्ञानिक आधार है? उत्तर: आधुनिक वैज्ञानिकों ने सोमरस की पहचान के लिए कई शोध किए हैं। कुछ का मानना है यह एक प्रकार का मशरूम था, जबकि अन्य इसे हिमालयी जड़ी-बूटियों का मिश्रण मानते हैं।
प्रश्न 6: कौन से देवता सोमरस पीते थे? उत्तर: मुख्यतः इंद्र, अग्निदेव, और अन्य देवता सोमरस पीते थे। इंद्र को तो “सोमपा” यानी सोम पीने वाला कहा जाता था।
प्रश्न 7: सोमरस बनाने की विधि क्या थी? उत्तर: वैदिक विधि के अनुसार सोम पौधे की पत्तियों को कूटकर, उसका रस निकालकर, दूध और मधु मिलाकर मंत्रों के साथ तैयार किया जाता था।
प्रश्न 8: क्या सोमरस का सेवन आम लोग कर सकते थे? उत्तर: प्रारंभ में यह केवल देवताओं के लिए था, बाद में ऋषि-मुनियों और यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों को भी इसका अधिकार मिला।